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सोनाली मिश्र
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समाज
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सोनाली मिश्र
@sonali.misra1
बच्चों को ब्रांडेड क्रेच में डालिए, फिर ब्रांडेड वृद्धाश्रम का मजा लीजिए
सामाजिक अकेलेपन से बाहर निकलने के लिए आज परिवार के एक होने की आवश्यकता है. जरूरत है परिवार के एक एक तार को जोड़ने की. आज बच्चों को ऐसा साथ चाहिए जो उनकी तोतली भाषा को समझे. उनकी कल्पनाओं को उड़ान दे.
समाज
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4-मिनट में पढ़ें
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सोनाली मिश्र
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बलात्कार को उम्र में बांटकर जुर्म को छोटा बताना अपराध है...
ये तो पहले से ही लड़की को दोषी ठहराए जाने की एक मानसिकता है, वह इन लड़कों को प्रेरित करती है, वह इन लड़कों को प्रेरित करती है कि जाओ और जाकर उन पर आक्रमण करो.
समाज
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3-मिनट में पढ़ें
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सोनाली मिश्र
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साल तो खत्म हो गया लेकिन क्या महिलाएं सिंदूर चूड़े से आगे बढ़ पाईं?
स्त्रियों के साथ इस समय समाज का रवैया अजीब चल रहा है. यही अजीबपन इस साल भी रहा और कुछ भ्रमों के चलते इसके आगे भी चलने की संभावना है. महिलाओं के लिए अपराध कम हुए या बढ़े यह सवाल नहीं है. सवाल यह है की क्या वे अपने साथ होने वाले अपराधों के लिए आवाज़ उठाने में सफल हुई हैं?
समाज
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4-मिनट में पढ़ें
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सोनाली मिश्र
@sonali.misra1
'ना' कहने के टाइप जान लीजिए क्योंकि बलात्कारी तो बाज आएंगे नहीं !
दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने पीपली लाइव के निर्देशक मेहमूद फारूकी पर लगे रेप के आरोप पर सुनवाई करते हुए लड़की की 'ना' में भी लकीर खींच दी है.यानी अब लड़कियों को नए सिरे से 'ना' कहना सीखना होगा.
समाज
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7-मिनट में पढ़ें
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सोनाली मिश्र
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असफल समाज का बोझ लड़की के कंधों पर न डालें
समाज को अब लड़कियों के साथ खड़ा होना होगा, उनमें यह भरोसा जगाना होगा कि यदि वे सड़क पर किसी लड़की के साथ हो रही दरिंदगी का सामना करती हैं, तो उसमें पूरा समाज और व्यवस्था उनके साथ होगी.
समाज
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सोनाली मिश्र
@sonali.misra1
मातृत्व महान हो या नहीं पर सहज जरुर होना चाहिए
मां बनते समय स्त्री एक ऐसे दौर से गुजरती है, जिसमें मिक्स्ड इमोशन होते हैं. भगवान के लिए, माँ को भगवान का दर्जा दें या न दें, उसे यह अधिकार तो दें, कि वह कब माँ बनना चाहती है.
समाज
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सोनाली मिश्र
@sonali.misra1
निर्भया के बहाने मानसिकता का विश्लेषण
“बहुत गलत हुआ, फांसी देनी चाहिए, मगर लड़कियों को सोचना चाहिए न कि घर से बाहर न निकलें, रात में? अरे रात में तो देव भी सो जाते, तो लड़की जात की क्या बिसात”
समाज
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3-मिनट में पढ़ें
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सोनाली मिश्र
@sonali.misra1
द्विअर्थी संवाद से निपटने का हथियार भी महिलाओं को ही सोचना होगा
न जाने कितनी महिलाएं हर रोज द्विअर्थी संवादों का शिकार होती हैं. क्या ये शोषण नहीं?? प्रश्न बहुत हैं, मगर सबसे बड़ा प्रश्न है इस तरह के द्विअर्थी संवादों से स्त्री का पार पाना!