पुलिस के कह देने पर किसी को दोषी मान लेना क्या समझदारी है?
Dr. Priyanka Reddy rape और murder case में हर दिन के साथ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. गुनहगारों के लिए सख्त सजा की मांग की जा रही है. लेकिन अगर ये सज़ा किसी बेकसूर को दे दी जाए तो क्या होगा?
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Hyderabad के Dr. Priyanka Reddy rape और murder case में हर दिन के साथ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. प्रियंका के लिए न्याय की मांग (Justice for Priyanka) और कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं. और उनके गुनहगारों के लिए सख्त सजा की मांग की जा रही है. आज जया बच्चन ने आरोपियों की सार्वजनिक लिंचिग करने की बात कही है.
मेरी सहानुभूति किसी भी अपराधी के साथ बिल्कुल नहीं है. बलात्कार और हत्या जघन्य अपराध हैं लेकिन चौराहे पर लटका दो, गर्दन काट दो. तुरंत फांसी दो. चौराहे पर फांसी दो. वकील पैरवी ही न करें जैसी किसी भी मांग के मैं पक्ष में नहीं हूं. जघन्य अपराध की सज़ा सख्त होनी चाहिए लेकिन अगर ये सज़ा किसी बेकसूर को दे दी जाए तो क्या होगा. न्याय की प्रक्रिया और मुकदमे इसीलिए तो होते हैं.
भारत की भ्रष्ट और सरकार के इशारों पर नाचने वाली पुलिस के दिए सर्टिफिकेट पर किसी को दोषी मान लेना क्या समझदारी है? हमारे संज्ञान में सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिनमें पुलिस ने जनता के बीच बढ़ते असंतोष को दबाने के लिए बेकसूर लोगों को पुलिस ने फंसा दिया है. ये लोग बाद में साफ-साफ और बाइज्जत बरी हुए.
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यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा. गुरुग्राम के एक नामी स्कूल में एक बच्चे की गला काटकर हत्या कर दी गई. पुलिस ने अगले ही दिन हत्यारे को पकड़ लिया. कहा कि स्कूल की एक बस का क्लीनर हत्यारा है. बच्चे ने उसे आपत्तिजनक हालत में देख लिया था इसलिए मार दिया. और तो और उस क्लीनर ने अपना अपराध भी पुलिस जांच में कबूल कर लिया. इस मामले में बच्चे के पिता की सूझबूझ और समझदारी काम आई. उसने कहा कि मेरे बेटे की हत्या इस व्यक्ति ने नहीं की है. सीबीआई जांच हुई और क्लीनर बेकसूर पाया गया. तब भी कई लोग भावनाओं में बहककर उस क्लीनर की जान मांग रहे थे.
भावनाओं में बहना ठीक है. लेकिन इतना नहीं कि आप अनर्थ कर दें. पुलिस जो कहती है वो अखबारों में छपता है. अखबार साफ-साफ लिखते हैं कि अमुक शब्द हत्या का आरोपी है लेकिन हम उसे हत्यारा मानकर चलने लगते हैं. और नतीजा इस तरह का भावातिरेक होता है. ऐसे मामलों में सिर्फ बेकसूर नहीं फंसते बल्कि बलात्कारी और हत्यारों की मौज हो जाती है. देश में कई मामलों में अमीर गरीब का भेद है. अगर आपकी इस तरह की सोच का न्याय होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब अमीर अपराधियों को बचाने के लिए गरीबों को पैसे खिलाकर पुलिस अपराधी घोषित कर देगी और जनता मारो-मारो के उन्मादी उद्घोष के साथ उनके साथ हो जाएगी.
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