आखिर ताजमहल से इतनी नाराजगी क्यों...???
विश्व के सात अजूबों में शुमार ताजमहल को उत्तर प्रदेश की पर्यटन बुकलेट से हटाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चौतरफा निंदा झेल रहे हैं.
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मुझे अभी तक याद है, 2010 में शिकागो स्थित मेरी लैंड-लेडी के पास एक छोटा सा ताजमहल का नमूना हुआ करता था. जोकि उन्हें उनके किसी हिंदुस्तानी दोस्त ने वापस आते वक्त दिया था. शायद उस वक्त तक ताजमहल को हिंदुस्तान की पहचान की तरह देखा जाता था. मुझे एक और किस्सा याद आता है कि, कैसे मेरे एक मित्र जोकि केपटाउन में रहते हैं उन्होंने मुझसे पुरजोर आग्रह किया था कि जब वह हिंदुस्तान आए तो मैं उन्हें ताजमहल जरूर दिखाने ले जाऊं.
यह बातें इसलिए ही अचानक जहन में आई क्योंकि सात समंदर पार के लोगों के लिए आज भी ताजमहल भारत का पर्याय है. न जाने कितनी फिल्मों और कार्टून्स में भारत का मतलब ताजमहल है. दुनिया के नक्शे में, भारत की आकृति पर दिल्ली दिखे न दिखे, ताजमहल जरूर दिखता है. लेकिन हमारी अपनी ही सरकार ताजमहल को सांस्कृतिक विरासत नहीं मानती. भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों वार्षिक बजट पेश किया गया. इस बजट में राज्य के धार्मिक और सांस्कृतिक नगरों को बढ़ावा देने के लिए हमारी सांस्कृतिक विरासत के नाम पर एक अलग कोष आवंटित किया गया है. लेकिन ताज्ज़ुब की बात ये है कि, इसमें राज्य की सबसे महत्वपूर्ण इमारत ताजमहल को शामिल नहीं किया गया.
ताज महल को उत्तर प्रदेश ने अपनी पर्यटन लिस्ट से हटा दिया है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ताजमहल को गैर भारतीय मानते हैं और उनके हिसाब से यह भारत की संस्कृति को नहीं विम्बित करती है. क्योंकि इसे आक्रमणकारियों ने बनवाया था. इस बजट में अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, काशी, चित्रकूट जैसे धर्मस्थलों के लिए बहुत सारी योजनाओं की घोषणा की गई है. लेकिन ताजमहल, कुछ और इमारतें और मकबरों को इस योजना से अलग रखा गया है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि, इसे हिंदुत्व से प्रभावित एक एजेंडे के तहत किया गया है. सरकार ने वाराणसी, मथुरा और अयोध्या में सांस्कृतिक केंद्रों के निर्माण और ढांचे में सुधार के लिए दो हजार करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है. लेकिन सांस्कृतिक विरासत की सिर्फ हिंदू धर्म के जरिए पहचान करने की कोशिश करना, क्या वाकई में हमारी विरासत के साथ खिलवाड़ नहीं है? विश्व के तीन ऐतिहासिक इमारतें आगरा में हैं. उन्हें पर्याप्त संरक्षण और बजट की जरूरत है, और अगर इस जरूरत को नकारा गया तो इससे पर्यटन को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
आपको बताते चलें कि, अभी हाल ही में योगी आदित्यनाथ जी ने बिहार की दरभंगा रैली मैं कहा था कि ताजमहल एक इमारत के सिवा और कुछ नहीं है. उन्होंने ये भी कहा था कि, जब देश का कोई प्रमुख विदेश जाता तो वह ऐसी चीज साथ ले जाता था, जो भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती थी. इसी तरह जब अन्य देशों के प्रतिनिधि भारत आते थे तब उन्हें भी ताजमहल या किसी अन्य मीनार की प्रतिकृति दी जाती थी. जबकि यह एक चीज है जो भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी.
योगी आदित्यनाथ कई मौकों पर कह चुके हैं कि ताजमहल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है इस दौरान उन्होंने कहा था इसमें पहली बार बदलाव हमने तब देखा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में विदेश गए उन्होंने अन्य देशों के प्रमुखों को गीता और रामायण दी. ज्ञात हो कि था की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इससे पहले भी इस बेशकीमती और बेमिसाल इमारत के प्रति अपना नफरत भरा और नकारात्मक रवैया दिखा चुके हैं और इस बार उन्होंने हदें पार कर दी हैं. कहा अगर ताजमहल हमारी सांस्कृतिक विरासत नहीं है तो अब विश्व के सात अजूबों में ताजमहल की जगह पर योगी जी को अपना नाम शामिल करवा लेना चाहिए.
