शादी के पुराने रिवाज और महिलाओं की सहमति
"नाता प्रथा" की रस्म फिर सुर्खियों में है. एक गांव के पंच ने एक महिला के साथ रहने के लिए अपनी जरूरत के मुताबिक एक छह साल की बच्ची से शादी कर ली.
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"नाता प्रथा" की रस्म फिर सुर्खियों में है. एक गांव के पंच ने एक महिला के साथ रहने के लिए अपनी जरूरत के मुताबिक एक छह साल की बच्ची से शादी कर ली. नाता प्रथा राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में प्रचलित है, जो बिना शादी समारोह के "नाता" (संबंध) बनाने की अनुमति देती है. लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को पहले से ही शादीशुदा होना चाहिए. इस खास मामले में आदमी कुंवारा था, इसलिए उसने पहली शादी की. दुर्भाग्य से जो दुल्हन उसने चुनी थी वह एक छह वर्षीय बच्ची थी.
बाल विवाह के लिए गुस्सा जायज है और शायद उसे कहीं न कहीं गिरफ्तार कर लिया जाएगा. जब से नाता प्रथा के बारे में बात की जा रही है, पाठक पूछे जा रहे हैं कि लोग किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करने से पहले तलाक क्यों नहीं लेते?
क्यों भला? मैं तलाक, बच्चों और उत्तराधिकार के बारे में समाज का रवैया नहीं जानती. लेकिन मुझे लगता है कि शादी की सहजता और अलग हो जाने के मानदंडों पर कुछ कहा जा सकता है.
हमारे कानूनी ढांचे में यह हमें एक स्त्री के साथ विवाह से अगले करने की चाल है. शादी में विविधता की कोई वैकल्पिक सहानुभूति नहीं दिखती. ज्यादा पति होने की बात हमें घबराहट देती है. सदियों से हमें कड़ाई के साथ शादी के बारे में सोचने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, स्थाई तौर पर सोचा जाए तो यह अधिकांश समुदायों के लिए आदर्श नहीं था.
मैं नाता प्रथा के बारे में पढ़ रही थी. मुझे कई ऐसी रिपोर्ट मिली जिनमें लेखक इस परम्परा की आलोचना कर रहे हैं, भले ही कुछ ख़बरें महिलाओं के हवाले से थी जिन्होंने अधिक संपर्क का काम किया और यह इस परम्परा के खिलाफ लग रहा था. आलोचना का हिस्सा मैदान में दलालों के आ जाने की वजह से है, लेकिन बड़ी आपत्ति यह है कि एक आदमी अपनी पहली पत्नी को एक तरफ छोड़ देता है और दूसरी महिला "को भुगतान किया" जाता है. वास्तव में राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व प्रमुख ममता शर्मा ने एक साक्षात्कार में नाता प्रथा को महिलाओं के 'यौन उत्पीड़न' का एक तरीका बताया था. उन्होंने जोर देते हुए कहा था, "एक व्यक्ति शादी के अलावा भी बाहर एक और साथी रख सकता है... महिलाओं को सिर्फ बेचा जा रहा है, लेकिन उन्हें यह शोषण नहीं लगता."
टूटते विवाह और दुल्हन की कीमत के तेवर, आजीवन एक पत्नीत्व के बाहर संबंधों को देखने का एक प्रतिबिंब है. ममता शर्मा की आलोचना इस धारणा पर आधारित है कि एक आदमी एक महिला को "खरीद" रहा है और एक महिला को किसी दूसरे आदमी के लिए छोड़ रहा है. वह इस बात को नहीं मान सकती हैं कि हो सकता है, महिला भी विवाह बंधन को छोड़ना चाहती हो लेकिन दुल्हन को ही इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. परंपरागत रूप से, यह कई भारतीय जनजातियों की रस्म होगी.
यह एक "अच्छा" रिवाज है? या बुरा? मैं नहीं कह सकती. मैं जो कह सकती हूं कि 17 की उम्र में भारतीय शादी को लेकर मेरा नजरिया बदल गया था. मेरी समाजशास्त्र की किताब ने मुझे बताया था कि मनुस्मृति के मुश्किल पाठ के मुताबिक विवाह आठ प्रकार के होते हैं. उनमें "गंधर्व विवाह" भी था - जिसे हम "प्रेम विवाह" कहते हैं.
