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Updated: 04 अक्टूबर, 2015 03:13 PM
मार्कंडेय काटजू
मार्कंडेय काटजू
  @justicekatju
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उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक नाम के एक व्यक्ति की हत्या कथित गोमांस खाने के आरोप में कर दी गई. महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने बीफ प्रतिबंधित कर दिया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि बीफ से इतनी ही दिक्कत है तो इसका एक्सपोर्ट क्यों नहीं बंद कर देते. उन्होंने यह भी कहा कि फाइव स्टार होटलों में बीफ परोसा जाता है.

आजकल टीवी चैनलों पर अधिकतर खबरें बीफ के बारे में ही हैं. 'बीफ खाने में कुछ भी गलत नहीं' मैं बीफ खाने में कुछ भी गलत नहीं मानता हूं. मैंने स्वयं कई बार बीफ खाया है और भविष्य में खाऊंगा यदि मेरा मन किया तो.

दुनियाभर के अधिकतर देशों में बीफ खाया जाता है. अमरीकी, यूरोपीय, अफ़्रीकी, अरब, चीनी, जापानी, ऑस्ट्रेलियाई आदि सभी बीफ खाते हैं. क्या वो सब शैतान लोग हैं और सिर्फ़ हिंदू ही साधू-संत हैं. गाय सिर्फ एक जानवर है, जैसे कि घोड़ा एक जानवर है. तो फिर उसे गोमाता कैसे कहा जा सकता है.

क्या एक जानवर मानवों की मां हो सकती है. यदि ये इसलिए है कि गाय हमें पीने के लिए दूध देती है तो फिर भैंस, बकरी, ऊंट और दूध देने वाले अन्य जानवरों को भी हमें मां कहना चाहिए क्योंकि मनुष्य उनका भी दूध पीता है. तो क्या इन जानवरों की भी पूजा नहीं की जानी चाहिए?

प्रोटीन का सस्ता स्रोतः

गोवा, केरल, पश्चिम बंगाल और कई उत्तर पूर्वी प्रांतों में बीफ भोजन में प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है. कई प्रांतों में जहां बीफ पर पाबंदी नहीं हैं वहां अधिकतर ईसाई रहते हैं, उदाहरण के तौर पर नगालैंड और मिजोरम. वहां बीफ खुलेआम बिकता है.

यदि संपूर्ण भारत में बीफ पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जैसे कि कई राजनेता मांग करते रहे हैं तो ये प्रांत भारत से अलग होने की मांग उठाएंगे. क्या हम ऐसा चाहते हैं? ऐसे प्रतिबंध हमारी पिछड़ी और सामंती मानसिकता का प्रदर्शन करते हैं और समूचे विश्व के सामने हमें हंसी का पात्र बनाते हैं. हम एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र हैं इसलिए सभी प्रांतों से बीफ पर पाबंदी हटनी चाहिए.

गायों की देखभाल से मतलब नहीः

जो लोग गाय के लिए हो-हल्ला मचाते हैं उन्हें उन दसियों हजार गायों की पीड़ा से कोई मतलब नहीं है जो सही देखभाल न मिलने के कारण सड़कों पर दम तोड़ रही हैं. जब गायें बूढ़ी हो जाती हैं या किसी और वजह से दूध देने लायक नहीं रहती तो उन्हें घर से बाहर खदेड़ दिया जाता है, दर-दर भटकने के लिए. ये पूरी तरह मेरा निजी मामला है कि मैं क्या खाता हूँ. मैंने सड़कों के किनारों गायों को गंदगी खाते हुए देखा है.

मैंने इतनी बीमार गायें देखी हैं कि उनकी हड्डियां खाल से बाहर निकलती दिखाई देती हैं. क्या गायों को भुखमरी के लिए मजबूर करना गोहत्या के बराबर नहीं है. लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है. मुझे ये कहते हुए दुख हो रहा है कि ऐसे प्रतिबंध आजकल राजनीतिक कारणों से ज्यादा लगाए जाते हैं.

बेवकूफी भरा तर्कः

उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में पहले से ही महाराष्ट्र पशु परिरक्षण अधिनियम 1976 था जिसके तहत गोहत्या प्रतिबंधित थी (इसमें बछिया और बछड़ा भी पहले से ही शामिल थे) लेकिन इसके तहत प्रमाण पत्र लेने के बाद बैलों और भैंसों के वध की अनुमति थी.

लेकिन अब 2 मार्च 2015 के बाद से जो नया कानून प्रभावी है उसके तहत बीफ की बिक्री और निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसकी वजह से बहुत से लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है. ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि गोहत्या मानव हत्या के बराबर है. मैं इसे एक बेवकूफी भरा तर्क मानता हूं. कोई एक जानवर की तुलना एक इंसान से कैसे कर सकता है.

ऐसे प्रतिबंधों के पीछे वोट बैंक की राजनीति करने वाले प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी तत्व हैं.

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लेखक

मार्कंडेय काटजू मार्कंडेय काटजू @justicekatju

लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एवं प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष हैं

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