क्लास में आराम फरमाती टीचर को पंखा झलती स्टूडेंट बिहार की बदहाली की तस्वीर है!
बिहार में बेतिया जिले के प्राइमरी स्कूल से वायरल हुए एक वीडियो ने पुनः बिहार की प्राइमरी एजुकेशन पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. जैसा कि वीडियो में दिख रहा है क्लासरूम में कुर्सी पर टांगें पसारकर एक टीचर सो रही है वहीं उसके बगल में एक छात्रा खड़ी है जो सोती हुई टीचर को हाथों से पंखा झल रही है.
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भले ही 'आईएएस अफसरों' की संख्या को आधार बनाकर बिहार देश के अन्य राज्यों के सामने कॉलर चौड़ा करके घूमे. लेकिन राज्य में शिक्षा वो भी प्राथमिक शिक्षा की जो स्थिति है, हर दूसरे दिन कोई न कोई ऐसी खबर आ जाती है जिसका खामियाजा बिहार के किसी आम नागरिक को भुगतना पड़ता है. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि बिहारी इस बात से अवगत नहीं हैं. समय समय पर इसकी शिकायत भी होती रही है. जिक्र अगर हाल फ़िलहाल का हो तो जिस तरह 11 साल के सोनू कुमार ने शिक्षा के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से 'शिक्षा' मांगी. यकीन हो गया था कि बिहार में बच्चों का पढ़ना आसान तो किसी सूरत में नहीं है. सवाल होगा कि इसका जिम्मेदार कौन है? सिस्टम, टीचर या फिर खुद मां बाप? जवाब हमें उस वक़्त मिल जाता है जब हम बेतिया जिले के उस वायरल वीडियो को देखते हैं जिसमें सोती हुई महिला टीचर साफ़ तौर पर प्राथमिक शिक्षा का मखौल उड़ाती नजर आ रही है.
बिहार के बेतिया में क्लास रूम में सोती महिला टीचर और उसे पंखा झलती छात्रा
वीडियो में दिख रहा है सरकारी स्कूल की महिला टीचर बच्चों से भरे क्लासरूम में आराम से कुर्सी पर टांगे पसारकर सो रही है. मामले में दिलचस्प ये कि, क्लासरूम में जहां एक तरफ और बच्चे पढ़ाई के नाम पर आपस में बातें कर रहे हैं. तो वहीं एक बच्ची ऐसी भी है. जो मैडम जी को हाथ का पंखा झल रही है. ताकि मैडम जी को गर्मी न लगे और अच्छी नींद आए.
#Viral | A video of a teacher spotted sleeping on a chair in a classroom in Bettiah, #Bihar has gone viral on social media. A girl is seen fanning the teacher, too.? baatbiharki pic.twitter.com/c3pmG5qekm
— News18.com (@news18dotcom) June 7, 2022
मामला सामने आने के बाद ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति न होगा कि इंटरनेट पर वायरल बेतिया का ये वीडियो सिर्फ बेतिया का ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को बयां कर रहा है. वायरल वीडियो इसका भी पुख्ता प्रमाण दे रहा है कि प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का ये शिक्षा के प्रति ढीला ढाला रवैया ही वो कारण है जिसके चलते बिहार में समय समय पर छात्रों के साथ साथ प्राथमिक शिक्षा पर सवालिया निशान लगे हैं.
वीडियो सामने आने के बाद प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गयी है. चाहे वो सिस्टम हो या फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी नीतियां दोषी तमाम चीजों को ठहराया जा रहा है. लेकिन क्या शिक्षा के इस स्वरुप के लिए वाक़ई मुख्यमंत्री और राज्य सरकार जिम्मेदार हैं? शायद नहीं. क्यों? कारण बस ये है कि क्या बतौर मुख्यमंत्री कभी नीतीश कुमार ये चाहेंगे कि उनकी बदनामी एक ऐसी चीज (शिक्षा) के लिए हो जिसके लिए वो खुद व्यक्तिगत रूप से गम्भीर हैं.
साफ़ है कि ऐसे मामलों में दोषी सरकारें नहीं बल्कि स्वयं शिक्षक हैं. लेकिन चूंकि सरकार पर इस अव्यवस्था का ठीकरा फोड़ना है तो इतना जरूर कहा जाएगा कि जब तक राज्य सरकारें ऐसे दोषी शिक्षकों पर नर्म रुख रखेंगी तब तक ऐसी तस्वीरें या ये कहें कि वीडियो हमारे सामने आते रहेंगे.
बाकी क्लासरूम में आराम फरमाती प्राइमरी टीचर और उस टीचर को हाथों से पंखा झलती स्टूडेंट को देखकर हैरत में आने वाले लोग पता नहीं उस वक़्त हैरत में आए या नहीं? जब अभी बीते दिनों बिहार के कटिहार से शिक्षा से जुड़ा एक वीडियो आया था.
वो वीडियो भी इंटरनेट पर खूब वायरल हुआ था. वीडियो में एक ही क्लासरूम में, एक ही समय पर एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो अलग भाषाएं हिंदी और उर्दू पढ़ाई जा रही थीं.
#WATCH | Bihar: Hindi & Urdu being taught on same blackboard in one classroom of a school in KatiharUrdu Primary School was shifted to our school by Education Dept in 2017. Teachers teach both Hindi &Urdu in one classroom: Kumari Priyanka, Asst teacher of Adarsh Middle School pic.twitter.com/ZdkPE0j7tW
— ANI (@ANI) May 16, 2022
यदि इस वीडियो को भी ध्यान से देखें तो मिलता यही है कि इसमें कटिहार का आदर्श मिडिल स्कूल बच्चों से, बच्चों के भविष्य और मां बाप के अलावा खुद स्कूल के शिक्षकों से धोखा कर रहा था. इस वीडियो पर भी खूब प्रतिक्रियाएं आई थीं और कहने वालों ने कहा था कि ऐसा सिर्फ बिहार में ही संभव है.
हम फिर अपनी बात को दोहराना चाहेंगे कि राज्य सरकार को कोसने से कोई फायदा नहीं है. भविष्य में जब भी ऐसी तस्वीरें और वीडियो आएं दोषी टीचर्स पर एक्शन के लिए लोगों को आवाज उठानी चाहिए. बात तो तब है जब ऐसे निर्लज्ज शिक्षकों को शर्मिंदगी का एहसास हो वरना सोशल मीडिया पर बनाए ट्रेंड और हैश टैग फ़साने से ज्यादा और कुछ नहीं हैं.
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