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Updated: 01 अप्रिल, 2023 05:31 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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मर्द को दर्द नहीं होता...मेरे हिसाब से यह एक झूठी लाइन हैं, क्योंकि मैंने पिताओं को बेटियों से लिपटकर रोते हुए देखा है. हां वे लोग झूठे हैं जो यह कहते हैं कि पुरुष रो नहीं सकते. हमने महसूस किया है कि पिता का दिल पत्थर का नहीं होता है. हां वह खुद को मजबूत दिखाने का दिखावा जरूर करते हैं ताकि बाकी के घरवाले कमजोर न पड़ें. एक पिता अपने बच्चों के लिए वह सब करता है जो कर सकता है. वह अपने परिवार को हर खुशी देना चाहता है. इसलिए अधजगी आंखों से उनके लिए सपने देखता है, भले उसकी नींद पूरी ना हो.

पिता कभी काम करना नहीं छोड़ सकता. उसके लिए कमाना जरूरी है. ऐसा नहीं है कि वह एक दिन परिवार से बोल दे कि अब वह काम नहीं करेगा. वह थक गया है. वह मेंटली परेशान है. तुम सब अपना देख लो. नहीं यह वह कभी नहीं कह सकता. वरना दुनिया उसे निखट्टू, और जोरु का गुलाम कहने लगती है. वैसे भी हमारे यहां स्ट्रगल करने वाले पुरुष को आवारा कहा जाता है. वैसे भी पुरुष की वैल्यू उसकी सैलरी तय करती है.

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जब पुरुष जब छोटा होता है तो उसके ऊपर बहन की जिम्मेदारी होती है. शादी के बाद पत्नी का ख्याल रखना होता है. उसके ऊपर पत्नी की पूरी जिम्मेदारी आ जाती है. इसके बाद वह मां की देखरेख करता है. बच्चे हो जाते हैं तो बच्चों की अच्छी परवरिश की चिंता करता है. वह सोचता है कि वह बच्चों को बेस्ट स्कूल में भेजे. त्योहार पर घरवालों के लिए तोहफा ला सके. माात-पिता की सेहत का ख्याल रख सके.

अफसोस की बात यह है कि जमाने को मां के आंसू तो दिख जाते हैं मगर पिता का दर्द नहीं दिखता. अगर बच्चे को बुखार हो जाए तो मां भले पट्टी करे चैन से सो वह भी नहीं पाता. वह बच्चों की उंगली पकड़कर चलना सिखाया है. दिन भर ऑफिस में खटने के बाद जब घर आता है तो बच्चों का ख्याल रखता है. पत्नी की घर के कामों में मदद कराता है. वह भले पूरा खाना ना बनाए मगर घर के सारी बाहरी कामों की जिम्मेदारी उसके सिर पर होती है. वह बच्चों की पढ़ाई और फिर उनकी शादी के लिए कर्ज लेता है, लोन लेता है औऱ फिर उसे चुकाता रहता है.

कई पिता परिवार के खर्चे के लिए दूसरों शहरों में जाकर नौकरी करते हैं. वे घर से दूर अकेले रहते हैं. अकेले खाना बनाते हैं और खाते हैं. फिर अगले दिन काम पर निकल जाते हैं. वे ऑफिस में बॉस की डांट भी सुनते हैं. ओवर टाइम काम करते हैं. औऱ फिर छुट्टी वाले दिन घऱ के कामों को खत्म करते हैं.

पिता अपने लिए कुछ करना नहीं जानते. वे अपने लिए कुछ नहीं खरीदते मगर बच्चे को नया जूता जरूर दिलाते हैं. वे बीमार नहीं पड़ना चाहते हैं. बीमार पड़ भी जाएं तो छुट्टी नहीं लेते हैं. वे बच्चों से बहुत प्यार करते हैं मगर खुलकर जता नहीं पाते हैं. वे परिवार की ढला बनकर खड़े रहते हैं. घर में कोई भी मुसीबत आए पहले उसे एक पिता से होकर गुजरना पड़ता है. वे कितनी भी चिंता में रहे मगर मुस्कुराना नहीं छोड़ते हैं. वे अपनी परेशानियों को परिवार के छिपा कर रखते हैं. वे भले कितनी भी तकलीफ में रहें मगर चाहते हैं कि उनका परिवरा हमेशा खुश रहे.

ऐसे होते हैं पिता...मां दुख में रो देती है मगर पिता ये हुनर नहीं जानते हैं. वे चुप हो जाते हैं और हर मुसीबत को अपने बच्चे से दूर रखने की कोशिश करते हैं. एक दिन बच्चे को घर आने में देर हो जाए तो वे घबरा जाते हैं, चिंता में पड़कर बार-बार बच्चे को फोन लगाते हैं. वे अपनी बेटियों के सुरक्षा की चिंता करते हैं.

पिता हर कोशिश करते हैं कि उनके बच्चे वे घर खुशी पाएं जो उन्हें नसीब नहीं हुई मगर वे जताते नहीं है. कभी-भी लगता है कि जमाने पिताओं के साथ बहुत गलत किया है. पुरुष मानकर उनपर कठोर और बेपरवाह होने का इल्जाम लगा दिया है मगर पिता की जेब हम बच्चों के लिए वह खुशी का खजाना है जो कभी खत्म नहीं होती. मगर अफसोस कि दुनिया को पिता की तकलीफ नहीं दिखती. आपको नहीं लगता है कि एक पिता अपनी पूरी जिंदगी बच्चों के लिए गुजार देता है.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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