आखिर एक जांबाज़ पुलिस ऑफिसर आत्महत्या की तरफ क्यों बढ़ता है..
कर्मठ और बहादुर पुलिस ऑफिसर हिमांशू रॉय ने अपने ही घर में अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से खुदखुशी कर ली. माना जा रहा है कि कैंसर इसका कारण बना.
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वो जांबाज़ था, वो बहादुर था, वो एक ईमानदार पुलिसवाला था. वो हिमांशू रॉय था. सुपर कॉप हिमांशू रॉय जिसके नाम से ही मुजरिम कांपते थे. वो पुलिस वाला जिसने कई हाईप्रोफाइल केस सुलझाए थे. वो आज हमारे बीच नहीं रहा.
हिमांशू रॉय ने अपने ही घर में अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से खुदखुशी कर ली. महाराष्ट्र एंटी-टेरर स्क्वॉड (ATS) के हेड भी रहे हैं. 2015 में हिमांशू उन पुलिस वालों में से एक थे जिन्होंने अपने सीनियम ऑफिसर्स के खिलाफ लिखित में शिकायत दी थी. महाराष्ट्र होम डिपार्टमेंट को लिखी गई ये शिकायत सीनियर द्वारा खराब व्यवहार के लिए थी. ये वो दौर था जब हिमांशू रॉय को ATS चीफ के पद से हटा दिया गया और पुलिस हाउसिंग के एडिशनल डायरेक्टर जनरल की पोस्ट पर ला दिया.
मुंबई की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गैंगस्टर संतोष शेट्टी के बैंकॉक डिपोर्टेशन के बारे में बताने के लिए आए हिमांशू रॉय
हिला नहीं पाए हाईप्रोफाइल केस..
हिमांशू रॉय 1998 के महाराष्ट्र कैडर के IPS ऑफिसर थे. वो कई हाईप्रोफाइल केस सुलझा चुके थे. दाऊद अब्राहिम के भाई इकबाल कास्कर के ड्राइवर आरिफ के गोली चलाने का केस, जर्नलिस्ट जे डे की हत्या का केस, विजय पालंडे, लीला खान का डबल मर्डर केस के साथ कई अन्य मर्डर केस बिना डरे उन्होंने सुलझाए थे.
जब हिमांशू एंटी टेरर स्क्वॉड के हेड थे तो उन्होंने सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीस अंसारी को गिरफ्तार किया था जो अमेरिकन स्कूल को उड़ाने की कोशिश में था. हिमांशू रॉय का आखिरी हाईप्रोफाइल केस IPL सट्टेबाज़ी स्कैम था. इसी के साथ, हिमांशू ने डीज़ल डॉन मोहम्मद अली शेख को भी गिरफ्तार किया था.
इनमें से किसी भी केस में हिमांशू कभी डरे हुए नहीं दिखे, न ही वो कभी किसी भी काम में घबराए.
2013 में शक्ति मिल गैंगरेप की पड़ताल करते हिमांशू रॉय
तो क्या अंदर से टूट चुके थे हिमांशू?
यकीनन एक जांबाज़ पुलिस ऑफिस के लिए ये कहना उसकी बेइज्जती करना है, लेकिन शायद कारण यही बना. मुंबई पुलिस के अनुसार हिमांशू के घर से 1 पेज का सुसाइड नोट मिला है और उसमें लिखआ है कि उनकी मौत के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है. वो कैंसर के कारण परेशान थे. हिमांशू 2016 से बोन कैंसर के कारण छुट्टी पर थे. डिप्रेशन का शिकार थे और ऐसा माना जा रहा है कि इसी कारण उन्होंने खुद को गोली मार ली. अपने मुंह में पिस्तौल रखकर गोली चलाते वक्त हिमांशू कितनी तकलीफ में होंगे ये तो सिर्फ वही जान सकते हैं. अभी तक उनकी मौत का पुख्ता कारण नहीं पता चला, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि पुलिस डिपार्टमेंट का बहुत नुकसान हुआ है.
