हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल बने इंडिया में रहकर और अब चल दिए विदेश बसने !
वजहें बिज़नेस की लिगलिटी हो सकती है, पर्सनल लाइफ में लोगों की ताका झांकी भी हो सकती है और संभावित प्रवासी का सेक्सुअल ओरिएंटेशन भी हो सकता है. चूंकि अब सुपर रिच है, वह अन्य प्राथमिकताओं के लिए फॉरेन सिटी में बसना अफ़ोर्ड कर सकता है.
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क्यों भाई! जाना ही था तो तब चले जाते जब फ़र्श पर थे और वहां बुलंद हो जाते ! अब यहां से बुलंद होकर जा रहे हैं तो कहीं अर्श से फर्श तक पहुंचने की नौबत न आ जाए वहां ! क्षमा करें तंज थोड़ा तीखा हो गया, रहा जो नहीं गया बयां करने से ! वैसे तो यह हर किसी का व्यक्तिगत अधिकार और चाहत हो सकती है कि वह कहां बसना और कैसी जीवनशैली चाहता है ? परंतु खूब दाम कमा लिया तो देश छोड़कर कहीं और बसने की तैयारी क्यों ? अब जब देने का वक्त आया तो पलायन की सोच ली, चिंताजनक है! हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक़ इस साल 6500 अति समृद्ध भारतीय अपना सब कुछ समेट कर हमेशा के लिए भारत से जुदा हो जाएंगे. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जहां से बड़ी संख्या में हाई नेट वर्थ वाले लोग छोड़कर दूसरे देश जा रहे हैं. वहीं पहले नंबर पर चीन है, जहां से 13,500 अल्ट्रा रिच इंडिविजुअल छोड़कर दूसरे देश जाना चाहते हैं.
आज तमाम युवा ऐसे हैं जो रोजगार के बेहतर विकल्प के लिए देश छोड़कर जा रहे हैं
हालांकि पिछले साल 7,500 करोड़पति भारतीय छोड़कर गए थे. जबकि चीन की संख्या में बढ़ौत्तरी हुई है, पिछले साल 10800 हाई नेट वर्थ वाले चीनी देश छोड़कर चले गए थे. यूके में भी संख्या डबल हो रही है, पिछले साल देश छोड़ जाने वाले 1600 थे जबकि इस साल उम्मीद है 3200 सुपर रिच अंग्रेजों के बाहर जाने का. और भारत के लिए राहत की ही खबर है चूंकि रिपोर्ट बताती है यहां करीब 3.5 लाख हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) की वर्तमान संख्या के साथ भारत ने अच्छी बढ़त हासिल की है और साथ ही अन्य देशों से भारत लौटने वालों की संख्या भी बढ़ी है.
लेकिन सवाल है इन करोड़पतियों को ख्याल ही क्यों आया कि वे दुबई, सिंगापुर या पुर्तगाल जाकर बस जाएं? क्या यहां के टैक्स कानूनों की जटिलता की वजह से इन देशों का अच्छा टैक्स सिस्टम, मजबूत व्यापार और शांतिपूर्ण वातावरण उन्हें लुभाता है ? यदि यही बात बताई जाती है तो यक़ीनन बात महज एक बहाना ही है, क्योंकि इन तथाकथित जटिलताओं के रहते हुए भी आज वे सुपर रिच हो गए हैं. तो फिर एकाएक विदेश में जाकर बसने की ललक कैसे और क्यों पैदा हो रही है ?
आखिर क्या कमी है हमारे यहां? यह बात सही है कि गांव से कस्बे, कस्बे से शहर और शहर से महानगरों में जाकर बसने की मानवीय प्रवृत्ति होती है. इसे विकास से भी जोड़ा जा सकता है. लेकिन जब यह दौड़ बहुत ज्यादा होने लगे और लोग अपनी जड़ें ही छोड़ने को आकुल दिखे तो सोचना जरुरी हो जाता है. मुंबई , दिल्ली , बेंगलुरु जैसे महानगर दुनिया के किसी भी महानगर के टक्कर के ही हैं.
फिर भी अगर वे 6500 लोग, एकबारगी यदि मान भी लें कि आंकड़ा सही है तो, विदेशी महानगरों को ही चुन रहे हैं , तो तमाम पहलुओं पर विचार करना होगा. वरना सिर्फ टैक्स नियमों की जटिलता की वजह से ही वे देसी महानगरों से विदेसी महानगरों में बसने की सोच रहे हैं या मन बना चुके हैं, बात गले नहीं उतरती.फिर अपने देश से ही पाने और मौका पड़ने पर देश को लौटाने की परिपाटी बरसों से हैं.
सो क्वालिटी लाइफ को भी पलायन की वजह नहीं माना जा सकता. कोई कहे कि उन देशों की बेहतर चिकित्सा, बेहतर शिक्षा, सुरक्षा का माहौल लुभा रही हैं तो यह भी सही नहीं हैं. चूंकि सुपर रिच हैं तो ये सभी चीजें उनके बाएं हाथ के खेल हैं. तो फिर आखिर वास्तविक वजहें क्या हैं ? एक बड़ी वजह बिज़नेस की लिगलिटी हो सकती है, एक अन्य वजह पर्सनल लाइफ में लोगों की ताका झांकी भी हो सकती है और एक वजह संभावित प्रवासी का सेक्सुअल ओरिएंटेशन भी हो सकता है.
चूंकि अब जब सुपर रिच है, वह अन्य प्राथमिकताओं के लिए फॉरेन सिटी में बसना अफ़ोर्ड कर सकता है जहां संयोग से क्वालिटी लाइफ भी है, बेहतर और उपयुक्त टैक्स सिस्टम भी है.परंतु प्रश्न है यदि वे जा भी रहे हैं तो पॉलिटिकल क्लास का विपक्षी धड़ा हायतौबा क्यों मचा रहा है; मौजूदा सरकार को कैसे ज़िम्मेदार ठहरा दे रहा है ?
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