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Updated: 21 अप्रिल, 2021 10:26 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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इजरायल ने कोरोना से जंग जीत ली है. उनकी सरकार ने कह दिया है कि खुली जगहों में मास्क लगाना जरूरी नहीं है. स्कूलों के दरवाजे खोल दिए गए हैं. पर अभी भी कोरोना का इनडोर प्रोटोकॉल रहेगा. ऐसे देश में जहां एक अस्थायी सरकार काम कर रही है उसकी उपलब्धि तारीफ़ के काबिल है. पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के दावे में पूरा दम है कि इजरायल, कोरोना से लड़ाई में अब दुनिया का अगुआ देश है. कुछ लोग इजरायल की उपलब्धि के लिए वहां की कम आबादी को श्रेय देकर उसके ऐतिहासिक प्रयासों को एक तरह से कमतर आंक रहे हैं. जबकि भारत जैसे देश जो कुछ हफ्ते पहले तक कोरोना से लड़ाई में बहुत आगे दिख रहे थे, महामारी के दूसरे चरण में ना सिर्फ रोल मॉडल बनने का मौका गंवा चुके हैं बल्कि बुरी तरह हांफ रहे हैं.

ये तर्क कि कम आबादी की वजह से इजरायल ने ऐसा कर लिया, पूरी तरह से बेतुका है. कोरोना से जंग में इजरायली मॉडल बड़ी नजीर है. इजरायल की आबादी लगभग एक करोड़ से कुछ कम है. कुछ दिन पहले तक वहां संक्रमितों की संख्या आठ लाख से पार पहुंच गई थी. यानी करीब-करीब हर नौंवा व्यक्ति संक्रमण की चपेट में था. भारत में महामारी की दूसरी लहर में जो तस्वीर दिख रही है उसमें यह कल्पना करना ही कितना डरावना है कि अगर संक्रमितों की संख्या इजरायल के अनुपात या उसके आसपास होती तो? सोचने वाली बात है कि आखिर इजरायल ने ऐसा कौन सा मॉडल अपनाया जिसने उसे बेहतरीन नतीजे दिए?

कोरोना से जंग में पूरे इजरायली मॉडल को देखें तो कुल पांच बड़ी चीजें निकल कर सामने आती हैं. पहली- स्पष्ट राजनीतिक प्रतिबद्धता. दूसरा- अनुसंधान और अंतरदेशीय समझौते. तीसरा- टेस्टिंग/क्वारंटीन की सुविधा. चौथा- जन भागीदारी और पांचवे नंबर पर है - देशव्यापी टीकाकरण.

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सैन्य ऑपरेशन की तरह चलाया अभियान

महामारी से निपटने की दिशा में इजरायल की सरकार हर मौके पर सक्रिय दिखी. खराब हालत के बावजूद जब दूसरी बार भी सख्त लॉकडाउन का फैसला लेना पड़ा तो हिचक नजर नहीं आई. अनुसंधान और अंतरदेशीय समझौतों पर लगातार काम हुए. उपकरण और दूसरी चीजें तेजी से मुहैया कराई गई. रिसोर्स के मामले में विकसित देशों के बराबर और कहीं आगे खड़े इजरायल को अपनी आबादी की वजह से जरूर सहूलियत मिली, लेकिन ये टेस्टिंग क्वारंटीन की तेज प्रक्रिया, जन भागीदारी और देशव्यापी टीकाकरण ही था जिससे वो कोरोना मुक्त हो गया. पूरी प्रक्रिया सुनयोजित तरीके से लगभग सैन्य ऑपरेशन की तरह चलाया गया. जबकि अमेरिका जैसे साधन संपन्न देश अभी भी कोरोना से जंग में हैं.

जरूरत के हिसाब से बनाए लक्ष्य

इजरायल ने महामारी के प्रभाव, उसकी रफ़्तार और जरूरतों के हिसाब से छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित किए. जैसे लॉकडाउन के बाद संभावित संक्रमित आबादी की टेस्टिंग पहली और सबसे बड़ी जरूरत थी. इजरायल ने बड़े-बड़े केंद्रीय टेस्टिंग सेंटर तो बनाए ही, उस सिस्टम को भी फोकस किया जहां लोग सुविधा के अनुसार स्वैब सैम्पल देने आ सकें या उनसे लिया जा सके. ठीक इसी तरह संक्रमण को एक दायरे में रोकने के लिए सुसज्जित क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था हुई. सरकार के हर अभियान में जनता ने निजी जिम्मेदारी के रूप में साथ दिया.

