देश का पोलियो सुरक्षा चक्र गहरे संकट में !
गाजियाबाद में स्थित मेडिकल कंपनी बायोमेड द्वारा बनाई गई ओरल पोलियो वैक्सीन या ओपीवी में टाइप-2 पोलियो वायरस पाए जाने की खबर से पोलियो की लौटने की संभावना जताई जा रही है.
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भारतीय स्वास्थ्य तंत्र की गंभीर खामियों के कारण पोलियो के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम को गंभीर झटका लगा है. सरकार के पोलियो टीकाकरण के तहत बच्चों को पोलियो वैक्सीन की जो खुराक पिलाई जा रही थी उसमें ही दुनिया भर से खत्म हो चुके पोलियो के खतरनाक टाइप-2 वायरस मिलने की पुष्टि हुई है. अब तक कम से कम टाइप-2 वायरस से युक्त तीन बैच के 1.5 लाख शीशियों की पुष्टि हो चुकी है.
आम जनता के स्वास्थ्य को लंबे समय से नुकसान पहुंचाने वाला 'पोलियो' एक बार फिर भारत में लौट सकता है. ज्ञात हो, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मार्च 2014 में भारत को औपचारिक रूप से पोलियो मुक्त घोषित किया था.
पोलियो टीकाकरण के तहत बच्चों दी जाने वाली वैक्सीन में पोलियो के खतरनाक टाइप-2 वायरस मिलने की पुष्टि हुई है
इस संपूर्ण मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि टाइप-2 वायरस वाली यह दवा बच्चों को पिछले दो वर्षों से लगातार पिलाई जा रही थी. महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में टाइप-2 पोलियो वायरस से युक्त दूषित पोलियो ड्रॉप्स बच्चों को पिलाई गई हैं. दरअसल, दिल्ली से समीप गाजियाबाद में स्थित मेडिकल कंपनी बायोमेड द्वारा बनाई गई ओरल पोलियो वैक्सीन या ओपीवी में टाइप-2 पोलियो वायरस पाए जाने की खबर से पोलियो की लौटने की संभावना जताई जा रही है. बायोमेड कंपनी सरकारी टीकाकरण अभियान के लिए पोलियो वैक्सीन की सप्लाई करती है. ये मामला तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश के कुछ बच्चों के मल में इस वायरस के लक्षण पाए गए. इस रिपोर्ट के बाद ओपीवी वैक्सीन के सैंपल को कसौली के सेंट्रल ड्रग लैबोरेटरी भेजा गया. इसी जांच में इस बात की पुष्टि हुई कि सैंपल में टाईप-2 पोलियो वायरस मौजूद हैं.
पहले पोलियो टीकाकरण को समझिए
इस संपूर्ण मामले में हुई लापरवाही को समझने के लिए आवश्यक है कि हमलोग पोलियो टीकाकरण को समझें. पहले टाइप 1, 2 और 3 वायरस वाले पोलियो वैक्सीन इस्तेमाल में थे. लेकिन वैश्विक स्तर पर खतरनाक टाइप-2 वायरस के खात्मे के बाद टाइप 1 और टाइप-3 वायरस वाले वैक्सीन का प्रयोग शुरू हुआ. वैश्विक स्तर पर खतरनाक टाइप-2 वायरस के आखिरी मामले को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 1999 में दर्ज किया था. ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सहित संपूर्ण दुनिया को टाइप- 2 पोलियो वायरस से मुक्त घोषित कर दिया था. लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अब भी टाइप-1 और टाइप-3 के रोगी पाए जाने के कारण भारतीय पोलियो टीकाकरण में टाइप-1 और टाइप-3 पोलियो वायरस के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करने वाले पोलियो वैक्सीन प्रयोग किए जा रहे हैं. क्योंकि पोलियो वायरस अत्यंत संक्रामक प्रकृति के हैं.
