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Updated: 15 फरवरी, 2022 08:59 PM
रीवा सिंह
रीवा सिंह
  @riwadivya
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स्कूल/कॉलेज या ऐसे किसी भी संस्थान में निर्देशित ड्रेसकोड सभी के लिये होता है और उसका पालन करना होता है. यह नियम कॉलेज प्रशासन का था, ड्रेसकोड दर्जनों जगह लागू है. स्कूल से लेकर सेना तक, कोर्ट से लेकर होटल तक, उसे फ़ॉलो करना ही होता है, यही अनुशासन है. फिर कह रही हूँ, एक बार पड़ताल कर लें, उडुपी के उस कॉलेज में हिजाब पर पाबंदी नहीं थी. लड़कियाँ क्लास में भी हिजाब पहनने की अनुमति माँग रही थीं जिसके लिये मना किया गया. वह महिला कॉलेज है. हिजाब पहनकर न आने के आदेश का विरोध छात्राएं कर रही थीं तो उसका संज्ञान प्रशासन को लेना था, कॉलेज को लेना था, भगवा शॉल वालों को नहीं. ख़ैर, मामला अब कोर्ट में है.

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वो जो इसे धार्मिक अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं, कह रहे हैं कि मौलिक अधिकार है, बिल्कुल है! मैं हर तरह के पर्दे का विरोध करती हूँ लेकिन आपको पसंद है तो आप हिजाब पहनकर सड़क पर घूमें, पूरी दुनिया नाप आयें लेकिन जहाँ सभी के लिये यूनिफ़ॉर्म सुनिश्चित है वहाँ आपको अलग से छूट किस बात की दी जाए?

देखें कि किस तरह लड़ाई किताब से शिफ़्ट होकर हिजाब पर आ गयी है. लड़ना था पढ़ने के लिये लेकिन लड़ रहे हैं हिजाब के लिये. Right to Kitaab अब Right to Hijaab में तब्दील हो गया है. जिस पर्दे से निकलने में सदियाँ खप गयीं, आज आप उसके समर्थन में सड़क पर घूम रही हैं. जब इस पर्दे का विरोध हुआ था तो यह सड़क तक न नसीब थी.

कितने संघर्ष के बाद ये मौके मिले हैं लेकिन आपको हिजाब के लिये लड़ना है. मौलाना ख़ुशी से फूलकर कुप्पा हो रहे हैं. बैनर मिलने लगे हैं कि - पहले हिजाब फिर किताब. जो काम अबतक पुरुष वर्ग करता था और करवाना चाहता था वह आप सब अब ख़ुद कर रही हैं.

पितृसत्ता एक बार फिर कामयाब हो रही है चाहें हिजाब ओढ़ें या स्टोल. यही चाहिए था पितृसत्ता को कि उनका थोपा हुआ आप स्वीकारें, रिवाज़, धर्म, अस्मिता के नाम पर ही सही. विवेकशील महिलाएं समाज के चंगुल से बच निकलती हैं इसलिए उसे रिवाज़ बना दो, थोड़ा-सा धर्म मिला दो और हो गया काम.

आप देखें कि मुस्कान की शिक्षा की बात कोई नहीं कर रहा, सुरक्षा की बात कोई नहीं कर रहा, बात धर्म की हो रही है. वाहवाही धर्म के लिये हो रही है. किसी महिला की शिक्षा के अधिकार की कोई बात नहीं हो रही. Right to education पीछे छूट गया, आगे आ गया हिजाब. अब हिजाब चाहिए, किताब की बाद में देखेंगे.

तो पहनें हिजाब और पहनकर समूचे भारतवर्ष की सड़कें भर दें. इसके बाद जब वक़्त मिलेगा तो सोचिएगा नुकसान किसका कर रही हैं. पितृसत्ता को यही चाहिए कि आप उनके एक इशारे पर मरने-कटने को तैयार रहें. क्रांति के नाम पर फिर से ग़ुलामी तो नहीं बो रहीं?

यह न कहें कि हिजाब हटाने की ज़बरदस्ती हुई उसका विरोध है. हीरो बनने आये लफ़ंगे कुछ निर्धारित नहीं कर सकते. और उनके आने से पहले भी हिजाब की मनाही का विरोध हो रहा था. यूनिफ़ॉर्म पर ऐसी बहस बेकार है. यूनिफ़ॉर्म का मतलब है सबके लिये एक समान, कुछ भी सीखने से पहले समानता सीखना अनिवार्य है.

पूरे प्रकरण में अगर किसी को कुछ हासिल हो रहा है तो वह है पितृसत्ता, आप ने चार कदम आगे बढ़ाये, चार सौ कदम पीछे चली गयीं.

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लेखक

रीवा सिंह रीवा सिंह @riwadivya

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं जो समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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