क्यों एक महिला चपरासी की सेवानिवृत्ति दफ्तर में सभी के बीच कौतूहल का विषय थी?
फिर थोड़ी देर में विदाई समारोह समाप्त हुआ. ऑफिस के सभी लोगों ने भींगी आंखों से सुशीला को विदा किया. सुशीला को साथ लिए उसके तीनों बच्चे वापस घर की ओर रवाना हो गए. उनके पीछे-पीछे पुलिस का कारवां भी चल पड़ा, जिसे ऑफिस के सभी स्टाफ अपनी खिड़की से देख रहे थे.
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आज ऑफिस में सारे स्टाफ की निगाहें बाहर आने-जाने वालों पर टिकी थी. वजह, सुबह से एक-एक करके वहां जमा हो रहा पूरा पुलिस महकमा. पता करने पर मालूम चला कि न्यायपालिका और पुलिस-प्रशासन के उच्च अधिकारियों का आगमन हुआ है. तभी बाहर से एक स्टाफ का ऑफिस में प्रवेश हुआ और उसनेवहां मौजूद कर्मचारियों, जो अभी भी बाहर आते-जाते लोगों की ताक-झांक में लगे थे, उ नका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता हुआ बोला- 'अरे तुमसब अभी भी बाहर क्या झांक रहे हो! चलो चलो, एमडी साहब कांफ्रेंस हॉल में आ चुके हैं. सुशीला के रिटायरमेंट का फेयरवेल अब शुरू ही होने वाला है.' सुशीला, जो इसी ऑफिस में चपरासी के पद पर कार्यरत थी. लगातार तीस वर्षों तक अपनी सेवा देने के पश्चात आज सरकारी सेवा में उसका आखिरी दिन था. सभी लपककर कांफ्रेंस हॉल की तरफ भागे. भीतर आकर खाली कुर्सी पर अपनी जगह लेते हुए सभी जम गए. सामने स्टेज पर एमडी साहब अपने कुछ शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठे थे. उनके ही बगल में एक कुर्सी पर सुशीला भी बैठी थी.
व्यक्ति कोई भी हो रिटायरमेंट उसके और पूरे परिवार के लिए एक भावुक क्षण होता है
सुशीला के लिए यह पहला और शायद आखिरी मौका था, जब उसे अपने ऑफिस के शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ बैठने का अवसर मिला हो. नहीं तो पूरी ज़िंदगी उसने फाइलें यहां से वहां पहुंचाने या फिर सबों के टेबल पर पानी व चाय-नाश्ता लाकर देने में ही बितायी. वह मात्र आठवीं तक ही पढ़ी थी. इसीलिए आगे बढ़ने का भी उसे कोई मौका न मिला. नीचे दर्शकदीर्घा में ऑफिस के बाकी सभी अधिकारी और कर्मचारी बैठे थे, जो तकरीबन सौ-सवा सौ की संख्या में होंगे.
लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों के लिए कौतूहल का विषय बने थे, उसी दर्शकदीर्घा में सबसे आगे की कतार में बैठे कुछ मेहमान और सुशीला की सेवानिवृति कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति. उनमें से एक किसी जिले का जिलाधिकारी था. उसके बगल की सीट पर बैठा पड़ोसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश, जबकि सबसे किनारे पर बैठी महिला इसी ज़िले की पुलिस कप्तान थी. वहीं एक तरफ पुलिस के कुछ जवान उन सबकी सुरक्षा में अपने बंदूक लिए तैनात थे.
कांफ्रेंस हॉल में सबके जमा के हो जाने के बाद एमडी साहब ने फेयरवेल कार्यक्रम शुरू किया. एक-एक करके सबने सुशीला को उसके सेवानिवृत जीवन की शुभकमानएं दी एवं उसकी प्रशंसा और अबतक के उसके साथ ऑफिस में बिताए यादों का छोटा–सा झरोखा पेश किया. सबसे अंत में एमडी साहब ने सुशीला से अपने अनुभव सबके साथ बांटने का निवेदन किया.
कांपते हुए हाथों से माइक पकड़कर सुशीला ने भरे गले से सबका अभिवादन करते हुए कहा 'आप सभी को मेरा नमस्कार.' फिर अपने कांपते हुए हाथों की तरफ देख मुस्कुराती हुई बोली- 'आज पहली बार माइक पकड़कर यूं सबके सामने बोलने का मौका मिला है, शायद इसलिए ये हाथ कांप रहे हैं. रोज जिन चेहरों को देखने और सुनने की आदत पड़ी थी, कल से वो मौका अब नहीं मिलने वाला.
