देश भरोसा क्यों नहीं करता कि पति पत्नी के साथ बलात्कार कर सकता है
यह मुद्दा बार-बार सामने आता रहा है, समय आ गया है कि सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि विवाह को एक संस्कार बताकर इस बहस को बंद नहीं किया जा सकता.
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वैवाहिक जीवन में बलात्कार को अपराध घोषित किए जाने की सिफारिश सरकार द्वारा बनाए गए पैनल की एक ताजा रिपोर्ट में की गई है. इस रिपोर्ट ने एक बार फिर इस मुद्दे को हवा दे दी है.
यह मुद्दा बार-बार सामने आता रहा है, समय आ गया है कि सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि विवाह को एक संस्कार बताकर इस बहस को बंद नहीं किया जा सकता. शादी में बलात्कार की समस्या वास्तविक है. समस्या के समाधान की पेशकश करने में लाचारी व्यक्त करना उचित नहीं ठहराया जा सकता.
इस सिफारिश से पहले बहुत ज्यादा कुछ नहीं था, सरकार ने निरक्षरता दिखाई. भारत में संस्कृति, मूल्य और शादी संस्कार माने जाते हैं. इस पहलू को आधार मानकर ही संयुक्त राष्ट्र समिति ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया था.
सरकार फिर से वैसी ही गलती करेगी अगर उसने इस समस्या का समाधान तलाशने के लिए अगले स्तर पर संस्कृति और मूल्यों की बाधाओं को पार नहीं किया.
भेदभाव के खिलाफ महिलाओं के उन्मूलन पर बनी संयुक्त राष्ट्र समिति ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग की, सरकार ने संसद को बताया कि वह वैवाहिक बलात्कार को दंड संहिता में शामिल करने के पक्ष में नहीं थी. कारण हमेशा की तरह ही थे.
गृह राज्य मंत्री हरिभाई पराथीभाई चौधरी ने कथित तौर पर कहा कि "वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझा और माना जाता है लेकिन इसे शिक्षा के स्तर, अशिक्षा, गरीबी, असंख्य सामाजिक रीति-रिवाजों, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों, समाज की मानसिकता सहित विभिन्न कारकों से भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता. यहां शादी को एक संस्कार के रूप में देखा जाता है." विडंबना यह है कि सरकार गरीबी, सामाजिक रीति-रिवाज और "मूल्यों" का हवाला देकर पतियों को अपनी पत्नियों के साथ बलात्कार करने की इजाजत देने का आह्वान कर रही है.
बड़े रूढ़िवादियों का रुख देखें तो वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण किया जाना विवाह संस्था के लिए खतरा पैदा करना है. विडंबना यह है कि लॉ कमीशन भी इस मामले में अल्पज्ञता दिखा रहा है. विधि आयोग की 172वीं रिपोर्ट ने "वैवाहिक रिश्ते के साथ अत्यधिक हस्तक्षेप'' बताकर इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
बेडरूम के माहौल में सुधार लाने की कल्पना करना बेमानी होगा. भारतीय दंड संहिता में एक प्रावधान है कि 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ जबरन संभोग करने वाले पति पर बलात्कार का मुकदमा चलाया जा सकता है. बिना किसी विरोध के इस आयु सीमा को कई बार बढ़ाया गया है. एक अन्य प्रावधान और है कि न्यायिक अलगाव या किसी भी पंरपरा या उपयोग की वजह से अलग रह रही पत्नी के साथ बलात्कार करने वाले पति के खिलाफ भी मुकदमा चलाया जा सकता है. इसके अलावा बेडरूम तर्क बलात्कार की प्रकृति के कारण यौन हमले के साथ खारिज कर देता है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत दंडनीय अपराध है (सिर्फ इसलिए कि यह बलात्कार नहीं है!) और घरेलू हिंसा के खिलाफ यह कानून मान्य है.
क्या इन घटनाओं ने विवाह संस्था को नुकसान पहुंचाया है? पति की उन्मुक्ति के खिलाफ चिंता आधी आबादी के लिए अन्यायपूर्ण है, जिसे एक रिवाज के तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता. अपराध के शिकार हुए व्यक्ति को असहाय नहीं छोड़ा जाना चाहिए. शादी के बंधन से बचने के लिए तलाक की मांग यौन उत्पीड़न का कोई उपाय नहीं है. शुरुआत के लिए सरकार वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अलग से सजा दिए जाने का प्रावधान कर सकती है. सिविल मामलों को क्रिमिनल एक्ट के तहत नहीं लाया जाना चाहिए.
यह सच है कि वैवाहिक बलात्कार के साथ-साथ बलात्कार एक गंभीर व्यावहारिक समस्या है लेकिन इस समस्या का हल तभी निकाला जा सकता है जब सरकार "एक संस्कार के रूप में शादी" की सोच से आगे बढे और मान ले कि यह कोई वर्जना नहीं है.
शादी में बलात्कार का अपराधीकरण आरोप साबित करने में परेशानी खड़ी कर सकता है और एक पर्याप्त सजा दिलाने में भी. यह सेक्शन 498A के मामले में झूठे आरोपों की ढाल बन जाएगा और रिश्तों को तोड़ने में कामयाब रहेगा. इसके अलावा यह पीड़ित के बयान से जुड़े संवेदनशील मूल्यों को भी प्रभावित कर सकता है, बलात्कार जैसे जुर्म को लेकर समाज का जो नजरिया है, वैसे ही वैवाहिक विवादों से निपटने की संभावना को भी देखा जाता है.
कठिनाइयां बहुत सी हैं, लेकिन इस मामले को समाधान के लिए बहस में शामिल करना एक गंभीर मुद्दा है.
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