अल्पसंख्यकों से बर्ताव के मामले में 'फेल' इमरान खान चले भारत को सबक देने!
इमरान खान ने कहा है कि वो मोदी सरकार को बताएंगे कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है, लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ये नहीं जानते कि उनके यहां अल्पसंख्यकों से कैसा बर्ताव किया गया है.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को उनके अल्पसंख्यक वाले बयान पर यूं तो कई जवाब मिल चुके हैं. पाक पीएम ने नसीरुद्दीन शाह की बात पर बयान दिया था. पाक पीएम ने लाहौर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि वह मोदी सरकार को दिखा देंगे कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा सलूक किया जाता है. साथ ही पाक पीएम ने कहा था कि भारत में जो कुछ हो रहा है वह मुसलमानों के खिलाफ असहिष्णुता का उदाहरण है. इस पर खुद नसीरुद्दीन शाह ने उन्हें करारा जवाब दे दिया है, लेकिन इमरान के इस बयान से लेखक, बुद्धिजीवी, साहित्यकारों में भी गुस्सा है और उन्होंने भी सोशल मीडिया पर इमरान को जवाब दिया है. हम लाए हैं चर्चित किताब कश्मीरनामा के लेखक अशोक कुमार पाण्डे का पत्र जो मैंने उनकी फेसबुक पोस्ट से लिया है
प्रिय इमरान खान जी,
सादर नमस्कार
आपने कहा कि आप हिंदुस्तान को दिखाएंगे कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और यक़ीन मानिए यह सुनकर मेरा मन वैसे ही ख़ुशी से उछल पड़ा जैसे आजकल के लौंडे विकेट पाकर उछल पड़ते हैं. कितना अच्छा हो कि दुनिया सारी सरकारें एक दूसरे को यह दिखाने का कॉम्पटीशन करें कि अल्पसंख्यकों को कैसे रखा जाता है.
इमरान खान के लिए पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की हालत देखना अब जरूरी हो गया है
लेकिन मैं ठहरा कश्मीर का रिसर्चर और मन जाकर टिक गया आपके कथित आज़ाद कश्मीर के संविधान पर जहां चुनाव लड़ने का हक़ केवल उसे है जो यह शपथ ले कि वह कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहता है. यानी आज़ादी की बात करने वाले आपके कश्मीर में तो चुनाव भी नहीं लड़ सकते और आप भारत वाले कश्मीरियों की "आज़ादी" की लड़ाई को समर्थन देते हैं. बलूचियों की बात करूंगा तो आप नाराज़ हो जाएंगे और मुझे नेताओं की नाराज़गी से बड़ा डर लगता है. वैसे बता दूं कि अल्पसंख्यक केवल धर्म से नहीं, राष्ट्रीयता से भी होते हैं इसीलिए तो आपने अपने आज़ाद कश्मीर में इतने पंजाबी घुसा दिए हैं कि वहां कश्मीर से ज़्यादा पंजाब दिखता है. गिलगिट बाल्टिस्तान में अल्पसंख्यक शियाओं के साथ जो सुलूक आपकी हुकूमतों ने किया है उसने उस इलाक़े की डेमोग्रेफी ही नहीं बदली बल्कि एक हिस्सा तो चीन को गिफ्ट कर दिया और परमानेंट शिया-सुन्नी विवाद चला दिया.
बाक़ी जो हिंदू उधर रह गए थे उनकी ख़बर भी आती रहती है और यक़ीन जानिए हमारे मुल्क में मुसलमान उनसे बहुत बेहतर हालात में हैं. ईसाइयों की तो बात ही क्या करनी, तासीर साहब ने ईशनिंदा क़ानून की शिकार जिस औरत की तरफ़दारी कर जान गंवाई थी वह कोर्ट से छूटने के बाद आपके मुल्क में रह भी नहीं पाई!
ठीक है, हमारे मुल्क में भी दिक्कतें हैं लेकिन अपने अकलियत की लड़ाई लड़ पाने भर की हिम्मत हमें हमारे वडील दे गए हैं. हम भगत सिंह और गांधी के देश हैं हुज़ूर और फैज़-ओ-मंटो को भी अपना मानते हैं तो ज़रा अपने मुल्क की फिक्र कीजिए प्लीज़.
बाक़ी हमारे एक अज़ीम शायर निदा फाज़ली साहब आपके यहां से लौटने के बाद एक शेर कह गए हैं सो आपकी नज़र कर रहा हूं -
हिंदू भी मज़े में है मुसलमां भी मज़े में इंसान परेशान यहां भी हैं वहां भी
आपका अशोक कुमार पाण्डे
ये पत्र दरअसल हिंदुस्तान के लोगों की भी आवाज है. उम्मीद है अब कम से कम इमरान ऐसे बयानों से हिंदुस्तान पर सवाल नहीं उठाएंगे.
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