कैसे ट्रिपल तलाक़ कानून पुरुषों के खिलाफ है, जबकि दहेज कानून नहीं!
कांग्रेस वादा कर रही है कि अगर वो सरकार में आई तो ट्रिपल तलाक़ रद्द कर देगी (एक और शाह बनो). बीजेपी इसे पास कराने पर अड़ी रही (पूरी तरह सियासत). लेकिन इन दोनों के बीच उन मुस्लिम महिलाओं के प्रति संवेदना का क्या,जिन्हें तलाक़-तलाक़-तलाक़ कहकर छोड़ दिया गया?
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'बीजेपी ने इस ट्रिपल तलाक कानून से मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों से लड़ाने का माहौल तैयार किया है.'
'कांग्रेस ने ट्रिपल तलाक का विरोध इसलिए किया, क्योंकि ये वो हथियार है जो नरेंद्र मोदी ने तैयार किया है. जिससे मुस्लिम पुरुषों को जेल में डाला जा सके, थाने में खड़ा किया जा सके.'
'मैं वादा करती हूं कि 2019 में कांग्रेस की सरकार आएगी और हम इस बिल को खारिज करेंगे'.
ये वो बातें हैं जो कांग्रेस के अल्पसंख्यक महाधिवेशन में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने लोगों से कहीं. एक महिला के मुंह से ये बातें सुनकर मुझे सिर्फ शर्मिंदगी हुई. कम से कम एक महिला तो मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को समझ सकती है. लेकिन वो अगर किसी पार्टी में है तो उसे महिलाओं के हित नहीं बल्कि राजनीतिक हित समझ आते हैं. सत्ता में आने के लिए साम-दाम-दंड-भेद ये सबने सुना है, लेकिन आजकल आप इसे चरितार्थ होते देख सकते हैं.
#TripleTalaq "Congress will scrap Triple Talaq if voted to power in 2019"Congress leader Sushmita Dev. What a regressive thought by a party which boast of woman empowerment.Height of muslim appeasement for vote bank politics!#CongForTripleTalaq #SushmitaDev pic.twitter.com/GeYGXnnjJ6
— Geetika Swami (@SwamiGeetika) February 7, 2019
हम सालों से तीन तलाक और हलाला जैसे मसलों पर बहस करते आ रहे हैं, और इस सारी बहस को विराम तब लगा जब दिसंबर 2018 में तीन तलाक बिल लोकसभा में पास हो गया. मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य था, लेकिन चूंकि इस बिल में सजा के प्रावधान हैं लिहाजा कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इसके खिलाफ हैं.
लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता कि तीन तलाक से जिन महिलाओं की जिंदगी जहन्नुम हो रही है, उन महिलाओं के पति सजा के सिवाय और क्या डिजर्व करते हैं? हो सकता है कि लोग मेरी बात से सहमत न हों. तो ऐसे में इस ताजा मामले का जिक्र करना बेहद जरूरी हो जाता है. बरेली का ये मामला दिल को झकझोर कर रख देने वाला है.
