महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलना परिवार के लिए खतरनाक!
'पुरुष हमेशा से ही महिलाओं से ज्यादा पैसे कमाते आए हैं. मेरा बस चले तो मैं हर चीज़ को वैसा ही रहने दूंगा.' - किसने कही ये बातें और क्या हुआ उसका अंजाम जानिए यहां...
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21वीं सदी में जीने के बाद भी अधिकारों की लड़ाई खत्म नहीं हो रही. चाहे वो तिब्बत की आजादी का हक़ हो या तीसरे जेंडर को स्वीकार करने की बात या फिर LGBT का संघर्ष. सब अपने अधिकारों को पाने की जद्दोजहद में लगे हैं. लेकिन सबसे हैरतअंगेज है दुनिया की 49 फीसदी आबादी भी अभी तक अपने अधिकारों की बाट ही जोह रही है.
महिलाएं अभी भी बेसिक जरुरतों के लिए भी अभी तक स्वतंत्र नहीं हुई हैं. पुरुषों के बाराबर वेतन की बात तो दूर की है. दुनिया भर की महिलाएं पुरुषों के बाराबर वेतन पाने की लड़ाई लड़ रही हैं. और आखिर क्यों ना लड़ें? अगर महिलाएं पुरुषों के बराबर काम कर रही हैं तो उनका हक़ बनता है कि उन्हें भी पुरुषों के बराबर का वेतन मिले. वैसे अगर औरतें सोचतीं हैं कि सिर्फ भारत में ही औरतों को पक्षपात का दंश झेलना पड़ता है तो बता दें कि अमेरिका के एक राजनेता ने औरतों के बराबरी के वेतन की मांग को बकवास बताया है. उनके हिसाब से महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलना अमेरिकी परिवारों के लिए हानिकारक है!
समान काम पर वेतन समान नहीं होना चाहिएअमेरिका के उटा प्रांत के पॉलिटिशियन जेम्स ग्रीन ने एक खत लिखकर महिलाओं और पुरुषों के वेतन में असमानता वाले बिल को कोरी बकवास बताया है. ग्रीन ने अपने खत में बताया है कि- 'पुरुषों हमेशा से ही महिलाओं से ज्यादा पैसे कमाते आए हैं.' इसके पीछे उन्होंने सिंपल इकोनॉमिक्स को कारण बताया है. वो कहते हैं कि- 'मेरा बस चले तो मैं हर चीज़ को वैसा ही रहने दूंगा.'
उनका खत उटा के दो अखबारों में प्रकाशित हुए हैं. जेम्स ने खत में लिखा है कि- 'हमेशा से पुरुष ही घर चलाने वाले रहे हैं. महिलाओं को अगर पुरुषों के बराबर वेतन मिलने लगेगा तो हो सकता है हमारे परिवारों का आधारभूत रुप ही बदल जाए. ऐसा परिवार जिसमें महिलाएं घर संभालती हैं और बच्चों को पालने का काम करती हैं.'
ग्रीन ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि- 'अगर कंपनियों को औरतों को पुरुषों के बराबर देने के लिए बाध्य किया जाता है तो इसका सीधा असर पुरुषों के वेतन पर पड़ेगा. ये सिंपल इकोनॉमिक्स है. अगर ऐसा होता है तो पुरुषों को अपने घर की माली स्थिति संभालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. इससे घर की औरतें बाहर काम करने के लिए मजबूर होगी. साथ ही औरतों के बाहर काम करने से कॉम्पीटिशन बढ़ेगा और पुरुषों को भी इसका हिस्सा बनना पड़ेगा.'
Utah GOP chair's letter to editor published TODAY (not in the year 1624) pic.twitter.com/FtrWWLJguL
— Tawdry Lorde (@MaryEmilyOHara) February 16, 2017
ग्रीन आगे कहते हैं- 'महिलाओं के वर्क फोर्स में आने का मतलब है मार्केट में कॉम्पीटिशन का बढ़ना. इससे लोगों के वेतन कम हो जाएंगे. फिर जो औरतें काम नहीं भी करना चाहती हैं, घर की आर्थिक जरुरतों को पूरा करने के लिए उन्हें भी काम पर जाना पड़ेगा. इससे समाज का ढांचा गड़बड़ा जाएगा. ये एक दुष्चक्र है. जितना ही हम औरतों को मुख्य धारा में शामिल करेंगे उतनी ही दिक्कतें बढ़ती जाएंगी. हालांकि ये एक अच्छा प्रयास है लेकिन इसके दुष्परिणामों का भी सोचना चाहिए.
जेम्स ग्रीन के इस खत को लोगों ने आड़े हाथों लिया. नतीजतन ग्रीन ने अपनी बात के लिए माफी तो मांगी ही साथ ही वाइस चेयर के पद से इस्तीफा भी देना पड़ा. केवल सदियां बदली हैं, औरतों की जगह और उनके प्रति लोगों की सोच अभी भी वहीं की वहीं है. पता नहीं पावर में बैठे पुरुष ये बात कब समझेंगे कि काम कोई भी पुरुष या स्त्री में बंटा नहीं होता. काम, काम होता है.
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