टाइप-2 पोलियो वायरस की वैश्विक समाप्ति के बाद वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को वर्ष 2016 में भारत में आदेश दिया गया था कि 25 अप्रैल 2016 तक पोलियो टाइप-2 वायरस को नष्ट कर दिया जाए. बिल्कुल स्पष्ट निर्देश था कि जिस भी वैक्सीन में टाइप-2 वायरस हों, उस ओरल पोलियो वैक्सीन को नष्ट कर दिया जाए. ओरल पोलियो वैक्सीन से टाइप-2 घटक को हटाने का फैसला इसलिए किया गया था ताकि वैक्सीन से उत्पन्न होने वाले पोलियो वायरस से पोलियो होने के खतरे को कम किया जा सके.
पोलियो टीकाकरण अभियान पर खतरा
संपूर्ण प्रकरण में गंभीर लापरवाहियां
इस संपूर्ण प्रकरण में स्वास्थ्य मंत्रालय की कई खतरनाक लापरवाहियां लगातार सामने आ रही हैं. सबसे पहले- जब 25 अप्रैल 2016 तक सभी दवाई कंपनियों को टाइप-2 पोलियो वायरस वाले वैक्सीन को नष्ट कर देना था, तो गाजियाबाद के बायोमेड कंपनी ने इसको नष्ट क्यों नहीं किया? सभी कंपनियों को पोलियो सर्विलांस टीम के समक्ष दवाओं को नष्ट करने का सर्टिफिकेट लेना था. बायोमेड कंपनी ने टाइप-2 पोलियो वायरस वाली वैक्सीन को बिना समाप्त किए ही आखिर नष्ट करने वाले सर्टिफिकेट कैसे प्राप्त किए? अगर गलत ढंग से सर्टिफिकेट प्राप्त कर भी लिए तब भी 2 वर्षों तक बच्चों को प्रतिबंधित टीके की दवाई का लगातार सप्लाई क्यों की गई?
पोलियो मुक्त भारत पर खतरा क्यों?
ओपीवी में एक कमजोर वैक्सीन वायरस होता है, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रक्रिया(इम्यून रिस्पॉन्स) सक्रिय होती है. जब बच्चे को पोलियो टीके की खुराक दी जाती है, तब उसमें एंटीबॉडी निर्माण के साथ प्रतिरक्षा विकसित होती है. इसके साथ ही वायरस मल के साथ बाहर निकल जाता है.
WHO के मुताबिक जहां पर्याप्त साफ-सफाई न हो, वहां मल के जरिए बाहर आया ये वायरस फैल सकता है. ये वैक्सीन वायरस आनुवांशिक बदलाव के बाद लकवा मारने का कारण बन सकता है. इस टीके से उत्पन्न होकर फैलने वाला पोलियो वायरस या सीवीडीपीवी(cVDPV- circulating vaccine-derived polio virus) कहते हैं. वर्ष 2015 तक करीब 90 फीसदी cVDPV के मामले पोलियो टीके की खुराक में इस्तेमाल टाइप-2 वायरस के कारण पाए गए थे. दूसरे शब्दों में कहें तो टाइप-2 पोलियो वायरस से यूं भी पोलियो के फैलने का पैटर्न काफी ज्यादा है. जैसा हमलोग पहले ही जान चुके हैं कि ओरल पोलियो वैक्सीन में कमजोर पोलियो वायरस का प्रयोग होता है. लेकिन गाजियाबाद के बायोमेड दवाई कंपनी के ओपीवी में वाइल्ड या सक्रिय टाइप-2 वायरस ही प्राप्त हुए हैं जो अत्यंत खतरनाक हैं.
जब टाइप-2 का कमजोर पोलियो वायरस भी फिर से फैलने की क्षमता रखता था, तो अब बायोमेड दवाई कंपनी के वैक्सीन से सीधे खतरनाक टाइप-2 वायरस से खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है. अब तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना में खतरे की घंटी बज गई है.
इस लापरवाही से पोलियो सुरक्षा चक्र बेहद कमजोर हो जाएगा
फिलहाल बायोमेड दवाई कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया है. इसके अलावा ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने अगले आदेश तक बायोमेड को किसी भी दवाई के निर्माण, बिक्री या वितरण पर रोक लगा दी है.
