सीबीएसई स्कूलों ने पैसा कमाने के तरीकों में किया इनोवेशन
सीबीएसई के बड़े-बड़े स्कूलों (ज्यादातर) में इन दिनों कुछ और ही हो रहा है. वे स्कूल के मामूली से मामूली एक्टिविटी को भी आउटसोर्स कर रहे हैं और उसके बदले बच्चों के माता-पिता से मोटी फीस वसूल रहे हैं.
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स्कूल, यह शब्द सुनते ही दिमाग में आती है टीचर्स के प्रति अगाध श्रद्धा और एक ऐसा मंदिर जहां ज्ञान मिलता है. लेकिन क्या ऐसा सच में होता है? शायद नहीं. दरअसल, सीबीएसई के बड़े-बड़े स्कूलों (ज्यादातर) में इन दिनों कुछ और ही हो रहा है. वे स्कूल के मामूली से मामूली एक्टिविटी को भी आउटसोर्स कर रहे हैं और उसके बदले बच्चों के माता-पिता से मोटी फीस वसूल रहे हैं.
आजकल सीबीएसई स्कूलों ने ऐसी ही कुछ एक्टिविटी आवश्यक कर दी है, ये कहते हुए कि यह मैनेजमेंट का निर्णय है. एक ओर जहां बच्चों के लिए इन कार्यकलापों में हिस्सा लेना जरूरी है वहीं माता-पिता भी गैरजरूरी तौर पर ज्यादा पैसे देने को मजबूर हैं. हां, गैरजरूरी रूप से क्योंकि स्कूलों ने ऐसी एक्टिविटी को पाठ्यक्रम का अहम हिस्सा बना दिया हैं.
लीप स्टार्ट
इस कार्यक्रम के तहत खेल और कसरत से बच्चों की शारीरिक क्षमता को बेहतर बनाने का काम किया जाता है. लेकिन अजीब बात यह है कि स्कूलों के पास अपना पीटी शिक्षक होने के बावजूद वह बाहर के लोगों को इसके लिए बुलाता है. जिन बच्चों ने इसके लिए पैसे नहीं भरे उन्हें इसमें हिस्सा नहीं लेने दिया जाता और वे बाहर बैठे रहते हैं.
थिंक लैब
यह कार्यक्रम भी पाठ्यक्रम का जरूरी हिस्सा नहीं है. इसमें छात्र थिकं लैब से दिए कुछ किट्स (उपकरणों) की मदद से विज्ञान के प्रयोग करते हैं. इस किट में बेहद आम चीजें रहती हैं. मसलन, यह चीजें हमारे घरों में आसानी से उपलब्ध होती हैं. लेकिन इसके लिए भी स्कूलों की ओर से पैसे मांगे जाते हैं, जबकि इन स्कूलों में अच्छे लैब पहले से ही उपलब्ध हैं.
माइंड स्पार्क
यह गणित से जुड़ा एक कार्यक्रम है. इसमें हर हफ्ते बच्चों को कुछ समय के लिए इलेक्ट्रॉनिक टैबलेट दिए जाते हैं और इससे जुड़े कार्य उन्हें करने होते हैं. यहां भी इस गैजेट पर अपना अकाउंट बनाने के लिए उनसे पैसे की मांग होती है.
एसेट एग्जाम
इसी प्रकार मल्टीपल च्वॉयस (बहु विकल्पीय प्रश्नों) की एक नई प्रणाली शुरू की गई है. स्कूलों का मत है इससे छात्रों की विषय की सैद्धांतिक जानकारी का व्यावहारिक तौर इस्तेमाल करने की क्षमता का पता चलता है. पहले यह ऐच्छिक था लेकिन अब इसे भी पाठ्यक्रम में जरूरी बना दिया गया है.
इन सब चीजों के अलावा यह सभी स्कूल किताबें, कॉपी, स्टेशनरी के अन्य सामान भी मुहैया कराते हैं लेकिन इसके भी दाम बाजार मूल्य से ज्यादा होते हैं. इन चीजों को हर साल देने की जरूरत भी नहीं होती क्योंकि इसमें से ज्यादातर बच जाते हैं. दूसरे साल भी उनका इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे ही स्कूल द्वारा दिए जाने वाले यूनिफॉर्म का मूल्य भी बाजार भाव से दोगुना होता है.
कई स्कूलों में 'स्मार्ट क्लास' की एक नई परिपाटी शुरू की गई है. यहां बच्चों को ऑडियो-विजुअल और पीपीटी के जरिए पढ़ाने का काम होता है. स्कूल के आखिरी दिन इसी पर म्यूजिक बजाने का भी कार्य होता है और इसके लिए भी फीस के तौर पर पैसे मांगे जाते है.
ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि विद्या के हमारे कथित मंदिरों ने अब अपना अलग बिजनेस भी शुरू कर दिया है. यह बच्चों और उनके माता-पिता को लूटने से कम नहीं है.
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