क्राइस्टचर्च हमले ने न्यूजीलैंड के खूनी इतिहास की याद दिला दी
न्यूजीलैंड को दुनिया का दूसरा सबसे शांतिप्रीय देश कहा जाता है, लेकिन शुरू से ही इसका इतिहास ऐसा नहीं था. 15 मार्च को हुए Christchurch Terrorist Attack ने देश के इतिहास को झकझोर दिया.
-
Total Shares
न्यूजीलैंड के इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक 15 मार्च रहा है. दो मस्जिदों में जिस तरह से बेरहमी से मारा गया है उसके बारे में कुछ भी कहना गलत है. वो देश जिसे दुनिया का दूसरा सबसे शांतिप्रीय देश माना जाता है. वहां साल में 35 हत्याओं से ज्यादा कभी नहीं होती थीं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 2017 में केवल 35 हत्याएं हुई थीं. 2007 से तो वहां सिंगल डिजिट में हत्या होती थी सिर्फ 2009 में ही ये आंकड़ा 11 पहुंचा था. पर अचानक इस देश में एक प्रार्थना सभा के दौरान एक आतंकी 49 लोगों की हत्या कर देता है. 1 ही दिन में इस देश को ऐसा जख्म दे दिया जाता है जो कई सालों में नहीं मिला था.
न्यूजीलैंड की कहानी हमेशा से शांतिप्रीय नहीं थी. इस देश के इतिहास में भी कई जंग और खूनी लड़ाइयां शामिल हैं.
न्यूजीलैंड हमले में कई घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया और कई की हालत गंभीर बताई जा रही है.
700 सालों का इतिहास जो युद्ध से शांति तक पहुंच गया-
न्यूजीलैंड की खोज इतिहास में 700 सालों पहले दर्ज की गई थी. ये वो समय था जब पहली बार दुनिया ने न्यूजीलैंड को जाना था. ये लोग थे पॉलिनेशियन (ओशिएनिया देशों के बीच 1000 द्वीपों के समूह में रहने वाले लोग). इन लोगों ने जब शुरुआत में न्यूजीलैंड में रहना शुरू किया तो यहां नई सभ्यता बनाई और इस सभ्यता को नाम दिया माओरी सभ्यता. न्यूजीलैंड में ये लोग रच बस गए और फलने-फूलने लगे. फिर 1642 में पहली बार कोई यूरोपियन इस देश पहुंचा. ये थे डच नाविक एबल तस्मान. इसके बाद न्यूजीलैंड में दो सभ्यताओं का मिलन हुआ पहले माओरी और दूसरे डच.
तीसरी और सबसे अहम सभ्यता जो न्यूजीलैंड में आई वो थी ईसाई सभ्यता और ये हुआ 1769 में कैप्टन जेम्स कुक के आने से. इसके बाद न्यूजीलैंड में बाहरी लोगों का आना चलता रहा और धीरे-धीरे आइलैंड की शांति खत्म हो गई. 1840 में ब्रिटिश राज्य की तरफ से न्यूजीलैंड के माओरी लोगों के साथ एक संधि की गई. इसके बाद न्यूजीलैंड ब्रिटिश कब्जे में आ गया और संधि के मुताबिक माओरी लोगों को भी वही हक मिलने थे जो ब्रिटिश नागरिकों को मिलते थे.
इसके बाद पूरी 18वीं सदी में यूरोपियन लोग खुद को न्यूजीलैंड में रचाने बसाने लगे और माओरी और इनके बीच लड़ाइयां बढ़ने लगीं. एक समय ऐसा आया जब देश के अधिकतर हिस्से में Pākehā (माओरी भाषा के अनुसार यूरोपियन सभ्यता के न्यूजीलैंडर्स) के पास जमीन, घर, पैसा आदि हो गया और माओरी सभ्यता के लोग गरीब हो गए.
माओरी सभ्यता शांति नहीं हिंसा की भाषा बोलती थी-
माओरी सभ्यता काफी समय तक न्यूजीलैंड में बसती रही और इसलिए उन्होंने अपनी भाषा, तौर तरीके और रिवाज बना लिए थे. ज्यादा लोगों के आने के साथ-साथ ही इनके बीच विवाद भी बढ़ने लगे और ये विवाद एक ऐसी स्थिति पर पहुंच गए जहां माओरी लोग युद्ध के बाद अपने दुश्मनों को खा जाते थे. हालांकि, इस बात पर कई इतिहासकारों में मतभेद हैं, लेकिन ऐसा माना जाता था कि माओरी बेहद उग्र हो सकते हैं. अभी भी उनके लोकगीत या नाच में वो उग्रता देखी जा सकती है जिसमें वो भाले या अन्य हथियारों का इस्तेमाल करते हैं.