पोलियो वायरस के अत्यंत संक्रामक होने के कारण खतरा गंभीर
पोलियो के संदर्भ में स्कैनिंग तीन चरणों में पूरी की जाती है- पहला- टीकाकरण, दूसरा- वायरस से प्रभावित बच्चों का परीक्षण और तीसरा- पोलियो सर्विलांस(पोलियो निगरानी). अगर ये तीनों कसौटियां ठीक हैं तो पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि जोखिम कम होगा, क्योंकि पोलियो की निगरानी करने का तरीका उच्च मापदंड वाला है. लेकिन गाजियाबाद की बायोमेड कंपनी जिस तरह से लगातार दो वर्षों तक प्रतिबंधित वैक्सीन का सरकारी पोलियो टीकाकरण में प्रयोग करती रही उससे तय है कि व्यवस्था में निगरानी तंत्र काफी कमजोर हो चुका है. अगर 2000 में से एक बच्चा भी प्रभावित है, तो पोलियो सुरक्षा चक्र कमजोर हो जाता है और जोखिम पांच फीसदी बढ़ जाता है या निगरानी के दौरान कोई बच्चा छूट जाता है, तो जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है. ऐसे में इस बार की लापरवाही से पोलियो सुरक्षा चक्र कितना कमजोर हुआ होगा, उसका अनुमान लगाया जा सकता है.
जून 2016 में भी दक्षिणी राज्य तेलंगना में पोलियो का सक्रिय वायरस राज्य की राजधानी हैदराबाद में मिला था. इसके बाद स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए केवल हैदराबाद में तीन लाख से ज्यादा बच्चों का अलग से टीकाकरण किया गया था. इस बार जिस तरह से भारत के तीन राज्यों में दो वर्षों से लापरवाही बरती गई, इससे सुरक्षा के लिए टीकाकरण कार्यक्रम के संपूर्ण सुरक्षा ढ़ांचे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
सरकार कह रही है कि इससे कोई खतरा नहीं है. लेकिन इसके बाद स्वयं अभी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तीनों राज्यों में पोलियो टीकाकरण को स्थगित कर दिया है, जिससे सरकारी पोलियो टीकाकरण खुद लकवाग्रस्त हो गया है. अब उन प्रभावित बच्चों को जिन्हें प्रतिबंधित वैक्सीन पिलाई गई है, उनका ध्यान रखने की बात की जा रही है. लेकिन स्वयं स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार उन बच्चों की पहचान में काफी समस्याएं आ रही हैं.
जहां पहले से ही देश के वर्ग विशेष में पोलियो टीका कार्यक्रम के प्रति संदेह रहे हैं ऐसे में इस घटना से पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम के प्रति जनता में अविश्वास काफी बढ़ सकता है, जिसे शीघ्र दूर करने की आवश्यकता है. लेकिन पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम में जिस प्रकार की असावधानियां लगातार दिख रही हैं, वह अत्यंत खतरनाक हैं. अभी सितंबर माह में ही पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में बच्चों को पोलियो ड्रॉप्स के स्थान पर हेपेटाइटिस-बी के टीके की दवा पिला देने पर बीमार 114 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. आवश्यक है कि स्वास्थ्य मंत्रालय पोलियो टीकाकरण में हुई इस भयानक लापरवाही को छिपाने के स्थान पर जिम्मेदार लोगों पर कठोर कार्यवाई करे. अब तक इस प्रकरण में केवल बायोमेड कंपनी के एमडी को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन जिन लोगों ने कंपनी को गलत ढंग से टाइप-2 वायरस को नष्ट करने का प्रमाण पत्र दिया, उनपर भी कठोर कार्यवाई हो. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस संपूर्ण घटनाक्रम के बाद अब हर वैक्सीन में सभी तरह के वायरस की जांच के नियम बनाए हैं. अगर यही नियम शुरुआत से ही बना होता तो पोलियो सुरक्षा चक्र लगातार दो वर्षों से टूटता नहीं रहता.
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