अगस्त तो बीत गया, मगर नहीं थमा मौतों का सिलसिला
इस साल होने वाले बच्चों की लगभग दो हज़ार मौतों में इंसेफेलाइटीस से मरने वालों की संख्या केवल 333 है. यानी 83 प्रतिशत बच्चों की मौत के पीछे कई दूसरे कारण भी जिम्मेदार हैं.
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'ऐसा नहीं है कि उनकी सरकार इन मौतों पर संवेदनशील नहीं है. लेकिन क्या करें, अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं. इसमें नई बात क्या है?' उत्तर प्रदेश के स्वास्थ मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह का यह बयान उस वक़्त आया था, जब 48 घंटे के अंतराल में गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज (बीआरडी मेडिकल कॉलेज) में ऑक्सीजन की कमी के कारण 30 बच्चों की मौत हो गयी थी.
इस घटना के बाद अचानक से गोरखपुर का यह अस्पताल पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था. घटना के बाद जहां मेडिकल कॉलेज के तात्कालीन प्राचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा को बदल दिया गया तो वहीं एक डॉक्टर समेत 9 अन्य लोगों को भी जेल जाना पड़ा. हालांकि इतना होने के बाद भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मौत के आकड़ें थमते नहीं दिख रहे हैं.
अगस्त बीत जाने के बाद भी बच्चों के मौत के आकड़ों में कोई कमी नहीं आयी है. सितम्बर में अस्पताल में कुल मौतों का आकड़ा 433 रहा. इसमें पहले ही हफ्ते में मौत की संख्या 110 रही. सितम्बर 1 को 13 मौत. 2 को 10 मौत. 3 को 15 मौत. 4 को 10 मौत. 5 को 16 मौत. 6 को 13 मौत. जबकि 7 सितम्बर को 12 मौत.
मौतों का ये सिलसिला कब थमेगा ?
और मौतों का ये बदस्तूर सिलसिला अक्टूबर के महीने में भी लगातार जारी है. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार अक्टूबर 7 से मात्र चार दिनों के बीच ही कॉलेज में 69 बच्चों की मौत हो गयी है. आकड़ों के अनुसार 7 अक्टूबर को 12 मौत. 8 अक्टूबर को 20. 9 अक्टूबर को मौत का आकंड़ा 18 रहा जबकि 10 अक्टूबर को मौतों की संख्या 19 तक पहुंच गयी. यह स्थिति उस जगह कि है जहां के योगी आदित्यनाथ इस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. और जब इसी अस्पताल में अगस्त के महीने में ही बच्चों की मौत के बाद काफी बवाल मचा हो. हालांकि लगता है कि अगस्त में हुई मौतों की 'कारवाई' का कोई असर हुआ नहीं है. क्योंकि आकड़ें बताते हैं कि अगस्त के बाद सितम्बर और अक्टूबर में भी मौतों की रफ़्तार वही है.
हालांकि यहां गौर करने वाली बात यह है कि बच्चों की हो रही ज्यादातर मौतों के लिए इंसेफेलाइटीस या 'जापानी बुखार' जिम्मेदार नहीं है. बीबीसी के आकड़ें बताते हैं कि इस साल होने वाले बच्चों की लगभग दो हज़ार मौतों में इंसेफेलाइटीस से मरने वालों की संख्या केवल 333 है. यानी 83 प्रतिशत बच्चों की मौत के पीछे कई दूसरे कारण भी जिम्मेदार हैं. यह आकड़ें काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अब तक इस अस्पताल में हो रही ज्यादातर मौतों का जिम्मेदार इंसेफेलाइटीस को ही माना जाता रहा है और प्रशासन अपना ज्यादा समय इसी की रोकथाम में लगाता आया है.
हालांकि बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के रिकार्ड्स देखें तो इस अस्पताल की दुर्दशा को समझना आसान हो जायेगा. क़रीब 6 करोड़ आबादी के लिए ये इकलौता अस्पताल है, जिसमें जापानीज इंसेफेलाइटीस का बेहतर इलाज होता है. जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार के 19 जिले इस जानलेवा बीमारी से प्रभावित हैं. एक आकड़ें के अनुसार सन् 1978 से इस अस्पताल के प्रत्येक बेड पर औसतन 200 से ज्यादा बच्चों की जान गयी है.
ये आकड़ें यह बताने के लिए काफी हैं किस प्रकार इस अस्पताल में मौतों के आकड़ों को लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा है. हालांकि अगस्त में हुई घटना के बाद यह उम्मीद जरूर जगी थी कि प्रशासनिक सक्रियता के बाद इस अस्पताल के दिन भी बहुरेंगे. मगर अगस्त के बाद सितम्बर और अक्टूबर में भी बदस्तूर हो रही मौतें यह बताती है कि इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. और यह स्थिति जब मुख्यमंत्री के क्षेत्र की हो तो प्रदेश के बाकी जगहों की स्थिति को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.
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