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Updated: 17 मार्च, 2018 01:39 PM
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भारत की राजनीति में जब भी नेताओं को वोट बैंक की भूख लगी है, उनकी सत्ता की भूख को हमेशा दो ही समाज के लोगों ने शांत किया है- किसान और नौजवान. आज के सामाजिक परिदृश्य में अगर देखा जाये तो सबसे ज्यादा ये लोग ही हाशिये पर हैं. राजनेताओं ने इनके वोट के बदले में हमेशा इनसे बेवफाई की है. दशकों तक छले जाने के बाद अब इनका धैर्य जवाब दे चुका है और अब ये सरकार और सड़ चुके इस सिस्टम के खिलाफ आर-पार की लड़ाई के मूड में दिख रहे हैं.

farmer protestसिस्टम के खिलाफ अब आर पार की लड़ाई

जुमलेबाज़ी, वादाखिलाफी करना तो हमेशा से ही हमारे नेताओं का राजनीतिक चरित्र रहा है, लेकिन अब यही इनके गले की हड्डी बन चुका है, जो न निगलते बन रहा है न ही उगलते. इस नाजुक स्थिति में भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए हमारे किसान और नौजवान बहुत ही शान्ति के साथ अपना विरोध दर्ज़ करवा रहे हैं. सरकार के ही आंकड़े के मुताबिक पिछले 20 सालों में 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. तमाम समितियां बनीं, हज़ारों रिपोर्ट आईं लेकिन आज भी भारत का किसान तंगहाली में जीने को मजबूर है.

किसानों की दुर्दशा  

भारत में आज भी लगभग 58% लोग अपनी आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर हैं. ऐसे में जब खेती की स्थिति ही दयनीय हो तो रोजगार के अवसर तो कम होंगे ही. अभी हाल ही में देश भर के किसानों ने अपने उत्पादन को सड़क पर फेंककर अपना विरोध दर्ज़ करवाया था, क्योंकि उन्हें अपने उत्पादन का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है. आपने भी सुना होगा कि कहीं आलू 1रुपये किलो मिल रहा था तो कहीं 50 पैसे और ऐसे में सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात एक छलावा से ज्यादा कुछ नहीं है.

farmer protest, farmerतंगहाली में किसान

2022 तक किसानों की आमदनी को दुगना करने की बात भी निपट ही मूर्ख बनाने की साज़िश है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही हमारे देश में एक किसान की औसत आमदनी पांच हज़ार रुपये प्रति महीने है और ऐसे में अगर मान भी लिया जाये कि सरकार अपने वादे को पूरा करने में सफल रहती है तो क्या उस समय तक 10 हज़ार रुपये महीने एक परिवार की आजीविका के लिए काफी होगा क्या? सरकार तो अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेती है लेकिन हकीकत ये है कि किसी भी दल ने आज तक किसानों के सरोकार से जुड़े मुद्दों को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं, बस बीच-बीच में थोड़ा बहुत कृषि लोन माफ़ कर के चुनावी जीत को सुनिश्चित कर लिया जाता है.  

युवा वर्ग की हालत दयनीय

हमारे प्रधानमंत्री को आपने अक्सर ही बोलते हुए सुना होगा कि भारत एक युवा देश है, यहां की 65% आबादी 35 वर्ष से काम आयु की है. प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार देने का वादा कर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार आज 2 लाख भी रोजगार नहीं दे पा रही है और ऐसे में अब ये समस्या ज्वालामुखी की तरह फूट रही है और कभी भी बड़ा विस्फोट हो सकता है.

unemployment, indiaदेश में बेरोज़गारों की संख्या 31 मिलियन के पार

छात्रों का गुस्सा सातवें आसमान पर है और अब ये सत्ता से सीधे टकराने के मूड में दिख रहे हैं. 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेरोज़गारों की कुल संख्या 31 मिलियन पार कर चुकी है, ये संख्या अपने आप में इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित कर रही है. सरकारी नियुक्तियों में आये दिन धांधली की ख़बरों ने तो इनके सब्र की सारी सीमाओं को लांघने का काम किया है.  

अन्नदाता और भविष्य के निर्माता आज दोनों ही उदास और हताश हैं. क्या सरकार किसी बड़ी अनहोनी का इंतज़ार कर रही है? उद्योगपतियों की आरती उतारना छोड़कर इनकी समस्याओं की जटिलताओं को समझना होगा नहीं तो परिणाम अकल्पनीय होंगे. अगर ये किसी सरकार को बनाने की ताकत रखते हैं तो उसे उखाड़ फेंकने का भी इन्हें पूरा अधिकार है.

फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुंह खोलेगा.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न, इंडिया टुडे)

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