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Updated: 03 नवम्बर, 2015 06:08 PM
विवेक त्रिपाठी
विवेक त्रिपाठी
  @vivektripathijournalist
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बापू के सपने के अनुरुप भारत को स्वच्छ बनाने का सपना भारत के प्रधानमंत्री ने देखा. इसके मद्देनजर उन्होने शपथ दिलवाकर कार्यक्रम को विधिवत शुरू भी किया. लोगों में जागरूकता बढ़ी और वह साफ-सफाई के लिए आगे आने लगे. कुछ दिनों तक तो यह मुद्दा लोगों के जहन पर रहा. फिल्मी कलाकार, बड़े कारोबारी ही नहीं आम लोग भी स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में लग गए. अब इसकी चमक फीकी पड़ने लगी है. इसकी मुख्य वजह है जनसहभागिता का जागरूक न होना.

भारत के गांवों, कस्बों और शहरों में सफाई बढ़े और गंदगी कम हो, इससे भला किसे आपत्ति हो सकती है? यदि ऐसा हो जाए तो भारत की कायापलट हो जाएगी. लेकिन सवाल यह है कि एक सुंदर सपना देखने के बाद क्या केवल उसका प्रचार करना ही पर्याप्त है. इस बात को समझना होगा. एमसीडी, नगर निगम, नगर पंचायत जैसी संस्थाओं के कर्मचारियों का भरपूर साथ देने की जरूरत है. क्योंकि शहर, नगर की सफाई का जिम्मा इन्ही के कंधो पर है. लेकिन ऐसा होता नहीं है. अपने स्वार्थ के चक्कर में इन छोटे कर्मचारियों की बलि दी जाती है. जिससे सफाई की साख पर बट्टा लग जाता है. जिसकी बानगी आए दिन दिल्ली में देखने को मिल रही है. अगर हम एक सर्वे के अनुसार दिल्ली की गंदगी की ओर ध्यान आकर्षित करें तो दिल्ली में 9000 मैट्रिक टन कचरा निकलता है. वहीं मुंबई में 6.600 मिट्रिक टन, कोलकाता में 11 और हैदराबाद में 14 लाख टन कचरा हर साल पैदा होता है. इसी क्रम में पश्चिम बंगाल में 45 लाख टन और चेन्नई में 1.6 मिलियन टन उप्र प्रदेश में हर दिन 4.2 मिलियन टन , हैदराबाद में1.4 मिलियन टन कचरा पैदा होता है. हमारे देश में 6 करोड़ टन कचरा हर वर्ष पैदा होता है और यह दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. 

भारत में पायी जाने वाली 70 फीसदी बीमारियां साफ सफाई की कमी से होती हैं. प्लास्टिक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है, ये भूजल, नदी और हवा को दूषित कर रहा है. फिर भी लोग नहीं चेतते हैं. गंदगी बार-बार करते हैं. ये हालात तब है जब दिल्ली में 85 प्रतिशत कचरा घर जाकर उठाया जाता है. कचरे में पड़ी प्लास्टिक की थैलियां, पशुओं के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. शुद्ध पेयजल का अभाव भी बड़ी समस्या है. खुले में शौच जाना स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी मिलता. संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त पानी है, लेकिन उसके सही प्रबंधन की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो प्रदूषण के कारण दमे की बीमारी न सिर्फ प्रौढ़ों में, बल्कि बच्चों में भी बढ़ती जा रही है. साथ ही कैंसर, हृदय रोग और लकवे का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है. जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती जाती है वे इन बीमारियों के चंगुल में फंसते जाते हैं. घर के अंदर और बाहर हर जगह प्रदूषित वायु ही सांस लेने को मिलती है जिससे हर वर्ष 16 लाख लोग मरते हैं.

पिछले 150 वर्षों में कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की दर इससे पहले के हजारों सालों की दर से अधिक है. दुनियाभर में करीब 20 करोड़ लोग वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं. वर्ष 2012 के आंकड़ों के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दुनियाभर में 37 लाख मौतें हुई थीं.

सफाई अभियान को राजनीतिक रूप देकर विपक्षियों ने खूब खिल्ली भी उड़ाई लेकिन सच में यह सार्थक पहल है. अगर लोग स्व-प्रेरित होकर सफाई को लेकर सजग हों तो शायद ही गंदगी कहीं बचेगी. गंदगी हटेगी तो बीमारियां भी नष्ट होंगी. यही बात सबको समझनी होगी. हर व्यक्ति का हाथ जब इस अभियान में जुड़ेगा तभी भारत साफ हो सकेगा. जो स्थान सबसे ज्यादा गंदा है, उसकी सफाई पहले करें तथा यह सुनिश्चित करें कि उस स्थान पर पुनः गंदगी न फैले. बस स्टैंड तथा अस्पताल में खुले में कचरा न फेंके तथा जहां खुले में कचरा फेंका जाता है वहां कचरे की व्यवस्थित रखरखाव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए. स्टेशनों पर हर जगह कूड़ा फेंकने की आदत से छुटकारा लेना होगा. सड़कें, छोटे मार्ग, गलियां, खेल के मैदान, पार्क, और अन्य सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ बना दिया जाए तो होने वाली बीमारियां एक चैथाई से भी कम रह जाएंगी. इसी तरह यदि गाँवों और शहरों में पीने का स्वच्छ पानी मुहैया करा दिया जाए तो आधी बीमारियां खत्म हो सकती हैं.

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