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Updated: 21 नवम्बर, 2020 09:48 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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हर आन में, हर बात में, हर रंग-ढंग में पहचान,

आशिक है तो दिलबर को हर एक रंग में पहचान.

शेर 18वीं सदी के मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी का है. नज़ीर को ये शेर किस कॉन्टेक्स्ट में कहना पड़ा इसपर बात फिर कभी. आइये शादियों पर बात करें. साल 2018. देश में करोड़ों शादियां हुई होंगी मगर 2018 में जिस शादी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया वो थी दो आईएएस अफसरों टीना डाबी और कश्मीर के अतहर आमिर खान (IAS Tina Dabi Athar Amir Khan) की शादी. ध्यान रहे इस चर्चित शादी में दो अलग धर्मों के लोग एक हुए थे. अच्छा शादी क्योंकि देश के दो 'टॉप ब्रेंस' की थी तो वो लोग मन मसोसकर राह गए जो हर बात को हिंदू मुस्लिम के तराजू में तौलकर देखते हैं. पहले ये लोग उदास थे लेकिन इनके बागों में बहार फिर एक बार आई है इन्हें मजे लेने का मौका खुद टीना डाबी और अतहर आमिर ने दिया है. बता दें कि हाल ही में जयपुर की एक फैमिली कोर्ट में दोनों नें आपसी रजामंदी से तलाक की अर्जी डाली है. फिलहाल दोनों की पोस्टिंग जयपुर में ही है. टीना वित्त विभाग में संयुक्त सचिव हैं तो वहीं आमिर सीईओ ईजीएस के पद पर कार्यरत हैं.

Tina Dabi, Athar Amir, IAS, Marraige, Divorce, Hindu, Muslim, Love Jihadलव जिहाद का मुद्दा उठाने वाले लोगों को टीना डाबी और अतहर आमिर ने आलोचना का  बड़ा मौका दे दिया है

शादी से तलाक तक का ये सफर दो आईएएस अफसरों का है लेकिन जैसा सोशल मीडिया का रुख है लोग मामले पर बहुत खुलकर तो नहीं बोल पा रहे हैं हां लेकिन खुश जरूर हैं. सोशल मीडिया पर ऐसी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आई हैं जिनमें यूजर्स का मत है कि आज नहीं यो कल ऐसा होना ही था. ध्यान रहे जब ये शादी हुई थी तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पत्रकार बरखा दत्त समेत तमाम लोगों ने कपल को शादी की मुबारकबाद दी थी वहीं तब मामले के मद्देनजर हिंदू महासभा नाम का संगठन खुलकर इस विवाह के विरोध में सामने आया था और कहा था कि अतहर आमिर का टीना डाबी से ये विवाह 'लव जिहाद' के अंतर्गत हुआ है.

बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए ये बताना भी बहुत ज़रूरी है कि तब 2018 में जब हिंदू महासभा ने इस बात को बल दिया और हिंदू मुस्लिम की राजनीति की एक बड़ा वर्ग ऐसा था जो संगठन के विरोध में सामने आया था और जिसका कहना था कि एक अच्छी और बिल्कुल नई तरह की शुरुआत हुई है जिसपर हिंदू महासभा की बातें अड़ंगा डालने का काम करती नजर आ रही हैं.

जैसा कि हम बता चुके हैं आज वो लोग बहुत खुश हैं और चहक रहे हैं जिन्होंने टीना और अतहर की शादी के वक़्त गूंगा गुड़ खाया था. मगर अब भी कहीं न कहीं ये लोग सीधी बात करने में गुरेज ही करते नजर आ रहे हैं. अब जबकि टीना और अतहर ने 'आपसी मतभेदों' के चलते जयपुर की फैमिली कोर्ट में तलाक की तेजी लगा दी है तो बातें और प्रतिक्रियाएं दोनों आ रही हैं मगर एक वैक्यूम है जो अब भी बना हुआ है.

मामले के मद्देनजर ट्विटर पर आई कुछ प्रतिक्रियाओं पर हमने गौर किया जिसमें लोगों ने सीधे सीधे कुछ नहीं कहा बल्कि ये कहकर आगे के संवाद के लिए जगह छोड़ दी कि इस तलाक की वजह केवल 'आपसी मतभेद' नहीं हो सकते. जरूर यहां धर्म भी आड़े आया है. लोगों का कहना है कि निश्चित तौर पर अतहर द्वारा टीना की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन किया गया जिस कारण नौबत कोर्ट कचहरी और तलाक की आई.

उपरोक्त बातों को खुद देखिए यहां सब कुछ तो कह दिया गया लेकिन सीधे तौर पर 'लव जिहाद' जैसा कोई मुद्दा बीच में नहीं लाया गया. यानी लोग अब भी इस मामले के मद्देनजर बहुत कुछ कहना चाह रहे हैं लेकिन चुप बस इसलिए हैं क्यों कि यहां विवाह दो ऐसे लोगों का टूट रहा है जो आज उस मुकाम पर हैं जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात तो हरगिज़ नहीं है.

ये मामला आईएएस टीना डाबी और उनके मुस्लिम पति अतहर आमिर का है इसलिए लोग चुप हैं. खुद सोचिए ये मामला यदि मेवात, मेरठ, या मुजफ्फरनगर का होता तो क्या लोग इसी अंदाज में इतने गंभीर मसले पर इतनी सधी हुई बातें करते? जवाब से आप भी वाकिफ ही हैं. तब ऐसा हरगिज़ नहीं होता. तब जो बातों या ये कहें कि प्रतिक्रियाओं का सिलसिला चला होता तो सोशल मीडिया या ये कहें कि हमारे समाज द्वारा उसे बहुत दूर तक ले जाया गया होता. लव जिहाद और न जाने क्या क्या. हर वो बात होती जो सोचने मात्र से ही बदन में सिरहन पैदा करती.

हम बार बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि यहां बात देश के टॉप ब्रेन की थी इसलिए आलोचकों ने खून का घूंट पिया और उस बात को कहने से गुरेज किया जिसपर बोलने के लिए आज भी उन्हें दो से तीन बार सोचना पड़ रहा है.

देश के दो शीर्ष अफसरों के बीच की घरेलू कलह और उस कलह के चलते उपजा तलाक अभी और क्या मोड़ लेगा इसका फैसला वक़्त करेगा मगर जो वर्तमान है उसे देखकर बस इतना ही कहा जा सकता है कि एजुकेशन ने लोगों के मुंह पर ताला जड़ दिया है. जनता बहुत कुछ कहना चाहती है लेकिन वो पूरी तरह खामोश है. और इस खामोशी की एक बड़ी वजह मजबूरी है. वाक़ई मजबूरी जो न करा दे वो कम है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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