'फ्री सेक्स' से पहले भारतीय महिलाओं को कुछ और भी चाहिए !!!
बाधा तो समाज और परिवार की ओर से है और उससे भी ज्यादा खुद के मानसिक बंधनों की. जिस दिन वे इस सुलूक को महसूस करने लगेंगी उस दिन बराबरी का व्यवहार स्वयं करने लगेंगी.
-
Total Shares
'फ्री सेक्स' पर केवल कुछ मुट्ठी भर स्त्रियों का सामने आना और स्त्रियों के एक बहुत बड़े वर्ग का खामोश रहना अजीब नहीं है. उनका इसे असांस्कृतिक और अनैतिक मानना भी अजीब नहीं लगता मुझे. मुझे लगता है देश में इस मुद्दे को सभी स्त्री पुरुष समझकर चर्चा कर सकें, इसमें अभी समय है.
अभी तो स्त्रियां अपने साथ हो रहे गैर बराबरी के सुलूक का विरोध तो दूर उसे महसूस करने के काबिल भी नहीं हो पाई हैं. भारत में स्त्रियों के पक्ष में सबसे अच्छी और महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें संविधान और क़ानून में एकदम समान अधिकार मिले हुए हैं. उनके साथ हुए हर असमान व्यवहार पर कोर्ट उनके पक्ष में हैं. सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार बिना लिंग भेद के एक समान है.
स्त्रियां अपने साथ हो रहे गैर बराबरी के सुलूक को महसूस करने के काबिल भी नहीं हो पाई हैं |
बाधा तो समाज और परिवार की ओर से है और उससे भी ज्यादा खुद के मानसिक बंधनों की. जिस दिन वे इस सुलूक को महसूस करने लगेंगी उस दिन बराबरी का व्यवहार स्वयं करने लगेंगी. बराबरी कोई दूसरे गृह पर सात तालों में बंद हीरे की अंगूठी नहीं है, जिसे ढूंढना और फिर प्राप्त करने के लिए बहुत बुद्धि और ताकत की ज़रूरत हो. हां, केवल अपने दिमाग पर लगा एक ताला जरूर खोलना होगा. आजादी किसी से मांगनी या छीननी नहीं है. सिर्फ उसे जीना शुरू करना है.
ये भी पढ़ें- सामने आ ही गई भारतीय नारी की ‘परफेक्ट’ तस्वीर
जो महसूस कर रही हैं और मजबूरी में झेल रही हैं, उनके लिए तो कोई लड़े भी. जो महसूस ही नहीं कर पा रही हैं, वे तो उनके लिए लड़ने पर खुद ही विरोध करने लगेंगी. कितनी तो बातें हैं जो चुभनी चाहिए, खटकनी चाहिए पर नहीं चुभतीं.
कितनी शातिराना कंडीशनिंग है... है ना ?
मुझे आश्चर्य है कि उन्हें बुरा नहीं लगता -
1- जब उन्हें पति की तनख्वाह मालूम नहीं होती और उस तनख्वाह से कहां इन्वेस्टमेंट हो रहे हैं, ये भी नहीं.
2- जब घर की नेमप्लेट पर उनका नाम नहीं होता, भले ही वे बाहर नौकरी करें या घर संभालें.
3- उनका रहन सहन और वस्त्रों का चयन कोई और करता है. हां ,एक बार पैटर्न डिसाइड होने पर रंग डिज़ाइन चुनने के लिए वे स्वतंत्र हैं.
4- पति या बॉयफ्रेंड उनसे पासवर्ड्स लेता है, बिना अपना शेयर किये.
5- पति या प्रेमी उन्हें दूसरे पुरुषों से बात करने से रोकता है.
6- घर में भाई को खाना निकालकर देने का कार्य सौंपा जाता है.
7- जब ससुराल वाले कहते हैं कि हम बहू को पूरी छूट देते हैं. "छूट देना" शब्द अत्यंत आपत्तिजनक होना चाहिए.
8- जब माता पिता कहते हैं कि “हमने पढ़ा लिखा दिया अब पति और ससुराल वाले चाहे नौकरी कराएं या नहीं"
9- रस्मी तौर पर ही सही, साल में एक दिन ही सही, पति के चरण छूना.
ये भी पढ़ें- भेदभाव के खिलाफ चुप्पी तोड़ती महिलाएं
ऐसी अनगिनत बातें हैं, जिनपर दिल दुखना चाहिए, तिलमिला जाना चाहिए, मगर सहज बना दिया गया है इन्हें लड़कियों के लिए.
सोचो, महसूस करो, विरोध करो.
और ये तीनों स्टेप लेने के बाद कोई तुम्हारा साथ नहीं देता तो खुद के साथ के लिए खुद को तैयार रखो. और इसके लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर अवश्य बनो.
आर्थिक आजादी सभी आजादियों को जीने का साहस देती है.
आपकी राय