यह एक रहस्योद्घाटन था. विवाह के मामलों में हमेशा निजी पसंद देखी जाती थी - ज्यादा वयस्कों, दोस्तों, हिंदी फिल्मों, और टेलीविजन के जरिए. प्यार, शादी से पहले सेक्स और तलाक के बारे में "आधुनिक" या "पश्चिमी" विचारों के तौर पर बातें होती थी. दक्षिणपंथी धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को बहुत सुनने के बाद लगता है कि दो दशकों में भी कुछ नहीं बदला है. (मोरेलिटी टीवी और लविंग जेहाद फिल्म इस बात की गवाह है, जहां एक आदमी इस बात का ऐलान करता है कि भारतीय संस्कृति में वैवाहिक प्यार के लिए कोई जगह नहीं है).
मेरी समाजशास्त्र की किताब (खासकर एमएन श्रीनिवास की इंडियाः सोशल स्ट्रक्चर) ने मुझे इस तथ्य से अवगत कराया कि प्रेम विवाह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. उस किताब ने मुझे विभिन्न भारतीय समुदायों में वैवाहिक मानदंडों की मूल बातें बताई.
कुछ चचेरे भाईयों या चाचाओं से शादी के लिए प्रोत्साहित करती हैं. कुछ भाई की विधवा से. कुछ जनजातियों में प्रेम प्रसंग अवधि जरूरी है. कुछ में प्रावधान है कि दुल्हा या दुल्हन को किसी दूसरे के परिवार के साथ रहना होता है, ताकि शादी होने से पहले वहां के पानी और परिवार का माहौल पता चल सके. कुछ जनजातियों में समुदाय के मेलों या नृत्य के दौरान सिर्फ एक झलक पाने के बाद अपना साथी चुना जाता है.
हर समुदाय के नियम सदियों के अनुभव पर आधारित होते हैं जो उन्हें उनके भूगोल, उनकी जीवन शैली, व्यापक सामाजिक आघात, भावनात्मक टिप्पणियों से मिलते हैं. आमतौर पर तलाक एक गैर कोलाहल वाला काम है. अगर युगल बेमेल है, तो वे अलग हो जाते हैं और जीवन में आगे बढ़ जाते है. यह ठीक हो सकता है या कुछ पैसे या उपहार पाने की आवश्यकता हो सकती है.
भागकर शादी करना, उदाहरण के तौर पर अगर परिवारों के बीच बातचीत लंबी चले या माता-पिता की नामंजूरी हो, तो ऐसी बातें आम है. माना जाता है कि विवाह के बाद जोड़ा लौट आएगा और माफी मांग लेगा. धीरे धीरे परिवार भी उन्हें स्वीकार कर लेगा. राजस्थान के गारासिया के अलावा जहां लंबे समय तक संबंध आम बात हैं; यहां शादी तभी होती है जब युगल इसका खर्च उठा सकता हो.
अपहरण करके शादी किया जाना, अधिकतर यह एक तरह का नकली अपहरण होता है. दुल्हन के परिवार वाले लड़की को दूल्हे की पार्टी से विरोध के तौर पर दूर ले जाते हैं. कई ऊंची जातियों और वर्गों में भी इसी तरह का प्रतीकात्मक रिवाज है. उदाहरण के लिए परिवार एक-दूसरे को गाली दे सकते हैं या दुल्हन के घरवाले दिखावा करने पर दूल्हे को पीट सकते हैं. यह उत्तर भारत में हिंदू और मुस्लिम परिवारों के लिए आम बात है.
मेरा पसंदीदा रिवाज है "घुसपैठ करके शादी" करना. जिसमें एक लड़की उस लड़के के घर पहुंच जाती है जिससे वह शादी करना चाहती है और तब तक वहां से नहीं जाती जब तक लड़का उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करता. यह मूल रूप से इच्छाशक्ति की लड़ाई है, एक खास व्यक्ति को पाने के लिए खुद की इच्छा का परिक्षण.
आदिवासी संस्कृतियों में महिलाएं न केवल ये तय करती हैं कि वे किससे शादी करेंगी (और कब छोड़ देंगी) बल्कि वे धन भी लेती हैं. उनकी मेहनत और उनके हुनर बहुमूल्य तरीके से बताए जाते हैं. इसी वजह से उनके माता पिता दुल्हन की कीमत को लेकर मोलभाव करते हैं - किसी को घर का कब्जा छोड़ना होता है! वे उससे छुटकारा पाने के लिए या इस विशेषाधिकार के लिए भुगतान करने में नहीं लगे रहते!
