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Updated: 21 अप्रिल, 2018 06:02 PM
अमित अरोड़ा
अमित अरोड़ा
  @amit.arora.986
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भारत में दलित समुदाय पर अत्याचार के मामले आए दिन सुनने को मिलते है. दबंगों द्वारा दलितों के मौलिक अधिकारों का हनन करना, मंदिर-सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश न करने देना, जाति सूचक शब्दों का प्रयोग कर मज़ाक उड़ाना, ऐसे कई मामले देश के विभिन्न क्षेत्रों में घटते नज़र आते हैं. इस बात से कोई भी इनकार नहीं करेगा कि भारत में आज भी दलित समाज को कई स्थानों पर अपमान, मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न झेलना पढ़ रहा है. लेकिन एक तस्वीर इन सभी बातों को जैसे सिरे से गलत साबित करती दिखाई देती है. ये वो तस्वीर है जिसे शायद आपने कभी देखने की कल्पना भी नहीं की होगी.

dalitदलित को कंधों पर बैठाकर मंदिर ले जाया गया

हाल ही में हैदराबाद के श्री रंगनाथ मंदिर के पुजारी सीएस रंगराजन एक दलित भक्त आदित्य पारासरी को अपने कंधे पर उठाकर मंदिर पहुंचे और उस 25 वर्षीय युवक को गर्भगृह ले जाकर दर्शन कराए.

dalit3_042118050620.jpgगर्भगृह के दर्शन करवाए

इतना ही नहीं जिस प्रेम और स्नेह से उन्होंने आदित्य को अपने गले से लगाया वो छवि किसी की भी आखों को ठंडक दे जाए.

dalitसमाज की वर्ण व्यवस्था के मुंह पर तमाचे जैसी है ये तस्वीर

रंगनाथ मंदिर के पुजारी सीएस रंगराजन ने बताया कि यह 2700 साल पुरानी एक घटना की ही पुनरावृत्ति है, जिसे मुनि वाहन सेवा के नाम से जानते हैं. इसका उद्देश्य सनातन धर्म की महानता को पुनर्स्थापित करना व समाज के सभी वर्गो में समानता का संदेश प्रसारित करना था. इस प्रथा को पुनः आरंभ करने का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गो में भाईचारे की भावना पैदा करना व दलितों के प्रति हो रहे उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना था.

इसके लिए उन्होंने आदित्य को ही क्यों चुना इसपर रंगराजन कहते हैं कि- मैंने एक ऐसा व्यक्ति ढूंढने के लिए दलित संस्था से संपर्क किया जो भक्त हो और दुबला भी हो (क्योंकि मैं बूढ़ा हूं) उन्होंने आदित्या के बारे में बताया जो दिन में केवल एक बार खाना खाता है और हिंदू धर्म के सारे रीति-रिवाज जानता है.

देखिए वीडियो-

उधर आदित्य जो ब्रह्मचारी और देवी भक्त है का कहना है कि उसके लिए ये एक सम्मान जैसा था. उसका मानना है कि समाज में व्यप्त भेदभाव, ऊंच-नीच और छुआ-छूत जैसी कुरीतियां जो हमारे देश को बांट रही हैं, उसे तोड़ने की शायद ये एक शुरुआत है.

वर्तमान में जब भी कोई बड़ी नकारात्मक घटना सार्वजनिक होती है तब ही समाज शोर मचाता है और इंसाफ की मांग करता है पर जब दलितों के उत्थान से जुड़ी कोई सकारात्मक खबर आती है तब उसका समाज गुणगान नहीं करता. समाज कभी उस घटना से जुड़े लोगों को सम्मानित नहीं करता, न ही उनका हौसला बढ़ता है. इसका परिणाम यह होता है कि दलितों और सवर्ण समाज को जोड़ने वाले विषय कभी सुर्खियां नहीं बटोरते. सुर्खियां केवल दलित और स्वरण समाज को तोड़ने वाले विषयों को मिलती है.

दलित और स्वरण समाज को जोड़ने वाली इस सकारात्मक ख़बर को जितना महत्व मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला. देश को ऐसी ही जोड़ने वाली खबरों की तलाश है. भारत में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो सकारात्मकता से पूर्ण होंगे पर उन विषयों का कोई गुणगान नहीं करता है. कोई उन लोगों का सम्मान नहीं करता, न ही उनका हौसला बढ़ता है. यदि पूरा देश दलित उत्थान की सकारात्मक मुद्दों को महत्व देना शुरू कर दे तो समाज की स्थिति अपने आप सुधार जाएगी. कुछ समय में ही देश में व्याप्त कलह का वातावरण सोहार्द में बदल जाएगा.

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लेखक

अमित अरोड़ा अमित अरोड़ा @amit.arora.986

लेखक पत्रकार हैं और राजनीति की खबरों पर पैनी नजर रखते हैं.

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