फ्रांस के विश्व कप फुटबॉल जीतने के बाद से ही दुनिया भर में शरणार्थियों का मुद्दा एक बार फिर छाया हुआ है. लोग शरणार्थियों के साथ सौतेले व्यवहार करने वाले को सोशल मीडिया पर आड़े हाथों ले रहे हैं. शरणार्थियों के साथ सहानुभूति का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है. फ्रांस ने विश्व कप फुटबाल की ट्रॉफी उठाई और उसके समानान्तर में शरणार्थियों का मुद्दा बहस का विषय बन गया. दरअसल फ्रांस की टीम के दस्ते में कूल 23 खिलाडी थे, जिसमें 14 अफ्रीकी मूल के थे. बड़ी संख्या में मुस्लिम खिलाड़ियों के होने से भी फ्रांस के राजनीतिज्ञों और सिविल सोसाइटी को कोसने वालों की एक लम्बी कतार लगी हुई है. फ्रांस के समाज को मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है और उन्हें इस परिणाम से सबक लेने की सीख भी दी जा रही है.
फ्रांस की विजेता टीम में अधिकांश खिलाड़ी अफ्रीकी मूल के थे.
हाल-फिलहाल में शरणार्थियों के मुद्दे ने वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ाने का काम किया है. अमेरिका से लेकर यूरोप और बांग्लादेश से लेकर भारत तक शरणार्थियों के प्रति नफरत और घृणा लगातार बढ़ी है. ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर जाने का सबसे प्रमुख कारण यूरोप के देशों में बढ़ते मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या थी. जिसके कारण वहां के नेताओं और नागरिकों को ब्रिटेन की राष्ट्रीय अखंडता के ऊपर खतरा महसूस हो रहा था.
दरअसल हाल के वर्षों में खूंखार आतंकवादी संगठन ISIS ने जिस तरह से यूरोप के देशों में और खासकर फ्रांस में अपने इस्लामिक पागलपन का जो नंगा नाच किया है उसने यूरोप के लोगों में शरणार्थियों के प्रति दहशत का एक ऐसा बीज बोया कि शरणार्थियों पर विश्वास करना उनके लिए मुश्किल हो गया है.
Dear France, Congratulations on winning the #WorldCup. 80% of your team is African, cut out the racism and xenophobia. 50% of your team are Muslims, cut out the Islamophobia. Africans and Muslims delivered you a second World Cup, now deliver them justice.
साल 2015 में फ्रांस के प्रतिष्ठित साप्ताहिक अखबार शार्ली हेब्दो के दफ्तर में अलकायदा के आतंकवादी अंधाधुंध गोली चलाते हैं जिसमें 12 लोगों की मौत हो जाती है. निर्दोष लोगों की जान लेने वाले दोनों आतंकवादी अल्जीरियाई मूल के नागरिक थे, जिनके पूर्वज फ्रांस में अप्रवासी के रूप में आये थे. हाल के वर्षों में फ्रांस में जितने आतंकवादी हमले हुए हैं उनमे कहीं न कहीं देश में रह रहे अप्रवासी मुसलमानो का ही हाथ रहा है. पेरिस, बेल्जियम और जर्मनी हमले को भी अंजाम देने के लिए ISIS ने अप्रवासी मुसलमानों को ही ढाल बनाया. इन तमाम हमलों के बाद फ्रांस में आप्रवासियों के खिलाफ नफरत बढ़ना लाज़िमी था.
खैर फ्रांस के विश्व कप जीतने के बाद शरणार्थियों के प्रति कुछ हद तक विश्वास बहाल होने की एक नई उम्मीद जगी है. फ्रांस के राजनीतिज्ञों को कोसने वाले लोगों को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि ISIS से सताये जाने के बाद इराक और सीरिया के मुस्लिम शरणार्थियों के लिए जब दुनिया के इस्लामिक ठेकेदार देशों ने अपने दरवाज़े बंद कर लिए तो फ्रांस और जर्मनी ही वो देश थे जिन्होंने शरणार्थियों को सबसे आगे बढ़कर गले लगाया था. मानवता की भलाई के प्रोजेक्ट का जिम्मा अकेले फ्रांस और वहां के लोगों पर थोपना मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी भूल होगी.
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