'ना' कहने के टाइप जान लीजिए क्योंकि बलात्कारी तो बाज आएंगे नहीं !
दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने पीपली लाइव के निर्देशक मेहमूद फारूकी पर लगे रेप के आरोप पर सुनवाई करते हुए लड़की की 'ना' में भी लकीर खींच दी है.यानी अब लड़कियों को नए सिरे से 'ना' कहना सीखना होगा.
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“लड़कियों की ना में हां होता है!” और ये कहकर वे सब ठहाका लगाकर हंस पड़े. साथ ही सामने वाली की 'ना' को भी हां समझ बैठे!
ये समझ बहुत ही जरूरी होती है. बताइए लड़की को समझ ही नहीं आता कि आखिर उसे सामने वाले को हां कहना है कि ना!
बलपूर्वक सम्बन्ध बनाने वाले को वह किस एंगल से 'ना' कहे कि आखिर बलात्कार लगे! वह कितनी जोर से 'ना' कहे कि वाकई पूरे समाज को और जज साहब को यह लगे कि सच में 'ना' कहा था! ये वाकई का 'ना' क्यों नहीं कभी हो पाता?
वह बार बार जोर-जोर से चीखती है. “मैंने ना कहा था, मैंने ना कहा था!” और सब हंस रहे हैं! वह भी हंस रहा है जो उसकी 'ना' को हां समझकर उसके ऊपर कूद गया था. “जाओ, लड़कियों की तो ना में ही हां है!”
और हां करने वाली लडकियां? ये हां करने वाली लडकियां भी कोई लडकियां होती हैं?
जब न करने वाले लड़कियों पर यह समाज यकीन नहीं करता है तो हां करने वाली लडकियां तो पक्का ही बाज़ार की होंगी! सिम्पल!
तो अब आते हैं, 'ना' कहने वाली लड़कियों पर! मीलॉर्ड ने एक अजीबो-गरीब फैसले में पीपली कोर्ट के निर्देशक को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सवाल भी बहुत दिलचस्प किया कि- क्या ऐसी कोई घटना हुई थी या नहीं? अगर हुई थी तो क्या पीड़िता की सहमति से हुआ? क्या फारूकी पीड़िता की बात समझ पाया? ऐसे में फारूकी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए. निचली अदालत के फैसले को रद्द किया जाता है. माननीय ने कहा कि फारुकी को पता ही नहीं था कि लड़की की 'ना' है. और यदि उसकी 'ना' भी थी, तो कई बार ऐसा होता है कि शारीरिक सम्बन्धों में लड़की 'ना' कहती ही है!
ना के भी प्रकार होते हैं अच्छा हुआ बता दिया
मीलॉर्ड, मीलॉर्ड, मीलॉर्ड! कितना गजब कर गए आप!
'ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे' को सुनकर ही शायद बड़े हुए थे. मगर आपने यह नहीं बताया कि वे पैमाने क्या हैं, जिनपर लड़की यह साबित कर सके कि उसकी 'ना' वाकई में 'ना' ही है! ये तो वही वजह हुई कि लड़की ने इतनी टाईट जींस ही पहनी हुई थी कि हाथ मचल ही गए!
ये लडकियां भी न! 'ना' कहना नहीं जानतीं!
'ना' माने 'ना', मगर कुछ शर्तों के साथ! ये शर्तें कौन तय करेगा?
ये आप ही हैं न जिसने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि उसे किसी ने किस मंशा के साथ छुआ है वही तय करेगी! और इस तरह के अजीबोगरीब फैसले का विरोध करने के बजाय उन लोगों में इस समय एकदम सन्नाटा है, जो बनारस की लड़कियों के लिए लड़ रहे हैं! लड़कियों की दरअसल समस्याएं ही इतनी हैं, कि किस-किस पर आन्दोलन करे? किस-किस से? किस-किस के खिलाफ?
तो हम सब अपने दरवाजे तय कर बैठे हैं. इधर इतना जाना है. उधर उतना जाना है. मगर लड़की को कहां जाना है? ये कौन तय करेगा?
बोलो लड़कियों बोलो. और 'ना' इतनी जोर से बोलो कि सुनाई पड़े कि 'ना' कहा है! अपनी मुस्कान को ऐसा न बनाओ कि वह ना को हां समझने लगे!
फारूकी साहब संबंध बनाकर बरी भी हो चुके हैं. उनका बरी होना भारतीय न्यायपालिका पर एक बड़ा धब्बा है. लडकियों बनारस हो या दिल्ली. ये लड़ाई तुम्हारी अपनी है, जिसमें कोई जस्टिस आशुतोष कुमार, कभी छेड़छाड़ करने वाले लड़कों, तो कभी माननीय फारूकी साहब के साथ खड़े होंगे! ये अपने लोगों के बचाव में तमाम तर्क देंगे! ये कभी निर्भया को दोषी ठहराएंगे. कभी छोटी बच्ची के बलात्कार के लिए उसकी मां को. और फारूकी साहब जैसे होंगे तो वे इतने प्यार से बलात्कार करेंगे कि वह बलात्कार लगेगा ही नहीं!
ना खुलकर कहना सीखो. खूब खुलकर! चीखकर. चिल्लाकर. और मौक़ा पड़े तो मारकर! मगर ना कहो. नहीं तो फारूकी साहब अपनी आने वाली फिल्म स्त्री के सशक्तिकरण पर कुर्बान कर देंगे और कहीं कोने में कहीं फिर से कोई 'ना' बोया जा रहा होगा! हम लोग सऊदी अरब का उदाहरण देते हैं न कि वहां पर बलात्कार साबित करने के लिए चार गवाह लेकर जाने होते हैं. मगर यहां पर? यहां पर कितने गवाह लेकर जाने होंगे? वो भी सिर्फ ये बताने के लिए कि जज साहब हमारी 'ना' का मतलब 'ना' ही था.
'ना' को 'ना' ही रहने दीजिए!
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