आपसब से दूर होने का दुःख है. साथ ही, बच्चों से दूर रहने की उनकी शिकायत खत्म होने की खुशी भी. सबके साथ अपने अनुभव बांटते हुए सुशीला ने बताया- 'तीस साल पहले चपरासी के पद पर बहाल हुई और आज चपरासी के पद से ही रिटायर हो रही हूं. मन में एक टीज़ तो बनी थी. पर बच्चे ज़िंदगी की दौड़ में आगे निकल गए, इस बात से तसल्ली भी हुई.
सेवानिवृति के इस विदाई समारोह में अपने बच्चों को यहां मौजूद देख बड़ा सुखद एहसास हुआ. ऐसा लग रहा है जैसे स्कूल से छूटटी होने पर माता-पिता अपने बच्चों को लेने आते हैं, वैसे ही आज ऑफिस से छुटकर अपने बच्चों के साथ घर लौटुंगी. इतना बोलकर सुशीला ने माइक वापस एमडी साहब की तरफ बढ़ा दिया.
एमडी साहब ने माइक थामते हुए कहा- 'सुशीला की रिटायरमेंट का यह कार्यक्रम उसके परिवार के बिना अधूरा था. मैं यहां मौजूद सुशीला के बच्चों से आग्रह करूंगा कि वे मंच पर आए और सुशीला का मान बढ़ाए.' एमडी साहब के अनरोध पर दर्शकदीर्घा की अगली कतार में मौजूद सभी मेहमान अपनी जगह से उठकर मंच की तरफ बढ़ने लगे. उनके खड़े होते ही वहां मौजूद पुलिस के जवान हरकत में आ गए और उनकी सुरक्षा में उनके पीछे-पीछे हो लिए.
कांफ्रेंस हॉल में बैठे सभी स्टाफ यह सब बड़े अचंभित होकर देख रहे थे. इतने सालों तक उन्होने सुशीला के साथ काम किया. पर सुशीला ने आजतक अपने बच्चों के कामकाज के बारे कभी किसी से चर्चा न की. और न ही उसके हाव-भाव से आजतक घमंड की कोई बू आई. सुशीला के तीन बच्चे थे, जिनमें दो बेटे और एक बेटी थी. सभी अपनी मां को उसकी सेवानिवृत्ति पर बधाई देते फुले न समा रहे थे.
मंच पर विराजमान एमडी साहब एक तरफ खड़े होकर सुशीला के लिए तालिया बजा उसका हौसला बढ़ा रहे थे. मैं सुशीला के बच्चों से आग्रह करूंगा कि वे अपनी मां के लिए दो शब्द कहे.- एमडी साहब ने कहा और माइक वहां खड़े सुशीला के बच्चों की तरफ बढ़ा दिया.
सुशीला का बड़ा बेटा आगे आया और एमडी साहब के हाथों में माईक लेकर बोला- 'आप सबों का मैं धन्यवाद देना चाहूंगा कि मेरी मां का इन तीस सालों तक इतना ख़्याल रखा. आज हम तीनों भाई-बहन जिस मुकाम पर हैं, उसे हमारी सफलता से ज्यादा हमारी मां की उपलब्धि कहना गलत न होगा. मैं श्रीमती सुशीला देवी का बड़ा बेटा, अभय. वैसे तो मैं पड़ोसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश हूं , पर यहां आप सबके बीच एक बेटे की हैसियत से खड़ा होकर बड़ा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं.
मेरे बगल में खड़ी यह मेरी सबसे छोटी बहन स्वाति है, जो इस जिले की पुलिस कप्तान भी है. यहां मेरे पीछे खड़ा यह मेरा छोटा भाई प्रफुल्ल है, जो उत्तराखंड में जिलाधिकारी के पद पर तैनात है.' आगे बोलते हुए सुशीला के बड़े बेटे अभय ने कहा- 'हम भाई-बहनो ने मिलकर मां को आज सरप्राइज़ देने का प्लान बनाया. उसकी सेवानिवृत्ति का दिन उसके साथ-साथ हम तीनों भाई-बहनों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. इसीलिए अचानक से यहां पहुंच हमने इसे यादगार बनाने का निश्चय किया.'
इतना कहकर उसने माइक एमडी साहब की तरफ बढ़ा दिया. थोड़ी देर में विदाई समारोह समाप्त हुआ . ऑफिस के सभी लोगों ने भींगी आंखों से सुशीला को विदा किया. सुशीला को साथ लिए उसके तीनों बच्चे वापस घर की ओर रवाना हो गए. उनके पीछे-पीछे पुलिस का कारवां भी चल पड़ा, जिसे ऑफिस के सभी स्टाफ अपनी खिड़की से देख रहे थे.
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