चंद्रयान-2 से जुड़े 8 सबसे सवालों के जवाब यहां मिलेंगे
Chandrayaan-2 moon landing: अब तक कुल 38 सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास किए जा चुके हैं जिसकी सफलता दर 52% है. यानी दो में से केवल एक सॉफ्ट लैंडिग ही अब तक सफल हुई हैं. भारत पहली बार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा रहा है.
-
Total Shares
Chandrayaan-2 mission का update ये है कि पिछले कई कठिन पड़ावों को पार करते हुए यह मिशन अपनी यात्रा के सबसे मुश्किल पड़ाव पर पहुंच चुका है. 2 सितंबर को Lander Vikram ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग हो गया. अब Lander Vikram 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर soft landing करेगा. जबकि ऑर्बिटर चंद्रमा की परिक्रमा करता रहेगा.
Chandrayaan-2 जब से पृथ्वी से निकला है, विज्ञानिकों, छात्रों के अलावा आम भारतीय भी इसकी पल-पल की गतिविधियों पर निगाह रखे हुए हैं. वो एक एक कदम आगे बढ़ रहा है और हम हर कदम पर फख्र कर रहे हैं.
जिन लोगों को अंतरिक्ष के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं है वो भी चंद्रयान 2 को लेकर बहुत उत्साहित हैं. लेकिन इस मिशन से जुड़े कई सवाल ऐसे हैं जो लोगों के मन में उठते हैं. आज उन्हीं सवालों के जवाब लेकर आए हैं.
चांद पर पहुंचने से एक कदम दूर
Chandrayaan-2 moon landing time:
Chandrayaan-2 का विक्रम लैंडर 7 सितंबर की रात 1.30 बजे से 2 बजे के बीच चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा. चंद्रमा की सतह पर साफ्ट लैंडिंग कराने का यह ISRO और भारत का पहला प्रयास है. करीब साढ़े पांच बजे सुबह Vikram के गर्भ में से रोवर प्रज्ञान (Rover Pragyan) बाहर आएगा, जो कि चंद्रमा की सतह पर घूम घूमकर परीक्षण करेगा और फिर पृथ्वी पर संबंधित डेटा भेजेगा. इसके बाद मिशन को लेकर 7 सितंबर की सुबह 8 से 9 बजे के बीच ISRO चीफ प्रेस कान्फ्रेंस के जरिए देश को अहम जानकारी देंगे.
Chandrayaan-2 की कामयाब लैंडिंग का कितना चांस है?
किसी भी अंतरिक्ष यान का किसी आकाशीय पिंड या पृथ्वी पर इस तरह से उतरना कि यान को किसी तरह का नुकसान या विनाश न हो, उसे सॉफ्ट लैंडिंग कहा जाता है. अब तक कुल 38 सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास किए जा चुके हैं जिसकी सफलता दर 52% है. यानी दो में से केवल एक सॉफ्ट लैंडिग ही अब तक सफल हुई हैं. भारत पहली बार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा रहा है. अभी तक ऐसा सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन ने ही किया है. इस मिशन में एक छोटी सी गलती से भी बड़ा नुकसान हो सकता है, इसलिए ये इतना आसान भी नहीं है. इसरो चीफ के सिवन से जब पूछा गया कि इस तरह की लैंडिंग कराने में कामयाबी का प्रतिशत कितना है? तो उन्होंने जवाब दिया कि 37 फीसदी.
चंद्रमा पर रोवर कितनी दूरी तय करेगा?
लैंडर को चंद्रमा पर उतारने में 15 मिनट का वक्त लगेगा. इसरो के वैज्ञानिकों के लिए ये 15 मिनट सबसे चुनौतीपूर्ण होंगे. चंद्रमा पर उतरने के बाद 1.4 टन वजनी लैंडर से 27 किलो का रोवर निकलेगा और चांद की सतह का मुआयना करेगा. रोवर चंद्रमा पर लैंडिंग स्पॉट से 500 मीटर (आधा किलोमीटर) तक की यात्रा कर सकता है.
ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की मिशन लाइफ कितनी है
ऑर्बिटर की मिशन लाइफ एक साल की होगी. जबकि लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) की मिशन लाइफ एक लूनर दिन होगा जो 14 पृथ्वी के दिनों के बराबर है.
सॉफ्ट लैंडिग इतनी भी आसान नहीं
चंद्रयान2 मिशन के रास्ते में कितने मुश्किल पड़ाव हैं
इस मिशन की कुछ तकनीकी चुनौतियां हैं-
propulsion system जिसमें थ्रोटेलेबल इंजन होते हैं जिससे कम स्पर्श वाले वेग पर लैंडिंग सुनिश्चित की जा सके.
Mission management - विभिन्न चरणों में propellant management, इंजन का जलना, कक्षा और trajectory design.
Lander Development - नेविगेशन, मार्गदर्शन और नियंत्रण करना, नेविगेशन और खतरे से बचने के लिए सेंसर, soft landing के लिए संचार प्रणाली और lander leg mechanism
Rover Development - लैंडर से बाहर आना, चांद की सतह पर घूमना, पावर सिस्टम, थर्मल सिस्टम, कम्युनिकेशन और मोबिलिटी सिस्टम का परीक्षण.
Chandrayaan-2 vs Chandrayaan-1: कितना अंतर है?
चंद्रयान-1 भारत का पहला मून मिशन था. जबकि चंद्रयान 2 चंद्रयान-1 का फॉलोअप मिशन है.
चंद्रयान-1 ने चंद्रमा के चारों और मौजूद कक्षा की जानकारियां और बल्कि चंद पर पानी का पता लगाया था, जबकि चंद्रयान-2 चांद पर मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम, मिनरल, हीलियम, पानी और पर्यावरण के बारे में पता लगाएगा.
चंद्रयान-1 का लॉन्च व्हीकल PSLV-C11 था चंद्रयान-2 का GSLV MK-III.
चंद्रयान-1 का मिशन टाइम 312 दिन था और चंद्रयान-2 का 365 दिन चंद्रयान-1 का lift-off mass 1380 किलोग्राम था जबकि चंद्रयान -2 का वजन 3850 किलोग्राम.
चंद्रयान2 में क्या-क्या है
ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह की मैपिंग के लिए आठ वैज्ञानिक पेलोड लेकर गया है. और चंद्रमा के exosphere (बाहरी वातावरण) का अध्ययन करेगा. चंद्रमा की सतह और उपसतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए लैंडर में तीन पेलोड हैं. चंद्रमा की सतह के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने के लिए रोवर में दो पेलोड हैं.
ये हैं चंद्रयान के हिस्से
चांद का तापमान कितना होता है?
चंद्रमा का तापमान बहुत ज्यादा हो जाता है. चांद का जो पक्ष सूर्य से रौशनी लेता है वहां का तापमान करीब 130 ºC तक पहुंच जाता है, और रात को इतना ठंडा हो जाता है कि पारा -180 ºC तक गिर जाता है.
ये भी पढ़ें-
Chandrayaan-2 मिशन की कामयाबी एक कदम दूर...
चंद्रयान-2 ने बेशक एक बड़ी बाधा पार की है, लेकिन असली चुनौती बाकी है
चंद्रयान-2 के बाद इसरो का सबसे बड़ा चैलेंज है स्पेस-वॉर मिशन
आपकी राय