लो...अब यहां भी कंडोम कम पड़ गए!
जीबी रोड में करीब 5000 से ज्यादा वेश्याएं रहती हैं. एक आंकड़े अनुसार यहां हर महीने करीब छह लाख कंडोम का इस्तेमाल होता है. कंडोम की सप्लाई बंद होने के कारण यहां की सेक्सकर्मियों को इसे खरीदने के लिए अपने पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
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जीबी रोड. यहीं है दिल्ली का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया. इसकी गलियों से कई लोग भले ही परिचित नहीं होंगे लेकिन सुना सबने होगा. यहां की एक अपनी जिंदगी है और अपना मातम. लेकिन उस बारे में बात कभी और. फिलहाल बात उस चुनौती की, जो अब एक नई चुनौती के रूप में सामने आई है...
पिछले कई महीनों से जीबी रोड इलाके में कंडोम की सप्लाई बंद है. दरअसल, एड्स और दूसरे यौन रोगों की रोकथाम के लिए दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी मुफ्त में यहां कंडोम की सप्लाई करती है. देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी व्यवस्था है जहां स्थानीय प्रशासन और NGO मिलकर ऐसी पहल करते हैं. फिर वह एड्स जैसी बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने की बात हो या उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश...एक किस्म का प्रयास जो चलता रहता है.
कंडोम की सप्लाई बंद क्यों?
जीबी रोड में कंडोम की सप्लाई बंद होने की खबर दिल्ली महिला आयोग (DCW) के हवाले से आई है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने गुरुवार को जीबी रोड का दौरा किया था. सेक्सकर्मियों की ओर से कंडोम की सप्लाई में कमी की शिकायत की गई. आलम यह है कि उन्हें कंडोम खरीदने के लिए अपने पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
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जीबी रोड में करीब 5000 से ज्यादा वेश्याएं रहती हैं और एक आंकड़े अनुसार यहां हर महीने करीब छह लाख कंडोम का इस्तेमाल होता है. महिला आयोग ने हालात का जायजा लेने के बाद दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी को खत लिखकर कंडोम सप्लाई के बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और पूछा है कि सप्लाई क्यों बंद की गई.
दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी से सवाल
स्वाति मालीवाल ने दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी से कंडोम की सप्लाई बंद होने पर सवाल पूछे हैं. लेकिन कंडोम सप्लाई से इतर भी कुछ सवाल हैं जो पूछे जाने चाहिए. दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी का गठन 1998 में किया गया था. उद्देश्य यह कि ये एचआईवी और दूसरे यौन रोगों की रोकथाम की दिशा में काम करेगा. जमीन पर काम होता भी होगा. मैं इंकार नहीं करता. लेकिन सोसाइटी के बारे में और जानकारी के लिए जब आप इसके वेबसाइट का रूख करेंगे तो निराशा होगी और हैरानी भी. वेबसाइट के ज्यादातर सेक्शन 23 मार्च, 2014 के बाद से अपडेट ही नहीं हुए. विश्व में एड्स से ग्रसित कितने रोगी हैं, भारत या दिल्ली में ही कितने रोगी हैं, इसकी आखिरी गिनती दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी के पास केवल 2007 तक की है (वेबसाइट के अनुसार).
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पिछले एक साल में दिल्ली एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने एड्स से संबंधित जागरूकता फैलाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए, इस बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं. अरविंद केजरीवाल की सरकार के आने के बाद से नए स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की तस्वीर जरूर चस्पा कर दी गई है. कहीं फोटो गैलरी में एड्स डे (1 दिसंबर) के मौके पर आयोजित किसी कार्यक्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी दीप जलाते नजर आ रहे हैं. राहत की बात है कि कम से कम वेबसाइट 'अनाथ' नहीं हुआ है. कुछ न कुछ हो रहा है. लेकिन जरूरी सूचनाओं के नाम पर मामला ढीला है.
अब, आप राजनैतिक पार्टियों की वेबसाइट पर चले जाइए, सबकुछ चकाचक मिलेगा. चलिए, कोई बात नहीं...देश डिजिटल बने न बने चुनाव तो डिजिटल बन ही गया है. क्या यही काफी नहीं?
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