सूखा झेल रहे देश को आईपीएल की ठंडी फुहार
पीने के पानी की बूंद बूंद को तरस रहे लोगों को टीवी पर जब मैदान में पानी के अनवरत छिड़काव के दृश्य दिखते होंगे तो वो क्या महसूस करते होंगे?
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अपना देश सिर्फ विविधताओं का ही देश नहीं है बल्कि बेशर्म राजनेताओं, पूंजीपतियों और खेल मठाधीशों का भी देश है. जिस देश में लगभग 44 प्रतिशत जिले सूखे का कहर झेल रहे हों और महाराष्ट्र खुद सबसे बड़े सूखे की चपेट में हो, वहां बेशर्मी से आईपीएल का आयोजन करके आखिर क्या दर्शाना चाहते हैं. पीने के पानी की बूंद बूंद को तरस रहे लोगों को टीवी पर जब मैदान में पानी के अनवरत छिड़काव के दृश्य दिखते होंगे तो वो क्या महसूस करते होंगे. शायद अपने आप को बेहद बदनसीब या किसी और देश के निवासी.
पिच तैयार करने के लिए 20 मैचों में करीब 60 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है |
ये सच है कि सूखा एक आपदा है, लेकिन इसके जिम्मेदार हम सब के साथ साथ वो लोग भी हैं जिनको हम चुनकर सांसद या विधान सभा में भेजते हैं, ताकि वो इन आपदाओं के समय आम जनता की मदद करें. लेकिन वो तो बिना किसी शर्म के इन पूंजीपतियों और खेल मठाधीशों के साथ खड़े हो जाते हैं. और पूछने पर अजीब हास्यास्पद तर्क, जैसे की मैदान पर स्वच्छ जल नहीं छिड़का जाता है, बल्कि उसे साफ़ करके छिड़का जाता है. जैसा भी हो, वही जल उन लोगों को क्यों नहीं दिया जा सकता है जो इसके लिए तरस रहे हैं.
इस सूखे के कारण महाराष्ट्र के 90 लाख किसान प्रभावित हुए हैं |
और अगर कुछ संस्थाएं, जिनका उद्देश्य कुछ भी हो, इन मैचों के खिलाफ कोर्ट में जाती हैं तो कहा जाता है कि ये लोग अपने फायदे के लिए ऐसा करते हैं. हो सकता है उनको कुछ प्रसिद्धि मिल जाती हो, लेकिन ऐसे तमाम फूहड़ आयोजनों के खिलाफ क्या आवाज नहीं उठानी चाहिए?
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शायद हर संपन्न व्यक्ति ये भूल जाता है कि पानी पैदा नहीं किया जा सकता, इसका संरक्षण बहुत जरुरी है. जरुरत है कि आम आदमी ऐसे हर कार्यक्रम का बहिष्कार करे और यथासम्भव जल संरक्षण में अपनी हिस्सेदारी को निभाए. कुछ भी असम्भव नहीं है, रेगिस्तान में भी हरियाली लायी जा सकती है, बस जरुरत है तो सोच बदलने की और ऐसे तमाम आयोजनों का खुल के विरोध करने की.
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