इंडोनेशिया के अनुभव: 'स्वच्छता' सरकारी अभियान नहीं, डीएनए का मामला है
भारत में सफाई अभियान क्यों बार-बार फेल हो जाता है इसका जीता-जागता उदाहरण इंडोनेशिया की गलियों में मिल गया.
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हेडिंग पढ़कर भले ही आपको बुरा लग रहा हो, लेकिन ये है बिलकुल सच. यकीनन भारतीय गंदगी के मामले में अव्वल नंबर कहे जा सकते हैं. ये अहसास मुझे तब तक नहीं हुआ था जब तक मैं देश से बाहर नहीं गई थी. तब तक लगता था कि हमसे थोड़े कम विकसित देशों में तो हालात ज्यादा खराब हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.
वहां लगभग सभी सड़कें छोटी ही हैं और हर सड़क इतनी ही साफ
हाल ही में मैं बाली (इंडोनेशिया) ट्रिप पर गई थी. एक भारतीय होने के नाते मैं कह सकती हूं कि हम कई मामलों में इस छोटे से देश से बहुत पीछे हैं. इन्हीं में से एक है सफाई का मामला. बाली की सड़कें वैसी ही हैं जैसी भारत के किसी छोटे शहर की होती हैं. किसी गली की तरह सड़कों पर टूरिस्ट, लोकल लोग, दुकानों, गाड़ियों की भीड़ रहती है पर अगर वहां कुछ नहीं रहता तो वो है कचरा. यकीनन हमसे कई मामलों में पीछे रहने वाला देश इंडोनेशिया भी सफाई के मामले में काफी सजग है.
कचरा फैलाने में अव्वल हैं भारतीय..
एक और बात है जिसपर शायद किसी भी भारतीय को गर्व न हो, लेकिन वो इस बात को मानेगा जरूर. ये कि हम भारतीय किसी भी जगह पर कचरा फैला सकते हैं. चाहें वो साफ जगह हो या गंदी, हमारा घर हो या रोड, हमारा देश हो या विदेश कहीं भी गंदगी फैलाई जा सकती है. न जाने कितने ही भारतीय बाली में भी गंदगी फैलाते दिखे. भारत में रजनीगंधा खाकर थूंकने वाले लोग विदेश जाकर थोड़ा सभ्य बनने की कोशिश तो करने लगे, लेकिन रास्ते चलते थूंकना और चॉकलेट का खाली रैपर रोड पर फेंकना बंद नहीं किया. एक मौका तो ऐसा भी आया जब कोई कागज़ फाड़कर किसी अंकल ने सड़क पर फेंका और एक स्थानीय दुकानदार ने उसे उठाकर डस्टबीन में डाला.
बाली जैसी जगह पर छोटी सड़कों और तंग रास्तों को भी इतनी मुश्तैदी से साफ कर रखा गया था, लेकिन भारतीय तो भारतीय हैं. उन्हें कहां किसी की परवाह है. ये देखकर समझ आता है कि नरेंद्र मोदी का सफाई अभियान कभी सफल हो भी नहीं सकता, मोदी छोड़िए इस समय खुद गांधी आकर भी बोलें तो भी लोग उनका मज़ाक ही उड़ाएंगे और कचरा जरूर फैलाएंगे.
एक और बात थी जिसके लिए इंडोनेशिया की मिसाल दी जा सकती है. वहां ट्रैफिक यकीनन है, लेकिन रोड के नियम फॉलो करने वाले भी है. अगर कोई सैलानी रोड क्रॉस कर रहा है तो सभी रुक जाएंगे. पूरा ट्रैफिक रुकेगा. टू लेन रोड पर अगर कोई टैक्सी रुकी है तो उसके पीछे आ रही सभी गाड़ियां रुक जाएंगी और कोई भी यहां तक की टू-व्हीलर तक ओवर टेक करने की कोशिश नहीं करेगी.
टूरिस्ट स्पॉट पर जगह-जगह न तो डस्टबीन मिलेंगे और न ही कचरा
ये थी उस देश की बात जिसे हम गरीब मानते हैं और सोचते हैं कि हम उससे बहुत ज्यादा आगे हैं. अब उन देशों की बात तो छोड़ ही देनी चाहिए जो असल में बहुत विकसित हैं और भारत को आसानी से पीछे छोड़ सकते हैं.
हमारे देश में गंदगी फैलाना तो जैसे पारिवारिक रिवाज है जो हर कोई इसे निभाने को तैयार रहता है. ज़रा एक बार सोचकर देखिए कि ये बातें बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थीं. ट्रैफिक पर रुक जाना, कचरा डस्टबीन पर ही डालना क्या इतना मुश्किल है कि भारतीय विदेश में जाकर भी इसे नहीं फॉलो कर सकते हैं. दिल्ली, कानपुर, बनारस देश के ही नहीं दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाने लगे हैं, लेकिन भारत में सिवाए खानापूर्ती के कुछ नहीं होता. जितने ढुलमुल लोग हैं उतनी ही सरकार भी है.
हमारे देश में तो यकीनन हज़ारों करोड़ सिर्फ सफाई के मामले में खर्च कर दिए जाते हैं और हम फिर भी सरकार को ही दोष देते रहते हैं कि मंत्रियों ने पैसा खा लिया और सफाई के लिए ध्यान नहीं दिया, पर अगर लोग ही सफाई के लिए नहीं ध्यान देंगे तो यकीन मानिए हज़ारों नहीं लाखों करोड़ खर्च कर दीजिए पर होगा कुछ नहीं.
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