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Updated: 09 मार्च, 2022 07:40 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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डीएसपी बन जाओ, जज बन जाओ, डॉक्टर बन जाओ या नेता...अंत में पिटना पति के हाथों ही है. महिलाएं लाख पढ़-लिखकर ऊंचे ओहदे पर पहुंच जाएं, लेकिन आखिर में उनकी औकात यही है कि वे एक औरत हैं. अब भला औरत की कोई कोई हैसियत कहां होती है?

इसलिए हम कह रहे हैं कि भोपाल में डीएसपी नेहा पच्चीसिया (DSP Neha Pachisia) नहीं बल्कि एक महिला पिटी है. वह महिला जिसे पति अपने सामने कुछ नहीं समझता. वहीं महिलाएं अपने पति को परमेश्वर मानने के साथ अपनी दुनिया भी मान लेती हैं.

DSP Neha Pachisia, FIR, assault, engineer, husband, Bhopal, Madhya Pradesh Crime Newsडीएसपी बन जाओ, जज बन जाओ, डॉक्टर बन जाओ या नेता...अंत में महिला होना ही खटकता है.

दरअसल, भोपाल में पुलिस मुख्यालय में पदस्थ डीएसपी नेहा पच्चीसिया को उनके पति ने मारा-पीटा है. पति पेशे से इंजीनियर है, जिसकी नजर में उसकी पत्नी कोई अफसर नहीं, बल्कि सिर्फ एक महिला है. जिसपर वह जब चाहे अपनी खीज निकाल सकता है. वहीं डीएसपी नेहा पति से विवाद के बाद अलग चार इमली इलाके में रहती है.

जानकारी के अनुसार, DSP नेहा पच्चीसिया की शादी को अभी 3 साल ही हुए हैं. वे दो जुड़वां बच्चों की मां हैं. फिलहाल कोर्ट में दोनों के तलाक का मामला चल रहा है. अफसर नेहा ने पुलिस को बताया कि 'पति कुणाल जोशी जबरदस्ती घर में घुसने की कोशिश कर रहे थे. मैंने अंदर आने से रोका तो वे झगड़ा करने लगे. इसके बाद उन्होंने मारपीट शुरु कर दी और मेरा सिर दीवार पर दे मारा, वे नशे का आदी हैं.' गनीमत यह रही कि नेहा को अधिक चोट नहीं आई है.

असल में ऐसी महिलाओं को चाहिए कि अगर पति थप्पड़ मारे तो एकाध चाटे तो उसके कानों के नीचे जड़ ही देना चाहिए, ताकि अगली बार ऐसी हरकत करने से पहले उसे अपनी मर्दानगी का अफसोस हो. वह भी समझे कि मुझे मारने वाली भी कोई डीएसपी नहीं बल्कि एक महिला ही है.

पत्नी पर हाथ उठाने वाले पतियों को भी तो पता चले कि, असली मर्दानिगी औरत को कमजोर समझकर मारने में नहीं, बल्कि उसे सम्मान देने में है. सम्मान दोगे तो बदले में सम्मान ही मिलेगा, वरना अपमान के लिए तुम भी तैयार हो जाओ.

साल 2021 में हुए नेशलन फैमिली हेल्थ सर्वे में के अनुसार, 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया था कि उनके साथ पतियों ने घरेलू हिंसा की है. तो क्या आज के समय में भी कुछ महिलाओं को पुरुष के रहमों करम पर ही जीना पड़ता है?

बिहार में पिता ने बेटी का गला रेतकर उसकी हत्या कर दी

जिस पिता की उंगली पकड़कर उसने चलना सीखा, उसी हाथों ने उसका गला रेत दिया. बेटी अपने पसंद के लड़के से शादी करना चाहती थी जबकि पिता नहीं चाहता था कि वह लव मैरिज करे. यह मामला गोपालगंज का है. लड़की का नाम किरण है जो एक लड़के से बेहद प्यार करती थी. लड़का भी उसके साथ जिंदगी बिताने को तैयार था लेकिन यह रिश्ता इंद्रदेव राम को मंजूर नहीं था.

जब किरण ने घर में अपने पसंद के लड़के से शादी की बात की तो वे इस रिश्ते के खिलाफ हो गए. लड़की उन्हें मनाना चाहती थी. उसे क्या पता था कि जिस आंगन में वह खुद को महफूज समझती है, वहीं उसकी जान ले ली जाएगी.

एक रात किरण के पिता, चाचा और ताऊ घर पहुंचे और उसे मारने-पीटने लगे. मां उसे बचाने के लिए चिल्लाती रही, मिन्नते करती रही लेकिन उसकी किसी ने एक न सुनी. किरण के चाचा और ताऊ ने लड़की के हाथ-पैर पकड़े और पिता ने सब्जी काटने वाले पहसुल से अपनी ही बेटी का गला रेत दिया. इसके बाद मां हत्यारों ने बेटी के शव के खेत में फेंक दिया.

मतलब बेटी को मार देंगे, लेकिन वह अपने पसंद के लड़के से शादी करे ले, यह बात उन्हें मंजूर नहीं होगी. ऐसे जाहिर लोगों के लिए क्या जाए? बेटी को मारने वाला पिता तो नहीं हो सकता, कोई कसाई ही होता सकता है. सुना है लोग कहते हैं कि बेटियां पापा की जान होती हैं, लेकिन इस पिता के बारे में आप क्या कहेंगे?

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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