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Updated: 08 जून, 2018 05:43 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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पहला पीरियड और उसका दर्द हर लड़की को जिंदगी भर याद रहता है. हर महीने 4-5 दिन की तकलीफ और उस समय होने वाली चिढ़ को कोई और नहीं समझ सकता. पहली बार कौन सा पैड कैसे इस्तेमाल किया था ये भी याद होगा, लेकिन अगर किसी से कहा जाए कि लड़कियों द्वारा इस्तेमाल किया गया पहला पैड अभी तक किसी कोने में पड़ा होगा तो?

यहां तक की पृथ्वी पर पहली बार इस्तेमाल हुआ डिस्पोजेबल पैड भी अभी डिकम्पोज नहीं हुआ होगा. विस्पर, स्टेफ्री, केयरफ्री वगैराह-वगैराह सभी पैड्स इस्तेमाल तो कर लिए जाते हैं, लेकिन ये फेंकने के बाद पर्यावरण का क्या करते हैं ये यकीनन सोचने वाली बात है. अकेले भारत में ही हर साल 9 हज़ार टन पैड्स फेंके जाते हैं जिन्हें डिस्पोज होने में कम से कम 500-800 साल लगेंगे.

अगर हाईजीन की बात करें तो ये पैड्स प्लास्टिक के बने होते हैं जो अपने आकार से तीन गुना ज्यादा लिक्विड सोख सकते हैं. इनकी वजह से कई महिलाओं को रैश हो जाते हैं और वो गुप्तांगों की कई परेशानी का शिकार हो सकती हैं.

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इसके लिए बायोडिग्रेडेबल पैड्स इस्तेमाल किए जा सकते हैं. 90 के दशक में जब पैड्स वजूद में आए थे तब कहा जाता था कि कपड़ा नहीं पैड का इस्तेमाल करो वो ज्यादा बेहतर है, लेकिन अब अगर मैं आपसे कहूं कि कपड़ों से बने पैड्स इन दोनों से बेहतर हैं तो? मैं कपड़े के पैड्स की बात कर रही हूं जिन्हें न सिर्फ इस्तेमाल करना आसान है, बल्कि ये सस्ते, किफायती और पर्यावरण के लिए बेहतर भी हैं.

अक्सर लड़कियों के मन में ये सवाल होता है कि आखिर ये ठीक तरह से सोख पाएंगे या नहीं, कहीं कोई लीकएज तो नहीं होगा. पर ऐसा कुछ नहीं होता. ये ज्यादा सुरक्षित, साफ रहते हैं. पैड्स को आसानी से धोया भी जा सकता है.

अधिकतर लड़कियां इसे धोने के नाम पर नाक भौं सिकोड़ने लगती हैं पर ये कुछ वैसा ही समझिए जैसे चादर पर दाग लगने पर उसे धोया जाता है. कपड़े के पैड्स इस्तेमाल करने के बाद पहला रिएक्शन यही था कि ये काफी आरामदायक हैं. इनसे न ही जलन होती है, न ही त्वचा की कोई दिक्कत सामने आती है और न ही ये टॉक्सिक होते हैं.

इस्तेमाल से पहले कई बार ऐसे सवाल मन में आए थे कि ये सदियों पुरानी प्रथा है और कई परतों में कपड़ा हाइजीनिक न हो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मॉडर्न क्लॉथ पैड्स किसी भी तरह से स्वास्थ्य के लिए खराब नहीं होते हैं. ये कपड़ा वाटरप्रूफ होता है और इसमें किसी भी तरह का कोई ऐसा कैमिकल नहीं होता है जिससे इन्फेक्शन होने का खतरा हो. साथ ही इसका कपड़ा पूरी तरह से सैनेटाइज होता है इसलिए ये घर के बने क्लॉथ पैड से ज्यादा सुरक्षित होता है.

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एक पैड को 80 से 100 बार इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे साफ करने के लिए भी इंस्ट्रक्शन बुक आती है जिससे इसे कैसे सही से उपयोग किया जाए और हमेशा इन्फेक्शन से दूर रखा जाए ये सभी तकनीक दी जाती है. यकीनन घर का कपड़ा इस्तेमाल करना सेफ नहीं होता क्योंकि पहली बात तो वो न ही सैनेटाइज किया होता है, न ही उसमें इतनी प्रोटेक्शन होती है कि बहाव को रोक सके और उससे बीमारियों का खतरा भी होता है. लेकिन यकीनन मॉडर्न पैड्स का इस्तेमाल महिलाओं के लिए बेहतर है.

तो अंत में अगर रिव्यू की बात करें..

1. ये स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं.2. ये सस्ते हैं.3. पर्यावरण के लिए अच्छे हैं.4. किसी तरह का कोई हाइजीन इशू नहीं आएगा. 5. एक और सबसे अच्छी बात ये रही कि दो-तीन महीने बाद पीरियड के दर्द में भी थोड़ी राहत समझ आई. ये यकीनन एक अनोखी बात थी.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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