धीरे-धीरे माओरी सभ्यता के पतन शुरू हो गया और अब आलम ये है कि न्यूजीलैंड के ये मूल निवासी सिर्फ 15% ही रह गए हैं और उनमें से माओरी भाषा बोलने वाले तो सिर्फ 3% हैं. माओरी इलाकों में अभी भी न्यूजीलैंड का विकास देखने को नहीं मिलता है. वो लोग अधिकतर गरीब और बेरोजगार हैं और वहां जुर्म की घटनाएं होती रहती हैं.
सिर्फ इतना ही नहीं, माफिया का भी है न्यूजीलैंड पर राज-
न्यूजीलैंड में कई गैंग हैं जो तरह-तरह के जुर्म करती हैं. न्यूजीलैंड पुलिस ने तीन अहम गैंग्स के बारे में बताया है जो ब्लैक-पावर, मॉन्ग्रियल मॉब और नोमैड्स हैं. ये गैंग्स चोरी, ड्रग्स, हमला, स्मगलिंग आदि काम करती हैं. Ross Kemp की किताब Gangs के अनुसार पूरी दुनिया में न्यूजीलैंड सबसे ऊपर है जहां इतने कम लोगों में इतनी ज्यादा गैंग हैं. करीब 70 गैंग हैं जिनमें 4000 लोग हैं और ये भी सिर्फ 44 लाख की आबादी में.
बंदूकों के मामले में भी अव्वल है न्यूजीलैंड-
जहां कत्ल इस देश में अपवाद हैं वहीं बंदूकों के लिए नियम आसान हैं और 44 लाख की आबादी में 12 लाख बंदूके लाइसेंस के साथ लोगों के पास हैं. 1990 में एक बंदूकधारी ने न्यूजीलैंड में 13 लोगों को एक छोटे से विवाद के चलते मार डाला था और इसके बाद न्यूजीलैंड के बंदूक लाइसेंस लेने वाले नियम थोड़े सख्त कर दिए गए थे, लेकिन उसके बाद भी न्यूजीलैंड में बंदूकों की कमी नहीं है.
इस हिसाब से तो न्यूजीलैंड में जुर्म सबसे ज्यादा होना चाहिए था. पर ऐसा नहीं है. न्यूजीलैंड में इतनी तादाद में जुर्म नहीं होता है कि उसे लेकर लोग परेशान हों और यही कारण है कि इसे सबसे शांतिप्रीय देशों की लिस्ट में शामिल किया गया है.
सालों के खूनखराबे और जुर्म के इतिहास के बाद भी न्यूजीलैंड इस तरह की स्थिति में आ गया जहां उस देश के निवासी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. जहां के निवासियों ने वर्ल्ड वॉर के अलावा और कोई जंग नहीं लड़ी.
न्यूजीलैंड को चुनने का एक कारण ये भी था कि आतंकी ये बताना चाहता था कि सबसे सुदूर इलाकों में भी अप्रवासी बसे हुए हैं. न्यूजीलैंड में मुस्लिम जनसंख्या 1% से भी कम है और जिन लोगों की हत्या की गई है वो अधिकतर अप्रवासी ही थे.
न्यूजीलैंड में भले ही पहले कितनी भी घटनाएं हुई हों, लेकिन इस देश ने अपने इतिहास को भूलकर नए सिरे से शुरुआत की थी और एक शांतिप्रीय समाज की स्थापना की थी, लेकिन जिस तरह क्राइस्टचर्च वाला हमला हुआ है उससे इस देश का पुराना खूनी इतिहास याद आ गया.
ये भी पढ़ें-
Christchurch shooting: साबित हो गया कि आदिल अहमद डार और ब्रेन्टॉन टेरेंट एक जैसे ज़हरीले हैं
Christchurch shooting पर इमरान खान की आतंकवाद के खिलाफ खोखली दलीलें
आपकी राय