मुख्य रूप से खेती पर निर्भर करने वाले समुदायों का फोकस संपत्ति को अविभाजित रखने पर होता है. यहीं से परेशानी शुरू होती है. भाई भूमि का हिस्सा नहीं देना चाहते तो वे दहेज के साथ क्षतिपूर्ति करते हैं - सोने या चांदी के आभूषण, कपड़े, पशु, नकदी देते हैं. लेकिन महिला को पता होता है कि अगर उसका धन पति के घर में खर्च किया गया तो वह आसानी से वापस नहीं मिल सकता. अगर वह अभी घर छोड़ देती है, तो उसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है.
संपत्ति और विरासत के नियम शादी में बंधे हैं और अगर इन्हें और भी कड़ा कर दिया जाए तो कानून बहुत सारे लोगों के संबंध को नरक बना सकता है और उन्हें वहां रख सकता है. हमें अच्छी तरह से याद रखना चाहिए कि संपत्ति के मामलों में महिलाओं के साथ विधवा हो जाने पर धोखा होता है और उन्हें घर से बाहर फेंक दिया जाता है, उन पर चुड़ैल होने के आरोप लगा कर मौत के घाट उतार दिया जाता है.
जब 18वीं सदी में रिवजों के नाम पर क्रूरता और हिंसा व्यापक हो रही थी, तब भारतीयों ने खुद को रोक लिया. ऊंची जाति के सुधारकों ने बाल विवाह रोकने और विधवाओं के पुर्नविवाह की अनुमति देने वाले कानून की पैरवी के लिए अंग्रेजों का समर्थन लिया. बाद में तलाक भी वैध हो गई थी. हालांकि, इन कानूनों को खासतौर से ऊंची जातियों के लिए बनाया गया था. निचली जातियों और जनजातियों को पहले से ही यह आजादी थी.
मुस्लिम समाज के पास भी विभिन्न वैवाहिक समाधान है. मुसीबत यह है कि वे महिलाओं को सशक्त बनाने वाली आजादी का सही मायनों में सम्मान नही करते हैं. इन सब के बाद भी एक महिला की सहमति महत्वपूर्ण है. लड़की की सहमति के बिना शादी अवैध है. मेहर यह सुनिश्चित करने के लिए है कि महिला के पास उसके खुद के पैसे हैं लेकिन यह राशि बहुत ही कम होती है (अक्सर इसका भुगतान नहीं किया जाता) जिसमें महिला घर या पति को छोड़ कर एक माह भी नहीं रह सकती. हकीकत में मुस्लिम महिलाओं को घर का काम करने के लिए मजदूरी की इजाजत दी जाती है. उसके बाद भी उनकी हौंसला अफजाई नहीं की जाती और मुस्लिम पुरुष खुद भुगतान करने के लिए आगे नहीं आते.
सहमति, आखिर में उन सवालों का जवाब है कि कौन से रिश्ते अच्छे हैं और कौन से अच्छे नहीं. अगर एक महिला को भी मंजूर हो तो नाता प्रथा भी ठीक है. बाल विवाह ठीक नहीं है क्योंकि एक बच्चे को सहमति देने के लिए पर्याप्त समझ नहीं होती. उनके लिए बाहर के किसी व्यक्ति को मजबूरी में पैसा और सहमति देनी पड़ती है जो ठीक नहीं होता.
आखिर में यह विरासत और आय ही है जो महिलाओं की आजादी को बहाल करेंगे. पति-पत्नी के अधिकार पर जोर और पति-पत्नी की इच्छा की परवाह न करना एक अदूरदर्शी और खुद को हराने वाला उद्यम है. शायद यह सच था कि कुछ भारतीय नाता प्रथा को अनुमति देकर इसे स्वीकार करते हैं. मैं हैरान हूं कि चेतावनी भी होती है - दोनों पक्ष पहले से ही शादीशुदा हों - मेरा यह तय करने का इरादा नहीं था कि एकल अनुपात समुदाय में संतुलित रहता है.
सभी कानूनों के साथ एक रस्म के मुताबिक शादी या विवाहेतर रिश्ते अच्छे हो सकते है, अगर लोग इसे अमल में लाएं. अगर एक बार भावनाएं भ्रष्टाचार में डूबती हैं, तो कोई बात नहीं कि कानून की क्या मंशा है, त्रासदी पीछा करती हैं.
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