[फोटो स्टोरी] ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
चचा नेहरू कह गए हैं - बच्चे देश का भविष्य होते हैं. यह बच्चा भी देश का भविष्य है - पत्थर से बंधा हुआ - मतलब देश का भविष्य पत्थर से बंधा हुआ है. और हम मंगल पर धान रोपने का ख्वाब पाले हैं!!!
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'...यार, दिल्ली की जान है मेट्रो.' लोगों को अक्सर कहते सुना है. सही भी है. दिल्ली देश की राजधानी है भाई! यहां के लोगों के लिए सरकार 'जान' नहीं देगी तो कहां के लिए! यहां सड़कें चौड़ी नहीं होंगी तो कहां! यहां विकास नहीं होगा तो कहां! लेकिन विकास किस कीमत पर? शायद इस सवाल को टटोला ही नहीं गया है... अगर ऐसा होता तो किसी मजदूर को अपने बच्चे की जान बचाने के लिए उसे पत्थर से बांध कर काम पर जाने की मजबूरी न होती. लेकिन क्या करे... पेट पालना है - अपना भी, अपने बच्चे का भी. जिंदा भी रहना है, ताकि सरकार को वोट दे सके - हर पांच साल पर.
पत्थर से यह एक बच्चा बंधा है या देश का भविष्य (फोटो साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया) |
चचा नेहरू कह गए हैं - बच्चे देश का भविष्य होते हैं. यह बच्चा भी देश का भविष्य है - पत्थर से बंधा हुआ - मतलब देश का भविष्य पत्थर से बंधा हुआ है. और हम सब देख रहे हैं देश के सुपर पॉवर बनने का सपना. चांद और अंतरिक्ष से होते हुए हम अब मंगल पर धान बोने का ख्वाब पाले हुए हैं... नीचे जमीन पर यह बच्चा पत्थर से बंधा पड़ा है - सिर्फ इसलिए क्योंकि इसकी मां इसे कुछ खिला सके, उसका जुगाड़ करने गई है.
हाहाहा... इस बच्चे की मां दिल्ली के सबसे पॉश और पॉवरफुल लोधी इलाके में काम कर रही है - सड़क किनारे पैदल चलने वालों के लिए टाइल्स बिछाने का काम. जी हां, सही पहचाना वही लोधी इलाका, जहां देश के सबसे 'सम्मानित' 700-800 लोग (सांसद) रहते हैं. पता नहीं क्यों, पर मुझे आज संसद पर हमले की घटना याद आ रही है. तब कहा गया था कि जब संसद ही सुरक्षित नहीं तो देश कैसे सुरक्षित!!! अब मैं इन दोनों घटनाओं को जोड़ देता हूं तो मेरे दिल से आवाज आती है - सांसदों के इलाके में अगर एक मजदूर के बच्चे का यह हाल है तो देश के बाकी करोड़ों मजदूरों के बच्चों का क्या हाल होगा!!!
खैर! आप बनाइए स्मार्ट सिटी. आप चलाइए बुलेट ट्रेन. दिल्ली क्या, सभी बड़े शहरों में मेट्रो का जाल बिछा दीजिए. आप ऑफिस आने वाले हंसते-खिलखिलाते चेहरों के लिए मैटरनिटी-पैटरनिटी लीव के लिए कानून बनाइए. बस एक काम करने से बचिए, इस ब्रह्मांड का सबसे अहम काम - मजदूरों को नागरिक मानने से (*शर्तें लागू : केवल चुनाव के समय नागरिक और उससे भी बढ़कर - इनके गंदे-मैले-कुचैले बच्चे को गोद में भी उठाइए, हंसते हुए फोटो खिंचाइए).
और हां, ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं. मेट्रो भले ही दिल्ली की जान हो सकती है - लेकिन पत्थर से बंधा यह बच्चा जान नहीं हो सकता - सरकार के लिए तो बिल्कुल भी नहीं - यह तो बस एक तस्वीर मात्र है - सीरियन रिफ्यूजी ऐलन की तरह - बस वायरल होने के लिए!
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