Home Isolation में इन 5 चीजों से पहले अस्पताल फिर शमशान/कब्रिस्तान जा रहे हैं कोरोना मरीज!
एक ऐसे समय में जब लोगों को अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही हो और लोग होम आइसोलेशन के लिए मजबूर हों, तमाम लापरवाहियों की बदौलत मरीज की जान को जोखिम में डाला जा रहा है. आइये जानें उन 5 लापरवाहियों के बारे में जो मरीज को पहले अस्पताल फिर शमशान/ कब्रिस्तान भेज रही हैं.
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अब इसे विडंबना कहें या शासन की लचरता चाहे हाई प्रोफाइल लोग हों या फिर मध्यम वर्गीय और ग़रीब अस्पताल में उसे बेड नहीं मुहैया हो पा रहा है. रही गयी कसर ऑक्सीजन और दवाओं की कमी ने पूरी कर दी है. जिस कारण स्थिति कुछ ऐसी है कि हमारे चारों तरफ लाशें और उन लाशों पर दहाड़ मार कर रोते बिलखते परिजन हैं. कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है और चूंकि एक ऐसे समय में जब कोविड 19 की दूसरी लहर अपने चरम की तरफ आ गयी हो और देशवासी अव्यवस्था का दंश झेल रहे हों. एक बड़ा वर्ग है जो 'होम आइसोलेशन' के नाम पर घर में रहकर अपना इलाज कराने या बहुत सीधे कहें तो मूलभूत सुविधाओं के आभाव में घर पर रहकर तड़पने को मजबूर है. स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञ इस बात को कहने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं कि कोविड 1 के मुकाबले कोविड 2 कहीं ज्यादा घातक इसलिए भी है क्यों कि पिछली बार के विपरीत इस बार मृत्यु दर अधिक है. कोविड 1 में जहां ज्यादातर लोग सही हो रहे थे तो वहीं कोविड 2 के मद्देनजर अधिकांश लोग मौत के चक्रव्यूह में फंस रहे हैं और अपनी अपनी जान से हाथ बैठ रहे हैं.
होम आइसोलेशन के दौरान की जा रही लापरवाही अपने आप में एक बड़ी चुनौती है
चूंकि इस बार संक्रमित 70 साल का बुजुर्ग भी है और 17 या 27 साल का युवा भी तो एक देश के रूप में भारत को और एक नागरिक के रूप में हमें किसी भी सूरत में कोरोना को हल्के में नहीं लेना चाहिए. जिक्र क्योंकि कोविड की दूसरी वेव, उससे हो रही मौतों और साथ ही होम आइसोलेशन का हुआ है तो बात सीधी और साफ है. इस जटिल हालात में हम ये आशा बिल्कुल नहीं कर सकते कि 'होम आइसोलेशन' से गंभीर मरीज स्वस्थ हो जाएंगे.
हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कहने बताने को हमारे पास हजार कारण हैं मगर जो सबसे प्रभावी कारण है वो है एक नागरिक के रूप में हमारी स्वयं की लापरवाही. बीमारी के फौरन बाद हम किस तरह लापरवाह होते हैं ये हमें बताने की ज़रूरत नहीं है. थोड़ी सी तबियत सही हुई और हम ऐसा बहुत कुछ कर जाते हैं जो न केवल विचलित करता है बल्कि कई मायनों में जानलेवा भी है.
हाल फिलहाल में हमारे सामने ऐसे तमाम केस आ चुके हैं जिसमें 'होम आइसोलेशन' में इलाज करा रहा व्यक्ति ठीक हुआ. उसके साथ लापरवाही हुई उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया. तो आइए नजर डालते हैं उन लापरवाहियों पर जिन्हें होम आइसोलेशन में रह रहे रोगी या उसके परिजन अंजाम देते हैं और फिर एक समय वो आता है जब मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठता है.
सावधानी अपनाने में लापरवाही
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं. कोविड की इस दूसरी लहर में 'होम आइसोलेशन' वायरस को कमज़ोर करने या ये कहें कि सही होने का कोई कारगर माध्यम नहीं है. लेकिन बावजूद इसके इसका सुझाव इसलिए दिया जा रहा है क्यों कि अस्पतालों की स्थिति बहुत बुरी है. बात होम आइसोलेशन की हुई है तो शुरुआती दिनों में मरीज से लेकर तीमारदारों तक कोविड नियमों का पालन किया जाता है.
मगर मरीज की हालत तब गंभीर होती है, जब बीमारी के 5 - 7 दिन बाद वो कुछ ठीक होता है. मरीज की सेवा में लगे तीमारदारों को लगता है कि अब सिचुएशन काबू में आ गई है तो जहां एक तरफ दवाइयों के साथ लापरवाही शुरू होती है तो वहीं मरीज में इंफेक्शन के प्रसार का एक बड़ा कारण साफ सफाई भी है.
वो तीमारदार जो ग्लव्स, पीपीई किट पहने, मरीज के कमरे को बार बार सेनेटाइज करते थे मरीज के सही होते ही इन चीजों से कन्नी काट लेते हैं. नतीजा ये निकलता है कि मरीज जो पहले ही बहुत कमजोर है इंफेक्शन का बोझ नहीं उठा पाता और एक समय वो भी आता है जब स्थिति कुछ इस हद तक बिगड़ जाती है कि नौबत मरीज को अस्पताल ले जाने की आ जाती है. मरीज की इम्युनिटी ने साथ दिया तो ठीक वरना मरीज लाश बन जाता है और उसे शमशान या कब्रिस्तान के हवाले कर दिया जाता है.