दरअसल एक अजीब सा सिलसिला शुरू हो गया है. राष्ट्रवादियों के ढोंग के चलते सिलसिलेवार जगहों के नाम बदले जा रहे हैं. सरकार ने मुगलसराय का नाम बदल दिया है क्योंकि उसके साथ मुगल लगा हुआ है. पाठ्यपुस्तकों में से राजा अकबर के नाम के साथ महान लिखा जाता था अब नहीं लिखा जाता. अकबर से युद्ध लड़ने वाले राणा प्रताप के नाम के साथ अपमान शब्द को जोड़ दिया गया है. ताजमहल भी एक समय से निशाने पर है. लेकिन यह विश्व की धरोहरों में से एक है इसीलिए यह मामला कभी ज्यादा परवान नहीं चढ़ पाया.
योगी आदित्यनाथ के इस फैसले के बाद हर तरफ उनके आलोचक उनकी आलोचना कर रहे हैं
इन कथित राष्ट्रवादियों की अवधारणा है कि हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख भारत के मूल निवासी हैं और मुस्लिम-इसाई चाहे वह भारत में ही क्यों न जन्में हों. वह भारत के नागरिक नहीं हैं. मजेदार बात ये है कि, ये इस तथ्य को भी निकाल देते हैं कि, आर्य 4000 साल पहले मध्य एशिया से होते हुए भारत आए और ये जबरन यह भी मनवाने पर तुले रहते हैं कि आर्य यहां के मूल निवासी थे. असल में यह हमलावर वाली कहानी इन्होंने इसलिए रची है ताकि आम हिंदुओं के मन में नफरत फैल जाए और इसे ये हथियार बनाकर, मानसिक दिवालिया लोगों की भीड़ इकट्ठा कर सकें.
ये भीड़ इनकी इस थ्योरी पर यकीन करती है, जिससे दिन-ब-दिन ईसाइयों और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत के जहर को बढ़ावा मिलता है. शायद ये नफरत ही है जिसके कारण ये मध्यकालीन और पूर्व आधुनिक काल यानी 1206 से लेकर 1707 तक के कालखंड को भारतीय इतिहास का इस्लामिक युग मानते हैं. और यही वजह है कि लोग इस कालखंड में बने हुए ताजमहल को भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं मानते हैं.
यह वाकई चौंकाने वाली बात है कि, जब पूरी दुनिया में ताजमहल को भारतीय धरोहर के रूप में ख्याति मिली हुई है, ऐसे में राष्ट्रवाद की नई लहर में मुगल बादशाह और उनकी बनाई इमारतें भी नफरतों की चपेट में आ रही हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि केंद्र और राज्य में दोनों जगह पर हिंदुत्व समर्थक सरकारे काबिज हैं. तो उसी का लाभ लेते हुए कुछ लोग भारतीय इतिहास को पुनःपरिभाषित करना चाहते हैं और तथ्यों के साथ खिलवाड़ करना चाहते हैं.
लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री सम्पूर्ण प्रदेश के हैं तो उनका फैसला सबके लिए होना चाहिए
ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया से आए हुए वह लोग जो यहां की संस्कृति में घुल मिल गए, जो भारत के हो गए उन्हें भी ये भारतवासी नहीं मानते. असल में योगी आदित्यनाथ हिंदू विचारधारा समर्थक हैं, जो यह मानती है कि सिर्फ हम अंग्रेजो के राज में ही गुलाम नहीं थे मध्ययुग में मुगल काल को भी वह गुलामी का समय मानते हैं.
उनकी यही विचारधारा हमारी गंगा जमुनी तहजीब को नकार देती है जिसे वो संरक्षण भी नहीं देना चाहते. जबकि ताजमहल को बनाने वाला शाहजहां एक भारतीय राजा था उसके पूर्वज सैकड़ों साल पहले हमलावर की शक्ल में जरूर आए होंगे पर उनकी आने वाली नस्लें हिंदुस्तानी मिट्टी में अच्छी तरह से रच बस गई.
पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन राजाओं को भी हमलावर की शक्ल में देखेंगे. कई इतिहासकार मानते हैं कि, उत्तर प्रदेश को सिर्फ हिंदू विरासत की वजह से देखा जाना हमारी सांझी संस्कृति और सभ्यता पर प्रहार है. जिसके आगामी परिणाम अच्छे ना होंगे.
योगी आदित्यनाथ एक हिंदू साधू हैं, जो पहले से सांसद बने और उसके बाद मुख्यमंत्री. वह पहले भी अपने भड़काऊ कट्टर भाषणों के लिए विवादों में रहे हैं तो उनसे वैसे भी उम्मीदें कम थी. पर कहीं न कहीं एक आम भारतीय चाहे वह मुस्लिम हो या एक समझदार हिंदू उनसे एक मुख्यमंत्री के तौर पर सही और धर्मनिरपेक्ष फैसलों की उम्मीद जरूर की थी. एक मुख्यमंत्री होने के नाते वह शायद इतना तो कर ही सकते थे.
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