करवा चौथ के नाम पर औरतों की सोच पर सवाल उठाना बचकाना ही है
भारत त्योहारों का देश है, जहां एक से एक त्योहार और उनको मनाने की विधियां हैं. ऐसे में जब हम करवा चौथ (Karwa Chauth) को देखते हैं तो इसके समानांतर कई तरह की बातें होने लगी हैं. खासतौर पर महिलाओं की सोच को लेकर. क्या वाकई इस तरह की बहस की जरूरत है?
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मुझे नहीं मालूम कि दुनिया के बाक़ी देशों में व्रतों का कितना महत्त्व है लेकिन अपने भारत में तो इसका खूब मान है और इसके बिना चलता ही नहीं. कुछ लोग इसे रूढ़िवादी परंपरा, अंधविश्वास, ढकोसला कह नाक-मुंह भले ही सिकोड़ लें पर मैं तो इसे ख़ालिस मोहब्बत ही मानती हूं. अब इसका ये मतलब क़तई नहीं कि जो व्रत नहीं करते, उनकी मोहब्बत सच्ची नहीं. मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि मूर्ख कहकर उनका मज़ाक उड़ाने के बजाय हमें व्रती स्त्रियों को बहुत आदर-सम्मान के साथ देखना चाहिए. हां, जबरन ताने मारकर व्रत करवाए जाने की मैं कट्टर विरोधी हूं.
किसी के घर में बच्चा नहीं, किसी के बच्चे की नौकरी नहीं लगती, कहीं रिश्तों में दरार है. ऐसे में घर की स्त्री किसी के बिन कहे ही अपने-आप एक दिन चुन लेती है कि मैं इतने हफ़्तों तक ये व्रत करूंगी कि आपकी मन्नत पूरी हो जाए. वो मात्र कहती ही नहीं, इसे पूरे दिल से निभाती भी है. क्या मज़ाल कि उसके माथे पर शिक़न भी पड़े. ऐसी आस्था, ऐसा विश्वास कहीं देखने को नहीं मिलता.
यदि देखा जाए तो करवाचौथ का शुमार भारत के सबसे खूबसूरत त्योहारों में है
ये स्त्रियां दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत परियां होती हैं जो अपने नहीं बल्कि किसी और के भले के लिए कलेजा निकाल रख देती हैं. ख़ूबसूरत तो वही लगता है न जो दिल से हो. स्वास्थ्य की दृष्टि से तो व्रतों का अपना महत्त्व है ही. जहां तक 'करवा चौथ' की बात है तो इसे जन-जन तक पहुंचाने और लोकप्रिय बनाने में हिंदी फिल्म उद्योग का योगदान नकारा नहीं जा सकता.
होली की तरह यह पर्व भी बॉलीवुड ने ख़ूब मनाया है. करवा चौथ को समर्पित कितने ही गीत बने हैं. 'चांद छिपा बादल में' (हम दिल दे चुके सनम), 'लैजा लैजा' (कभी खुशी कभी गम) ने कुंवारी लड़कियों को भी भविष्य में इसके लिए प्रोत्साहित किया. वो जो इस त्यौहार के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे, उन्हें 'सरगी' की पूरी व्याख्या भी पता चल गई. कितनी ही फिल्मों में इसे विशाल भावनात्मक रूप में दर्शाया गया है.
पति-पत्नी हों या प्रेमी-प्रेमिका, उनके बीच इसे नेह बंधन की तरह बड़े परदे पर सैकड़ों बार उतारा गया है. ये प्रेम से जुड़ा हुआ व्रत है तभी तो 'हमारे यहां नहीं होता!' कहने वाले भी इसे कर लिया करते हैं. अब तो पुरुष भी इस मामले में पीछे नहीं रहे. याद रहे, प्रेम केवल स्त्रियां ही नहीं करतीं, इस रिश्ते में दूसरे सिरे पर एक पुरुष भी होता है और वह भी बेपनाह प्रेम करना जानता है.
ख़ैर! आप व्रत करें या न करें लेकिन व्रत, पूजा-पाठ करती और खूब सजी-धजी स्त्रियों को एक बार नज़र भर देखें जरूर. कितनी प्यारी लगती हैं ये. त्योहारों में इनमें एक अलग ही नज़ाकत और शर्मीलापन-सा भर जाता है. पति के छेड़ने पर जब ये 'चलो, हटो' कहती हैं तो उस समय उनकी ये अदा देखते ही बनती है. मुझे तो आस्था-विश्वास से भरे इन प्यारे चेहरों और इनके मेहंदी भरे हाथ देखना बेहद अच्छा लगता है. इसलिए मैं तर्क-वितर्क में नहीं पड़ती.
यदि कोई ख़ुश है तो इस ख़ुशी पर उसका पूरा अधिकार है. यही वे लोग हैं जो भारतीय संस्कृति की सबसे ख़ूबसूरत तस्वीर के रूप में उभरते हैं. मुझे ऐसे सभी लोग बहुत अच्छे लगते हैं और इनकी नज़र उतारने को जी चाहता है. करवा-चौथ हो या कोई भी पर्व, ये दिखावा नहीं, प्रेम और संस्कृति के त्यौहार हैं. नेह-धागे को जोड़ते हमारे त्यौहार न केवल हमारे जीवन में रंग भरते हैं बल्कि हमें सारी दुनिया से अलग और विशिष्ट भी बनाते हैं.
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