आस्था के नाम पर ऐसी अंधभक्ति क्यों?
संत रामपाल हों, आसाराम बापू हों, राधे मां हों या फिर बाबा राम रहीम.... आखिर क्यों ऐसे बाबाओं के लिए मरने मारने को तैयार हो जाते हैं लोग?
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800 गाड़ियों का काफिला, सड़क के दोनों तरफ जय जयकार करते हजारों लोग और उस भीड़ को शांत रखने के लिए हजारों की तादाद में सुरक्षाबल. ये कोई फ़िल्मी सीन नहीं है बल्कि यह नज़ारा उस समय का था जब डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत बाबा राम रहीम अदालत में पेशी के लिए जा रहें हैं. बाबा राम रहीम पर एक साध्वी ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे और इस मामले में आज पंचकुला की सीबीआई कोर्ट में फैसला आने वाला था. कोर्ट ने इस मामले में राम रहीम को दोषी पाया है और अब इस मामले में सजा का ऐलान 28 अगस्त को किया जायेगा.
इस फैसले को लेकर पूरे प्रदेश की सड़कें बाबा के समर्थकों से पटी पड़ीं हैं, जो अपने 'भगवान' के समर्थन में यहाँ आयी है, और साथ ही ये भीड़ इस बात की चेतावनी भी देती नजर आ रही है कि फैसला राम रहीम के खिलाफ आने पर वो हिंसक प्रदर्शन भी करेंगे. और राज्य को इस तरह की किसी भी स्थिति से निपटने के लिए हरियाणा और पंजाब छावनी में तब्दील है, अर्धसैनिक बलों की 167 कंपनियां राज्यों की सुरक्षा व्यवस्था को सामान्य रखने में लगे हुए है. और अब कोर्ट से दोषी पाए जाने के बाद अगर जरुरत पड़ी तो हालात को सामान्य रखने के लिए सेना की मदद भी ली जा सकती है. हरियाणा, पंजाब में आने जाने वाली लगभग 200 से ज्यादा ट्रेनें रद्द कर दी गयी हैं. राज्य के स्कूल, कॉलेज भी दो दिनों के लिए बंद कर दिए गए हैं. किसी भी तरह की अफवाह को रोकने के लिए राज्य की मोबाइल इंटरनेट और एसएमएस सेवा भी बंद कर दी गयी है.
कुल मिला कर बाबा पर आने वाले इस फैसले ने प्रदेश के जनजीवन को ठप करने के साथ ही वहां की जनता को करोड़ों का नुकसान भी पहुंचाया है. मगर फिर भी हजारों लोग आस्था के नाम पर सड़कों से टस से मस होने को तैयार नहीं हैं. यह कोई पहला मौका नहीं है जब समर्थकों या भक्तों ने आस्था के नाम पर कोर्ट और कानून के काम काज में भी जम कर दखलअंदाजी की है, इससे पहले साल 2014 में कोर्ट के आदेश के बाद सतलोक आश्रम चलाने वाले बाबा रामपाल को गिरफ्तार करने में पुलिस प्रशासन को नाकों चने चबाने पड़े थे. 14 दिन लम्बे चले ड्रामे में रामपाल को गिरफ्तार करने के लिए लगभग 45 हजार सुरक्षा बल लगाए गए थे. उस समय भी रामपाल के हजारों समर्थकों उनकी गिरफ़्तारी टालने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने को तैयार दिख रहे थे. रामपाल पर रेप, मर्डर समेत कई तरह के संगीन आरोप थे. पुलिस को आशाराम बापू की गिरफ्तारी के समय भी खासी मशक्कत करनी पड़ी थी, जब उनके हजारों समर्थकों को काबू करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था. इनके अलावा भी आशुतोष महाराज, राधे माँ, नित्यानंद, भीमानंद जैसे कई ऐसे बाबा रहे जिनके समर्थकों ने प्रशासन के कामकाज में व्यवधान उत्पन किया है.
भारत शुरू से ही ऋषि मुनियों का देश कहा जाता है, मगर वर्तमान समय में जिस तरह खुद को भगवान कहने वाले कई बाबाओं ने इस नाम पर बट्टा लगाया है, वो एक तरह की विडम्बना ही कही जा सकती है. मगर बावजूद इसके जनता में इन बाबाओं को लेकर आस्था भी अलग कहानी ही कहती है, आखिर कैसे कोई रैप गाने वाला और फिल्मों में काम करने का शौकीन बाबा की श्रद्धा के केंद्र में चला जाता है, क्यों कोई कई संगीन आरोपों के बावजूद भी इन बाबाओं पर संदेह नहीं कर पाता. कैसे कोई तमाम तरह की सुख सुविधाओं से लैस आश्रमों और अइयाशियों के तमाम आरोप लगने के बावजूद इन बाबाओं में अपना भगवान ढूंढ लेता है और फिर उस भगवान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को आतुर हो जाता है. आखिर यह कैसी अंधी आस्था है जो धर्म के नाम पर चल रहे इन डेरों−डंडों से चमत्कार की उम्मीद में बैठी रहती है और सब कुछ देख जान कर भी सच्चाई से आंखें मूंद बैठती है.
हालांकि, जहां भोली भाली जनता चमत्कार के नाम पर इन बाबाओं से जुड़ी रहती है, तो वहीं देश के राजनेता अपने वोट बैंक को विस्तार देने के लिए इन बाबाओं से जुड़े रहते हैं. और इन सबका नतीजा यह होता है कि ये बाबा अपने आप को कायदे- कानून से ऊपर मान लेते हैं और भविष्य में सत्ता और प्रशासन के लिए भी चिंता का सबब बन जाते हैं.
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