Instant noodles आपके बच्चों को बीमार नहीं, बहुत बीमार कर रहे हैं
बच्चों को instant noodles खिलाने वाले माता-पिता ये समझते हैं कि बच्चों का पेट भरना ही सबसे जरूरी चीज है. वो प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर जैसे जरूरी तत्वों के बारे में सोचते भी नहीं. जिसका सीधा असर बच्चों की सेहत पर पड़ता है.
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117 देशों के Global Hunger Index में भारत के 102वें स्थान पर पहुंच जाने की चेतावनी भरी खबर आई ही है. लेकिन, इससे भी बड़ी चिंता की बात ये है कि बच्चों के खानपान का पैटर्न भारत में चिंताजनक होता जा रहा है. ये तो हम सभी जानते हैं कि जंक फूड खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. लेकिन सब कुछ जानते बूझते हम इन जल्दी से तैयार हो जाने वाले खाने का मोह नहीं छोड़ पाते. आजकल के ये खाने सस्ते हैं, जल्दी बन जाते हैं और पेट भी भर जाता है. बिना किसी मेहनत और झंझट के बन जाने वाले इन खानों में सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं instant noodles, जैसे मैगी वगैरह.
Instant noodles बच्चों को तो प्रिय हैं ही लेकिन बैचलर्स के जीवन का संकटमोचक माने जाते हैं. पर इसके बिना अपने जीवन को अधूरा समझने वाले लोगों को शाद ये नहीं पता कि ये instant noodles असल में कितने खतरनाक हैं. एक्सपर्ट्स की माने तो ये इंस्टेंट नूडल्स दक्षिण-पूर्वी एशिया के बच्चों को अस्वस्थ रूप से दुबला या मोटा बना रहे हैं.
सेहत के साथ समझौता हैं instant noodles
फिलिपीन्स, इंडोनेशिया और मलेशिया की अर्थव्यवस्था सुधर रही है. और यहां रहन सहन का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है. फिरभी माता-पिता दोनों के कामकाजी होने की वजह से उनके पास अच्छा खाना बनाने के लिए न तो समय है और न ही अच्छी समझ, जिससे बच्चों को नुकसान पहुंच रहा है. Unicef की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन तीनों देशों में 5 और इससे कम उम्र के 40% बच्चे कुपोषित हैं, यानी 3 में से 1 बच्चा कुपोषित है.
बच्चों की सेहत खराब कर रहे हैं इंस्टेंट नूडल
इंडोनेशिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि- माता-पिता समझते हैं कि बच्चों का पेट भरना ही सबसे जरूरी चीज है. वो प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर जैसे जरूरी तत्वों के बारे में सोचते भी नहीं. यूनिसेफ का कहना है कि बच्चों का ये नुकसान अतीत में की गई भूल और भविष्य में होने वाली गरीबी दोनों के लक्षण दिखा रहा है. गर्भ में पल रहे बच्चे या जन्म लेने के तुरंत बाद आयरन की कमी से बच्चे की सीखने की क्षमता खत्म कर देती है और मां की मृत्यु का जोखिम बढ़ा देती है.
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक इंडोनेशिया में पिछले साल पांच साल से कम उम्र के 24.4 मिलियन बच्चे थे, जबकि फिलीपींस में 11 मिलियन और मलेशिया में 2.6 मिलियन थे. यूनीसेफ एशिया की पोषण विशेषज्ञ, मुनी मुतुंगा ने जब इन बच्चों के परिवारों पर स्टडी की तो पता लगा कि वो इन सस्ते, सुलभ और आसानी से तैयार होने वाले 'आधुनिक' खानों के लिए अपने पारंपरिक खानों को त्याग रहे थे.
इन देशों में इंस्टैंट नूडल्स के ये पैकेट काफी सस्ते मिल जाते हैं. लेकिन इनमें आवश्यक पोषक तत्वों और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों काफी कम होते हैं. इनमें फैट और साल्ट की मात्रा तो बहुत ज्यादा होती है लेकिन प्रोटीन की कमी होती है.
noodles खाने से पेट तो भर जाता है लेकिन शरीर को पोषण नहीं मिलता
World Instant Noodles Association के मुताबिक चीन के बाद पूरी दुनिया में इंडोनेशिया इंस्टेंट नूडल्स की 12.5 बिलियन सर्विंग्स के साथ 2018 में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था. यह आंकड़ा भारत और जापान दोनों की कुल खपत से भी ज्यादा है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि पोषक तत्वों से भरपूर फल, सब्जियां, अंडे, डेयरी, मछली और मांस आहार से गायब हो रहे हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग नौकरियों की तलाश में शहरों में जा रहे हैं.
क्या भारत को डरने की जरूरत है ?
अगर सवाल ये है तो जवाब है हां. यूनिसेफ की रिपोर्ट भले ही ऐशिया के तीन देशों के बारे में हो लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत भी एशिया का हिस्सा है और दुनिया भर में इंस्टेंट नूडल्स की खपत के मामले में 5वें स्थान पर भारत ही आता है. पहले स्थान पर चीन है, दूसरे पर इंडोनेशिया, तीसरे पर जापान चौथे पर वियतनाम और पांचवे पर भारत.
मैगी बैन होने के बावजूद भी भारत में इंस्टेंट नूडल्स की दीवानगी कम नहीं हुई
Mordor Intelligence की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2015 में मैगी पर लगे बैन के बावजूद भी इंस्टेंट नूडल्स उद्योग 2010 से 2017 के बीच 7.6% की वार्षिक वृद्धि के साथ सबसे आकर्षक रूप में उभरा. यानी मैगी में भले ही लेड की मात्रा अधिक पाई गई थी, लेकिन इससे लोगों की समझ पर कोई असर नहीं पड़ा. मैगी जब दोबारा मार्केट में आई तो लोगों ने एक पल के लिए भी ये नहीं सोचा कि ये खतरनाक हो सकती है.
खतरनाक है फिरभी मैगी का साम्राज्या बढ़ता ही जा रहा है
आज भी खाना बनाने का मन नहीं होता, थक गए, या जल्दी से कुछ बनाना होता है तो लोग मैगी ही बनाते हैं. खुद भी खाते हैं, बच्चों को भी खिलाते हैं. स्वाद भी लेते हैं, पेट भी भर लेते हैं, लेकिन ये जरा भी नहीं सोचते कि इससे बच्चों की सेहत पर क्या असर पड़ेगा. हमें याद रखना होगा कि कोई भी चीज आसान नहीं होती. हर चीज की एक कीमत होती है. इन इंस्टेंट नूडल के आगे लगा हुआ 'इंस्टेंट' बच्चों के स्वास्थ के रूप में ये कीमत वसूल रहा है, और माता-पिता अनजान हैं.
इसलिए बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी है कि माता-पिता उनके पेट भरने की चिंता छोड़कर इस बात की चिंता करें कि उन्हें पोषित कैसे रखें. और जवाब एकदम सरल है- देसी खाएं और देसी खिलाएं!
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