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Updated: 26 अक्टूबर, 2016 08:41 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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इंटरनेट पर पोर्न देखने में भले ही भारत तीसरे नंबर पर हो, लेकिन यहां 'सेक्स' पर बात करना अभी भी हौवा है. 14-15 की उम्र में लड़के-लड़कियां भले ही सेक्स का अनुभव कर लें, लेकिन सेक्स एजुकेशन के नाम पर सबको सांप सूंघ जाता है. स्कूलों की बात तो छोड़िए, यहां केंद्र सरकार की ही सोच देखिए. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई एजुकेशनल पॉलिसी में से 'सेक्‍स' व 'सेक्‍सुअल' शब्‍द ही हटा दिया है. क्योंकि इन्हें परेशानी सेक्स एजुकेशन से नहीं 'सेक्स' शब्द से है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक एक्सपर्ट पैनल को निर्देश देते हुए कहा कि वो अपने एडोलेसेंट एजुकेशन प्रोग्राम से 'सेक्‍स' और 'सेक्शुअल' शब्‍द हटा दें क्योंकि ओरिजनल ड्रॉफ्ट में दो बार इन शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. टेलीग्राफ से आई खबर के मुताबिक एक्सपर्ट कमेटी के ओरिजनल ड्रॉफ्ट में करीब आधा पेज किशोर शिक्षा पर ही था, जिसमें मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध के खिलाफ विस्तृत जानकारी की वकालत की गई थी. लेकिन मंत्रालय के अधिकारियों ने चर्चा के आखिरी राउंड में इस पर आपत्ति दर्ज कराई. मिनिस्ट्री का कहना था कि 'सेक्स या सेक्सुअल जैसे शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए और इस पूरे सेक्शन को एक ही वाक्य में समझा देना ही ठीक है'.

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मंत्रालय चाहता है कि किशोरों को सेक्स एजुकेशन पर विस्तृत जानकारी न देकर इसे एक ही वाक्य में निपटा देना चाहिए

ओरिजनल ड्राफ्ट के एक वाक्‍य में 'किशोरों के स्‍वास्‍थ्‍य खासकर प्रजनन और यौन स्‍वास्‍थ्‍य की जरूरतों' का हवाला दिया था. ड्राफ्ट में ये भी कहा गया था कि ये बेहद संवेदनशील है और बच्चे इसकी उचित जानकारी से वंचित हैं. जैसे कि HIV/AIDS से जुड़ी जानकारी और इससे रोकथाम वगैरह.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय मानता है कि 'सेक्स' शब्द से कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है, वो नाराज हो सकते हैं. तो सहमति इसी बात पर बनी कि सेक्स एजुकेशन से 'सेक्स' शब्द हटा दिया जाए. अब फाइनल डॉक्यूमेंट में सेक्स शब्द का इस्तेमाल केवल एक बार किया गया है, वो भी 'लिंग/जेंडर' के तौर पर.

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सेक्‍स एजुकेशन या एडोलसेंट एजुकेशन प्रोग्राम पर भाजपा का रवैया इसी तरह का रहा है. राज्‍य सभा कमेटी की 2009 की रिपोर्ट पेश करते हुए वरिष्‍ठ भाजापा नेता वेंकैया नायडू ने टेक्‍स्‍ट बुक्‍स से कांडोम और कुछ शारीरिक अंगों से संबंधित सामग्री हटाने की मांग की थी.

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 बच्चों को सही समय पर सेक्स एजुकेशन न मिले तो परिणाम घातक हो सकते हैं

अब जरा अंदाजा लगाइए बड़े होते बच्चों का. इधर उनके शरीर में हार्मोनल चेंज हो रहे होते हैं, शारीरिक बदलाव होते हैं, उन्हें आकर्षण का अनुभव होता है और इसके साथ ही उनके जहन में कितने ही सवाल कौंधते हैं. वो हर चीज जानना चाहते हैं, हर चीज का अनुभव लेना चाहते हैं, कुछ तो ले भी लेते हैं. लेकिन सिर्फ एक ही चीज उनके पास नहीं होती और वो है यौन शिक्षा. ये शिक्षा न उनके माता-पिता उन्हें दे पाते हैं और न ही स्कूल में उनके टीचर्स. क्योंकि टीचर्स को क्या पढ़ाना है और कितना पढ़ाना है ये हमारे मंत्रालय निर्धारित करते हैं. और मंत्रायल क्या सोचता है, उसकी विचारधारा क्या है, ये तो साफ दिखाई दे रहा है.

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YCSRR की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 42 से 52% युवा छात्रों को सेक्स के बारे में उचित जानकारी है ही नहीं. यूनिसेफ और प्रयास एनजीओ की 13 राज्यों के बच्चों पर की गई एक स्टडी में पाया गया कि 5 से 12 साल की उम्र के 53% बच्चे यौन शोषण के शिकार थे. भारत में दर्ज हुए एड्स के कुल मामलों में से 35% 15 से 24 वर्ष की आयु में देखे गए. और नए मामलों में भी आधे से ज्यादा इसी आयुवर्ग में देखे जा रहे हैं.

लेकिन हमारी सरकार को इन डरा देने वाले आकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता. इन्हें सिर्फ समाज, संस्कृति और संस्कारों का झंडा ऊंचा करना है. इन्हें 'सेक्स' और 'सेक्शुअल' शब्दों के इस्तेमाल के बिना ही बच्चों को सेक्स एजुकेशन देनी है. ये लोग सेक्स एजुकेशन के नाम पर एजुकेशन सिस्टम का मजाक बना रहे हैं. इनका मानना है कि अगर इन शब्दों को किताबों में लिखा गया तो बेकार में बच्चे बिगड़ जाएंगे और देश की जनसंख्या कम होगी सो अलग. फिर लोगों की नाराजगी भी तो झेलनी पड़ेगी. वैसे इन्हें ये भी साफ करना चाहिए था कि आखिर वो लोग हैं कौन जिन्हें सेक्स एजुकेशन में 'सेक्स' शब्द से परेशानी है. और ये भी कि 'सेक्स' के अलावा और किस शब्द का इस्तेमाल किया जाए. हमारे देश का भविष्य क्या होगा उसकी झलक तो बच्चों की किताबों में ही दिखाई दे रही है.

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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