हिमांशू को कैंसर था और वो लंबे समय से इस बीमारी से लड़ रहे थे. ऐसा कई बार सुना है कि कैंसर को सर्वाइव करना काफी मुश्किल है. होता भी है. मैंने खुद इसकी तकलीफ बहुत करीब से देखी है. वो तकलीफ जो मेरे एक करीबी इंसान को होती थी. वो असहनीय दर्द, दवाओं का इन्फेक्शन, कमजोरी इस कड़े प्रोसेस का असर दिमाग पर नहीं होता ये मैं नहीं मानती.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव का हिस्सा बने हिमांशू रॉय
रिपोर्ट्स भी कहती हैं कि कैंसर के मरीज़ के दिमाग पर तीन तरह से असर होता है. एंग्जाइटी, डर और डिप्रेशन. जरा सोचिए आपने अपनी पूरी जिंदगी प्लान कर रखी हो और अचानक एक दिन कैंसर का पता चले. ये शब्द सुनना कभी आसान नहीं होता. सिर्फ इसलिए कि इलाज बेहतर हो गया है, लाइफस्टाइल बदल गई है इसका मतलब ये नहीं कि कैंसर का डायग्नोसिस जिंदगी में परिवर्तन नहीं लाएगा. ये खबर अकेले ही मरीज़ की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल सकती है.
सिर्फ कैंसर का पता चलना किसी को दिमागी रूप से बीमार बनाता है ये गलत है, लेकिन इलाज के दौरान मरीज़ों में डिप्रेशन, डर और एंग्जाइटी के लक्षण जरूर दिखने लगते हैं. कोई भी दो लोग एक जैसा बर्ताव नहीं करते.
1. एंग्जाइटी..
क्या मेरा डायग्नोसिस सही है? क्या सही फैसला लिया है मैंने? क्या हुआ अगर इलाज सही नहीं हुआ और भी न जाने क्या-क्या. ये सारे सवाल लोगों के दिमाग में आ सकते हैं. घबराहट, चिंता आदि सब एंग्जाइटी के ही तो रूप हैं. भविष्य के बारे में चिंता करना स्वाभाविक है और जब वो चिंता इस बात की हो कि आगे जिंदा रहा जाएगा या नहीं तब तो वाजिब है कि दिक्कत हो.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसीपी देवेन भारती के साथ हिमांशू रॉय
2. डिप्रेशन..
नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के मुताबिक 15% से 25% कैंसर के मरीज़ डिप्रेशन का शिकार होते हैं और ये आसानी से लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है. यकीनन कैंसर के मरीज़ों को ये बात परेशान करती है कि उनके साथ आने वाले समय में क्या होने वाला है. साथ ही उन्हें चिड़चिड़ापन, परेशानी, दर्द और तकलीफ भी काफी दुख देती है. कैंसर के मरीज़ के लिए ये जरूरी है कि वो अपनों के बीच रहे और लोग उसे समझें. वो किस मानसिक स्थिती से गुजर रहा है ये परेशान पता लगाना बहुत ही मुश्किल है.
3. डर और दुख..
डर और दुख दोनों कैंसर के इलाज और उसके दौरान होने वाली तकलीफों से जुड़े हुए हैं. किसी के लिए भी बहुत मुश्किल होता है कि वो इतने कठिन इलाज को करवाए, कई बार तो कैंसर के मरीज़ों के पास पर्याप्त मात्रा में पैसा भी नहीं होता जो वो खुद का इलाज करवा सकें. ये परेशानी, भविष्य का डर और दुख उन्हें अंदर से तोड़ सकता है.
ये जरूरी है कि कैंसर के मरीज को इलाज के साथ-साथ लोगों का व्यवहार भी ठीक मिले. साथ ही उसकी मानसिक परेशानियों पर कोई ध्यान दे.
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