आसान टीकाकरण, कोरोना पर फतह मगर ढिलाई के मूड में नहीं

अब इजरायल में टीकाकरण अभियान को ही ले लें. इसे दिसंबर के मध्य में शुरू किया गया था. लेकिन इजरायल उन देशों में है जिसने पहले ही तय किया था कि वो 16 साल की उम्र से ज्यादा हर नागरिक के टीकाकरण लक्ष्य पर चलेगी. इसी हिसाब से अलग-अलग चरण में एक निश्चित अवधि का खांका बनाया गया. यरूशलम जैसी जगह में बड़े स्टेडियम को ही वैक्सीन सेंटर बना दिया. यहां लोग बीमा कार्ड लेकर पहुंचते. स्वाइप कर नंबर लेते और कुछ ही देर की प्रक्रिया में उन्हें फाइजर/बायोएनटेक का डोज मिल जाता. देश के लगभग सभी वैक्सीन सेंटर पर यही प्रक्रिया थी. ना देरी, और ना भीड़. वैक्सीन की सप्लाई और उसके बैकअप का भी ख्याल रखा गया था. ताकि लोगों को दूसरा डोज भी ठीक वक्त पर ही मिले. ये सैन्य ऑपरेशन ही था तो और क्या था कि अप्रैल तक 16 साल से ज्यादा 81 प्रतिशत आबादी को टीका दे चुका है.

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इजरायल इतना सब करने के बावजूद अभी ढीला नहीं पड़ना चाहता. भले ही उसने कोरोना से मुक्ति का ऐलान किया है, लेकिन 16 से कम उम्र की आबादी के स्वास्थ्य को लेकर फिक्रमंद है. देश से बाहर आने जाने को लेकर प्रोटोकाल है. स्कूल भले खुले हैं लेकिन सख्त हिदायत है कि हवादार कमरों में ही कक्षाएं लगेंगी. सोशल डिस्टेंशिंग को फॉलो किया जाएगा. बच्चों के थियेटर को सीमित रखा जाएगा.

अन्य सभी तरह के इनडोर एक्टिविटीज के लिए भी प्रोटोकॉल बनाए गए हैं. इजरायल अभी भी कोरोना के अलग-अलग स्ट्रेन को लेकर रिसर्च कर रहा है और उसके नतीजे भी बता रहा है.

आगे जाकर पीछे हो गया भारत

जबकि भारत 10 अप्रैल तक 10 करोड़ टीके की खुराक (इसमें पहला डोज भी) दे चुका है. आंकड़ों में ये दुनिया में सबसे ज्यादा है मगर आबादी के अनुपात में बेहद मामूली. हमारी दो देसी कंपनियां वैक्सीन उत्पादन कर रही हैं. उनके उत्पादन को देखते हुए बड़े लक्ष्य तक पहुंचने में काफी समय लगेगा. खराब हालात के मद्देनजर अब जाकर सरकार ने विदेशी वैक्सीन के आयात, ओपन मार्केट में बिक्री और 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों के टीकाकरण की अनुमति दी है.

विपक्ष भी अपनी जिम्मेदारी से कैसे बाख सकता है?

विपक्ष का रवैया खराब माहौल में रचनात्मक होने की जगह अराजक बना रहा. केवल दोषारोपण और चीजें एक दूसरे पर थोपी जा रही हैं.दूसरे चरण में माहामारी विस्फोट से कुछ हफ्ते पहले तक राहुल गांधी समेत विपक्षी नेता पहले चरण में लॉकडाउन को सरकार की नाकामयाबी बताते रहे. कोरोना से लड़ाई में राजनीतिक अराजकता हावी नहीं तो क्या है? आज जब एक छोटी अवधि के सख्त लॉकडाउन की तत्काल जरूरत है- इसके लिए कोई आगे नहीं आ रहा. प्रधानमंत्री तो बच ही रहे हैं राज्य भी बैकफुट पर हैं.

दुनिया के छोटे देशों में वैक्सीन निर्यात जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष को जो सवाल दो महीने पहले उठाने थे वो अब उठाए जा रहे हैं. भारत में हुआ ये कि कोरोना के पहले चरण से उपजे खराब आर्थिक माहौल में सीधे हर व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़े मसले को लेकर सरकार पर कहीं ना कहीं विपक्ष (कमजोर होते हुए भी) के दबाव का भारी असर दिख रहा है.

सख्त लॉकडाउन की जरूरत, मगर बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?

दूसरे सख्त और देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर 'बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे' वाली स्थिति सिर्फ राजनीतिक वजहों से हैं. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जन स्वास्थ्य का विषय, पार्टियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विषय बन गया. सरकार से भी चूक हुई, जनभागीदारी भी कमजोर रही लेकिन, अगर विपक्ष भी रचनात्मक तरीके से चौकन्ना रहता तो शायद देश को महामारी का दूसरा चरण नहीं देखना पड़ता. इजराइल भारत समेत दुनिया के कई देशों को आइना दिखा रहा है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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