New

होम -> ह्यूमर

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 दिसम्बर, 2017 09:05 PM
पीयूष पांडे
पीयूष पांडे
  @pandeypiyush07
  • Total Shares

स्वच्छता की आदत भी एक किस्म की बीमारी है. इंदौर को देश के सबसे स्वच्छ शहर होने का तमगा क्या मिला, उसपर स्वच्छता का नशा चढ़ गया. जिस तरह शराब के नशे में इंसान अल्ल-बल्ल बकता है, उसी तरह स्वच्छता के नशे में इंदौर नगर पालिका ने नया फरमान जारी किया है. थूकने पर पाबंदी का. इंदौर नगर पालिका ने सड़क पर थूकने वालों पर 500 रुपए का जुर्माना लगाने का ऐलान किया है.

सड़क पर थूकने वालों का कोई गुट, कोई संगठन या कोई पार्टी नहीं है- वरना वो इस तानाशाही फैसले का अवश्य विरोध करते. हिन्दुस्तान में बंदा सड़क पर थूकेगा नहीं तो कहां थूकेगा? अमेरिका में? हिंदुस्तान में थूकना जन्मसिद्ध अधिकार है और यह अधिकार ही हमारे भीतर देश के प्रति अधिक मोह पैदा करता है. ऐसे ही विशिष्ट अधिकार अमेरीकियों, अंग्रेजों को हमारे आगे कमतर साबित करते हैं. थूकने का अधिकार भारतीयों में एक विशिष्ट किस्म के सम्मान का भाव भरता है, जिस पर इंदौर नगर निगम ने चोट की कोशिश की है.

आखिर, आपका जब मन करता है तब आप गाली देते हैं या नहीं? कोई बात हो या न हो लेकिन राजनेताओं का मन करता है, तब वे हंगामा करते हैं या नहीं? इसी तरह अब सड़क पर चलते हुए थूकने का मन कर ही गया तो आप थूकोगे या नहीं? फिर सवाल यह भी है कि जब पान-तंबाकू पर पाबंदी नहीं तो थूकने पर कैसे लगाई जा सकती है?

इंदौर नगरपालिका ने फैसला कर अवश्य लिया है- लेकिन यह फुस्स होकर रहेगा. एक तो देश के थूकिए बहुत कर्मठ हैं. दूसरा, हर घर से थूकिया निकलेगा, किस-किस पर कौन नज़र रखेगा? तीसरा, जुर्माने की रकम 500 रुपए रखी गई है. इस महंगाई के जमाने में सड़क पर चलने वाले की जेब में 500 रुपए नकद निकल आएं, तो फिर वो सड़क पर यमराज रुपी ट्रैफिक के बीच चलेगा ही क्यों?

Indore Municipal Corporation, sppittingथूकिया संघ इसका पुरजोर विरोध करता है

निश्चित रुप से नगर निगम का फैसला हिन्दुस्तानियों के मूल अधिकार के खिलाफ है. थूकियों को संगठित होकर न केवल विरोध करना चाहिए, बल्कि नगर निगम के खिलाफ सामूहिक धरना देना चाहिए. थूकने का अर्थ है मुंह से अपशिष्ट निकालना. आज थूकने के अधिकार पर पाबंदी लगाई जा रही है, कल सांस छोड़ने के अधिकार पर यह कहते हुए कि पाबंदी लगाई जा सकती है कि तुम्हारी सांसों के जरिए निकलती कार्बन डाइऑक्साइड बहुत प्रदूषण फैला रही है.

आज गब्बर सिंह होता तो नगर निगम के फैसले का विरोध जरुर करता. 'आ थू' करते हुए उसने अपने थूकने के अधिकार को लेकर लोगों को जागरुक किया था. वक्त आ गया है, जब थूकने के अधिकार पर राष्ट्रीय चैनलों पर घंटे-घंटे बहस हो. राष्ट्रीय थूक प्रतियोगिताएं हों, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के थूकियों को बुलाया जाए. इस श्रेणी में राजनेता सबसे उपयुक्त हैं, जो जनता पर थूक रहे हैं बरसों से. कभी घोषणापत्र की शक्ल में. कभी वादों की शक्ल में. कभी दावों की शक्ल में. किसने उनका क्या उखाड़ लिया, जो थूकियों का उखड़ जाएगा? सच्चे थूकियों को किसी से डरना नहीं चाहिए. सच्चे थूकिए किसी से नहीं डरते !

ये भी पढ़ें-

स्वच्छ भारत पाना है तो बापू के चश्मे से देखें

चीन से ज्‍यादा जानलेवा खतरा देश को मच्‍छरों से है

हकीकत सीएम योगी के आंसू नहीं, नर्क भोगता शिवा है

लेखक

पीयूष पांडे पीयूष पांडे @pandeypiyush07

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और व्यंगकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय