व्रतों के हिसाब से कैलेंडर देखकर पाप नहीं किया जाता
चाहे पाकिस्तान हो या कोई भी दुश्मन देश... अपराधियों के इरादे कभी पाक नहीं होते! उनका कोई धर्म/ मज़हब नहीं होता! उन्हें बस गोलियों की आवाज़ ही रास आती है, वही चलाते हैं और एक दिन वही ख़ुद भी खाते हैं.
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सचमुच हद हो जाती है जब टीवी चैनल्स समाचार को यह कहकर उसमें सनसनाहट भरने की कोशिश करते हैं कि "रमज़ान के महीने में भी पाक़िस्तान ने की फ़ायरिंग!!" मतलब आपकी उम्मीदों की दाद देनी पड़ेगी कि आप दुश्मन देश से भी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की अपेक्षा रखते हैं!
हम दुश्मन देश से भी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की अपेक्षा रखते हैं?
पता नहीं, किस मिट्टी के बने हैं हम लोग! पर ये तो तय है कि हम महामूर्ख अवश्य हैं. तभी तो अपनी शांतिप्रियता दिखाते हुए सीना तान कह डालते हैं कि "पवित्र महीने में नहीं होगी फ़ायरिंग" और एन उसी वक़्त दुश्मन देश का गोला हमारे देश वासियों पर क़हर बन टूट पड़ता है. पुरानी कहावत है "Everything is fair in love & war". दुनिया भर के प्रेमियों को तो यह बात तुरंत ही समझ आ गई थी अब हम सब भी समझ जाएं तो बेहतर! यूं भी जब बात देश की आन से जुड़ी हो तो सीधे वार करना ही बनता है. समय आ गया है कि पाकिस्तान को उसकी हर हरक़त का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए. आख़िर कितने दशक तक हम शांति का राग अलापते रहेंगे? हार या जीत के बीच की जो लाइन होती है न, अब उसे छू, आर या पार जाने का वक़्त आ गया है साहब.
सीमा पार पाकिस्तान की ओर से चली गोलियां पलवालां में एक 8 माह के बच्चे की जान ले गई.
अब रही बात त्योहारों की...तो भई जरा हिसाब लगाकर बताइये कि ऐसी कौन सी दीपावली है जिसमें अपराधियों ने किसी के घर का चिराग न बुझाया हो! ऐसी कौन सी ईद है जहां मित्रता और मोहब्बत के नाम छुरा न घोंपा गया हो! ऐसी कौन सी राखी है जहां किसी भाई ने ही अपनी बहिन की हत्या न की हो! ऐसा कौन सा करवा-चौथ है जहां किसी सुहागन का सुहाग न उजाड़ा गया हो! और ऐसा कौन सा महिला/ मातृ दिवस है जहां स्त्री की अस्मिता तार-तार न हुई हो! जी हां, ये मैं अपने ही देश की बात कर रही हूं. जब हम अपनों को ही नहीं सुधार पा रहे तो किसी और से ऐसी उम्मीद रखना कितना बचकाना है!
इसलिए अब हमें अपनी समस्त इन्द्रियों को सचेत कर, अपने मस्तिष्क में सदैव के लिए यह बात गुदवा लेनी चाहिए कि चाहे पाकिस्तान हो या कोई भी दुश्मन देश... अपराधियों के इरादे कभी पाक नहीं होते! उनका कोई धर्म/ मज़हब नहीं होता! उन्हें बस गोलियों की आवाज़ ही रास आती है, वही चलाते हैं और एक दिन वही ख़ुद भी खाते हैं. इन्हें सिर्फ़ जहर फैलाने का मोह है और कुछ भी नहीं! जिस इंसान ने अपने-आप से मोह छोड़ दिया, जिसे अपनों की कोई परवाह नहीं, जिसकी रगों में नफरत लहू बनकर दौड़ती है, वह कुछ भी कभी भी, कहीं भी कर सकता है! पापी इंसान, व्रतों के हिसाब से कैलेंडर देखकर पाप नहीं करता!
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