खाने पीने में लापरवाही
कोविड की ये दूसरी लहर पहली के मुकाबले इसलिए भी गंभीर है क्योंकि कमज़ोरी मरीज को अंदर से तोड़ दे रही है. डॉक्टर्स की मानें तो दूसरी वेव में मरीज के बचने की संभावना तब ही है जब उसकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो. अब सवाल ये है कि मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए? जवाब है सही खान पान. इन जटिल परिस्थितियों में यदि आप डॉक्टर्स से बात करेंगे तो पाएंगे कि डॉक्टर्स भी इस बात को लेकर एकमत हैं कि कोविड की चुनौतियों से इंसान तभी बच सकता है जब वो ऐसा खाना खाए जिसमें विटामिन, प्रोटीन के अलावा रोगों से लड़ने उन्हें समाप्त करने की क्षमता हो.
अब इन बातों को यदि हम होम आइसोलेशन के मद्देनजर देखें तो मरीज की बीमारी के शुरुआती दिनों में तीमारदार मरीज को पौष्टिक खाना देते हैं फिर जब वो सही होने लगता है तो लापरवाही होती है और ऐसी चूक हो जाती है जिसका खामियाजा मरीज को अपनी जान की बाजी लगाकर भरना पड़ता है.
ध्यान रहे कोविड से ज्यादा खतरनाक पोस्ट कोविड है और पोस्ट कोविड ही वो समय है जब मरीज को पौष्टिक खाने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है.
एलोपैथी, होमियोपैथी, आयुर्वेद! व्हाट्सएप के मैसेज देखकर घर के हर सदस्य का डॉक्टर हो जाना.
पूर्व में जो कोई भी कोविड की गिरफ्त में आया है, वर्तमान में जो भी कोविड का इलाज करा रहा है जानता होगा कि यूं तो हाल फिलहाल में कोरोना की कोई ठीक-ठीक दवा नहीं है. वो केवल हाई डोज एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड दी जा रही हैं जो बीमार मरीज को सही करने का काम कर रही हैं. होम आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति के साथ जो सबसे बड़ी दिक्कत है वो ये कि वो बेचारा इनका तो सेवन कर ही रहा है साथ ही साथ उसे ये सोचकर आयुर्वेद, होमियोपैथी की दवा खिलाई जा रही है कि वो जल्द से जल्द ठीक हो जाए.
हालात तो ऐसे हैं कि व्हाट्सएप पर कोई नया फारवर्ड आया नहीं और घर का हर सदस्य डॉक्टर बन गया और आ गया मरीज के पास बीमारी भगाने वाला अपना नुस्खा लेकर.क्या कभी आपने उस मरीज की स्थिति का अंदाजा लगाने की कोशिश की जो है तो घर में लेकिन उसके साथ तरह-तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं. ध्यान रहे कम ही देखा गया है कि ये प्रयोग कामयाब हुए हैं वरना कई मामले हमारे सामने ऐसे हैं जिनमें प्रयोग व्यक्ति के जान जाने की बड़ी वजह बना.
अतः बेहतर यही है कि दवा मरीज को डॉक्टर्स से पूछ कर खिलाएं और ख़ुद डॉक्टर बनने की कोशिश इसलिए भी न करें क्यों कि आपका ये शौक किसी की जान ले लेगा.
ठीक होते ही पेशेंट के कमरे पर कब्जा उसके सामने तमाम नकारात्मक बातें करना.
सुनने बताने में ये बात बहुत छोटी है मगर इसके पीछे जो अर्थ छिपे हैं वो बहुत गहरे हैं. प्रायः ये देखा गया है कि जैसे ही ये सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति कोविड पॉजिटिव हो गया है लोग उससे कन्नी काट लेते हैं. होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों की भी यही समस्या है. जैसे ही ये सही होते हैं देखने और हालचाल लेने के बहाने लोग इन्हें या इनके कमरे को घेर लेते हैं.
फिर चाहे कोरोना से ही हुई मौत का समाचार अन्य लोगों को सुनाना हो या फिर ये बताना कि कोविड के चलते फलां की नौकरी चली गई तमाम नकारात्मक बातें इनके सामने होती हैं. एक पल वो आता है जब ये नकारात्मक बातें मरीज पर हावी हो जाती हैं और वो ये सोचने लगता है कि अब शायद ही वो बचे.
इन विचारों को लिए मरीज सोचना शुरू कर देता है और फिर एक क्षण वो आता है जब पहले से कुछ बेहतर हुई तबियत कुछ इस हद तक बिगड़ जाती है कि लेने के देने पड़ जाते हैं.
साफ सफाई में लापरवाही
जैसा कि हम बता चुके हैं कोविड से जंग लड़ने की सबसे मजबूत ढाल साफ सफाई है तो इस बात का पूरा ख्याल रखें कि होम आइसोलेशन के नाम पर जब व्यक्ति घर में इलाज करा रहा है तो उसकी साफ सफाई का पूरा ख्याल रखा जाए. बताते चलें कि कोविड से खतरनाक पोस्ट कोविड है और यदि इसमें साफ सफाई के मद्देनजर लापरवाही हुई, इंफेक्शन बढ़ा तो उस व्यक्ति की जान भी जा सकती है जो घर के किसी कोने में रहकर अपनी सांसें गिन रहा है.
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