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Updated: 03 नवम्बर, 2017 01:59 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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मोदी सरकार की एक उच्‍च स्‍तरीय आंतरिक रिपोर्ट ने नोटबंदी को कमाल बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को 5 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ है. इस फायदे को गिनाते हुए जो गणित पेश किया गया है, वह कुछ इस तरह है:

1. नोटबंदी से पहले मुद्रा प्रचलन में थी: 17.77 लाख करोड़ रु. (500 और हजार के नोटों वाले 15.44 लाख करोड़ रुपए और सौ रुपए और छोटी मुद्रा के 2.77 करोड़ रुपए)

2. नोटबंदी से पहले वाली स्‍पीड से नोट छापे जाते तो कुल करेंसी 19.25 लाख करोड़ रुपए होती.

3. आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 14.2 लाख करोड़ रुपए चलन में हैं.

*** यानी, सरकार के अनुमान के मुताबिक अर्थव्‍यवस्‍था को 5 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ. ***

demonetisation, loss

नोटबंदी के नुकसान या फायदे का आंकलन करें तो कुछ गिनती के आंकड़ों से सरकार की खुशफहमी हवा हो जाती है. आइए, अब सरकार के इस दावे का बारीकी से अध्‍ययन करते हैं:

1. RBI ने यह आंकड़ा तो कभी जारी नहीं किया कि नोटबंदी के दौरान कितनी करंसी लोगों ने लौटाई. लेकिन ब्‍लूमबर्ग के अलावा देश के सभी बड़े मीडिया संस्‍थानों ने कई बैंकों और आरबीआई सूत्रों के हवाले से बताया था कि 31 दिसंबर 2016 तक 14.97 लाख करोड़ रुपए के 500 और हजार रुपए के नोट लोगों ने वापस लौटा दिए. जो कि चलन से बाहर की गई मुद्रा का 97 फीसदी था. अब यदि इस 14.97 लाख करोड़ रुपए में 2.77 लाख करोड़ रुपए जोड़ दिया जाए (सौ रुपए और उससे कम के नोट वाली करंसी) तो देश की वैध करेंसी का आंकड़ा 17.74 लाख करोड़ रुपए हो जाता है.

2. अपनी खास उच्‍चस्‍तरीय आंतरिक रिपोर्ट में सरकार बता रही है कि अप्रैल के अंत में 14.2 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा चलन में थी. तो सवाल यह उठता है कि 3.54 लाख करोड़ रु. (17.74-14.2) कहां गए? यदि सरकार कम कैश छापकर उतनी करेंसी को नोटबंदी का फायदा बता रही है, तो यह गणित समझ से परे है. क्‍योंकि, उतनी क्रय शक्ति तो लोगों के पास है ही. भले उसका लेन-देन वह डिजिटल या किसी और माध्‍यम से करे.

3. सरकार ने एक और दलील दी है कि यदि वह नोटबंदी से पहले की रफ्तार में नोट छापती रहती तो 1.48 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्‍त रूप से चलन में होते. लेकिन, यह कदम तो सरकार बिना नोटबंदी किए भी उठा सकती थी.

नोटबंदी की लागत का हिसाब ही नहीं लगाया

सेंटर फॉर मानीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE): भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर नजर रखने वाली इस संस्‍था ने नोटबंदी के शुरुआती दिनों में ही प्रधानमंत्री मोदी के फैसले की लागत का अनुमान लगाया था. संस्‍था के मुताबिक नोटबंदी के 50 दिनों (31 दिसंबर 2016 तक) में अर्थव्‍यवस्‍था को 1.28 लाख करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ेगा.

बाजार का नुकसान : सेल्‍स में कमी और उपभोक्‍ता खर्च में कमी के कारण (देश का वार्षिक उपभोक्‍ता खर्च 3 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें से ज्‍यादातर कैश के रूप में है)

इंडस्‍ट्री का नुकसान : नोटबंदी का 50 फीसदी बोझ इंडस्‍ट्री पर आएगा और डिमांड और मैन्‍युफैक्‍चरिंग में कमी उसे 61,500 करोड़ रुपए का नुकसान होगा.

बैंकों का नुकसान : नोटबंदी की आपाधापी में बैंकों का सामान्‍य लेन-देन प्रभावित होगा, जिसका बोझ करीब 35,100 करोड़ रुपए है. (नोटबंदी की 27 फीसदी लागत)

सरकार/RBI का नुकसान : 500 और 2000 के नए नोट छापने पर 16,800 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. इसके अलावा 2014-15 में 500 और हजार रुपए के नोट छापने पर खर्च किए गए 3762 करोड़ रुपए का बर्बाद होना. इन नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया.

घरेलू नुकसान : 15,000 करोड़ रुपए.

निष्‍कर्ष:

-नोटबंदी के दौरान लौटाए गए 500 और हजार रुपए के नोटों का आंकड़ा यदि 14.97 लाख करोड़ रुपए है और उसमें छोटी मुद्रा 2.77 लाख करोड़ रुपए को जोड़ दिया जाता है तो देश में आज भी लोगों के पास नोटबंदी से पहले के मु‍काबले 99 फीसदी पैसा है.

-सरकार ने यदि नोटबंदी से हुए फायदे या नुकसान का आंकलन किया है तो उसने नोटबंदी लागत को नजरअंदाज कर भारी भूल की है. जिसे CMIE ने 31 दिसंबर 2016 तक करीब 1.28 लाख करोड़ रुपए बताया है.

-यह याद दिला देना भी जरूरी है कि नोटबंदी के कारण पैदा हुआ मुद्रा संकट सिर्फ सिर्फ 50 दिनों में ही खत्‍म नहीं हो गया था. जनवरी 2017 में भी हालात जस के तस बने हुए थे. यानी CMIE के आंकलन के मुताबिक नोटबंदी की लागत दो लाख करोड़ रुपए को पार कर गई थी.

*** यानी, नोटबंदी से अर्थव्‍यवस्‍था को 5 लाख करोड़ रुपए का फायदा नहीं, बल्कि दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है ***

पुनश्‍च:

नोटबंदी के साथ ही सरकारी महकमे से कयास लगाए जाने लगे थे कि देश में 4 से 5 लाख करोड़ रुपए लोगों के पास कालेधन के रूप में कैश रखा हुआ. इसमें से 3 लाख करोड़ रुपए लोग जमा नहीं करवाएंगे. और यह पैसा सरकार सोशल सेक्‍टर पर खर्च करेगी. हालांकि, RBI ने ऐसे किसी ट्रांसफर से इनकार कर दिया था. लेकिन, सरकार के ऐसे कई ख्‍याली पुलाव नोटबंदी से पक नहीं पाए.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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