2009 में एक महिला का निकाह हुआ. लेकिन दो साल तक बच्चा न होने पर ससुराल वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया. इस बीच देवर ने भी महिला के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की. लेकिन 2011 में महिला के पति ने उसे तीन तलाक दे दिया. महिला के घरवालों ने जब ससुरालवालों से मिन्नतें कीं तो महिला के सामने अपने ससुर के साथ हलाला करने की शर्त रख दी गई. मजबूरन महिला को ये शर्त माननी पड़ी. इसके बाद महिला का निकाह उसके ही ससुर से करा दिया गया. 10 दिनों तक ससुर ने कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया. और फिर तलाक दिया. अब महिला के पति ने महिला से दोबारा निकाह किया. लेकिन ससुर इसके बावजूद भी महिला के साथ दुष्कर्म करता रहा. इतना ही नहीं जनवरी 2017 में पति ने उसे फिर से तलाक दे दिया. अब महिला पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो इस बार अपने देवर के साथ हलाला करे. महिला ने तब जाकर ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
सुनिए इस महिला की आप बीती-
CONGRESS party feels very sad for d pathetic condition of women(as it claims)but d most surprising fact is dat it doesn't try to listen problems of such ladies????who really want justice because party is more worried for Mullas than these.#TripleTalaq "AICC Minority Department" pic.twitter.com/AhcYoRiqCy
— Karuna tyagi (@i_am_karuna) February 7, 2019
अब आप इस महिला के बारे में सोचिए और बताइए कि क्या उसे महज नोचकर खाने की चीज नहीं समझा गया? परिवार के तीनों पुरुष सदस्यों ने ट्रिपल तलाक और हलाला को हथियार बनाकर महिला का सिर्फ इस्तेमाल किया. क्या ये अपराध नहीं है?
हाल ही में एटा से भी एक मामला आया था कि एक महिला गांव में ही अपनी बीमार दादी को देखने के लिए गई थी. उसने पति से 30 मिनट में वापस आने की बात कही थी. लेकिन मायके में 30 की जगह 40 मिनट हो गए. इसपर पति ने फोन पर महिला को तलाक-तलाक-तलाक कह दिया. अब इस पति ने इतनी छोटी सी बात पर पत्नी को तलाक दे दिया. अब पत्नी कैसे जीवन बिताए ये उसका सिरदर्द नहीं क्योंकि पति ने तो तलाक दे दिया.
महिलाओं का तीन तलाक के खिलाफ अदालत का दरवाजा खट-खटाना खुद इस बात का सुबूत है कि महिलाएं परेशान हैं
ये महज दो उदाहरण हैं जो ये बताते हैं कि किस तरह तीन तलाक को पुरुष हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं. पति या पत्नी को तलाक देना अपराध नहीं होता लेकिन तलाक लेने के लिए एक मजबूत आधार तो हो. मुस्लिम पुरुष हमेशा ही ट्रिपल तलाक का नाजायज इसतेमाल करते आए हैं. गुस्सा आ गया और हो गया तलाक. क्या उनके जीवन में महिलाओं की यही औकात है?
ट्रिपल तलाक बिल को लाने के पीछे सिर्फ महिलाओं को न्याय दिलाने का एक ही मकसद नहीं था. बल्कि इस तरह का कड़ा कानून लाकर सरकार ने पुरुषों की उस मानसिकता को भी खत्म करने का प्रयास किया है. क्योंकि ट्रिपल तलाक पुरुषों के दिमाग में बसता है. उसी तरह जैसे दहेज लेना लोगों के दिमाग में बसता है. और इसी दहेज की वजह से मासूम महिलाओं को कत्ल कर दिया जाता है. लेकिन दहेज के कानून को पुरुषों के खिलाफ नहीं माना जाता. क्या कांग्रेस इस बात का जवाब देगी?
मोदी सरकार ने इस बिल को लाकर मुस्लिम महिलाओं को तोहफा दिया है. लोग इसे राजनीतिक स्टंट कहें तो कह सकते हैं लेकिन इसमें महिलाओं का हित है इसे कोई झुठला नहीं सकता. लेकिन इस बिल को खारिज करने की बात कहकर कांग्रेस ने ये साबित कर दिया कि वो क्या कर रही है. सरकारों का काम ही एक दूसरे के फैसलों को गलत ठहराना होता है. लेकिन इसमें उन महिलाओं का क्या जो आने वाले समय में उम्मीदें लगाकर बैठी थीं कि अब उनका भविष्य सुरक्षित है. कांग्रेस ने ये कहकर उन महिलाओं की उम्मीदों को फिर से तोड़ने का काम किया है. और ऐसे में हम तो यही चाहेंगे की कांग्रेस सत्ता में न आए....कम से कम मुस्लिम महिलाओं का तो भला होगा.
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