गर्भवती हथिनी की 'हत्या' का मामला दुर्घटना की ओर बढ़ चला!
केरल (Malappuram, Kerala) में एक गर्भवती हथिनी (Pregnant Elephant) की मौत के मामले में जैसी उम्मीद जताई जा रही थी वैसा ही देखने को मिला है. वन विभाग लगातार यही प्रयास कर रहा है कि कैसे भी करके इस हत्या को एक हादसा ठहराया जा सके.
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बात बीते दिन की है. ख़बर आती है कि केरल (Malappuram, Kerala) में एक गर्भवती हथिनी (Pregnant Elephant) को कुछ शरारती तत्वों ने अनानास के बीच पटाखे की लड़ी लगाकर खिला दी जो हथिनी के मुंह में फट गयी. इससे हथिनी का मुंह ज़ख्मी हो गया लेकिन फिर भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बजाए उसने पानी की ओर रुख किया. उस वक्त एक वन अधिकारी को इस घटना का पता चला तो वो उसे लेने पहुंचा, बड़ी मुश्किल से हथिनी को बाहर निकाला गया पर उस हथिनी और उसके अजन्में बच्चे ने वहीं दम तोड़ दिया.
अब इसे दिया जाने लगा दुर्घटना का एंगल
जहां एक ओर सोशल मिडिया पर लोग अपना रोष प्रकट कर रहे हैं. वहीं केरल वन विभाग का एक ट्वीट मामले को हल्का बनाने की कोशिश करता नजर आता है. फारेस्ट केरला से ट्वीट आता है कि 'ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है कि निचले जबड़े में हुआ ज़ख्म अनानास में भरे पटाखों की वजह से ही हुआ है, हालांकि ये भी एक संभावना है कि ज़ख्म पटाखों से ही हुआ हो. विभाग ने अज्ञात हमलावरों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया है, उनकी पहचान की जा रही है.'
There's no conclusive evidence that injury to lower jaw was caused by pineapple stuffed wd cracker. However this may be a possibility. Dept. has booked offence against unknown offenders, whose identity is being established.
— Kerala Forest Department (@ForestKerala) June 3, 2020
उपरोक्त ट्वीट पढ़कर ये साफ़ लगता है कि वन विभाग अपनी जांच और मेहनत से पल्ला झाड़ना चाह रहा है. जहां एक तरफ केरल इस देश का सबसे शिक्षित राज्य है वहीं ऐसी निर्मम घटना के बाद इस तरह के बयान सिवाए लीपापोती के कुछ और नहीं लगते. कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले दिनों में वन विभाग उस हथिनी की मृत्यु में उसी की ग़लती निकालकर इसे दुर्घटनाघोषित करके केस बंद कर दे.
Article 51-A (g) of the Indian Constitution says that it shall be duty of every citizen of India to have compassion for living creatures. The pregnant elephant in pic was killed in human- wildlife conflict.Action has already been initiated. But where lies our duty? N humanity?? pic.twitter.com/V1ufNt3HfN
— Kerala Forest Department (@ForestKerala) June 3, 2020
सुप्रीम कोर्ट का फ़रमान क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट ने फ़रमान ज़ारी किया था कि हम इंसान शहरी और वन जीवों के रखवाले हैं. इनकी देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है. कानून में भी इनके ख़िलाफ़ हिंसा पर दंड का प्रावधान है. इन्हें (वन्यजीवों को) मारने, ज़हर देने, तंग या प्रताड़ित करने पर तीन साल तक की सज़ा या 25000 हज़ार रुपये तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या किसी इंसान की हत्या पर भी ये सज़ायें इतनी सीमित हैं? क्या हत्या-हत्या में फ़र्क़ करना जायज़ है? क्या जानवरों की निर्मम हत्या पर भी उतने ही गंभीर दंड आवश्यक नहीं जितना एक इंसान की हत्या पर दिया जाता है?
हैं और भी कई किस्म के सुधारों की ज़रुरत
जैसा कि ऊपर लिखा है, केरल, जो भारत का सबसे शिक्षित राज्य है वहां इस तरह की घटना शिक्षा व्यवस्था पर कुछ सवाल ज़रूर छोड़ती है. अगर शिक्षा में अव्वल राज्य में जानवरों के प्रति ये व्यहवार ज़ाहिर किया जाता है तो शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. आप किसी अपराध को रोकने के लिए कड़े से कड़ा कानून बना सकते हैं पर अपराधी को रोकने के लिए आपको बेहतर शिक्षा व्यवस्था की ज़रुरत ही पड़ेगी.
एक अच्छा पुलिसकर्मी चालीस अपराधी पकड़ सकता है पर एक अच्छा शिक्षक चार हज़ार अपराधी बनने से पहले ही उन्हें सही राह पर लगा सकता है. इसलिए जितनी ज़रुरत न्यायपालिका में सुधार की है, उससे कहीं ज़्यादा आवश्यकता एजुकेशन सिस्टम को दुरुस्त करने की है. तबतक न जाने कितनी ऐसी क्रूर निर्मम हत्याओं को अपना काम या ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की ख़ातिर हम दुर्घटनाओं में बदलता देखते रहेंगे.
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