कैंसर बीमारी नहीं व्यवसाय है....
बीमारी के नाम पर पहले डराओ फिर दवाई बेचो और जेबें भरो. क्या कैंसर की कहानी भी यही है? क्या कैंसर मुक्त दुनिया संभव है? असल में कैंसर की दवा बनाने वाली कम्पनी डर का धंधा कर रही है और इसे संचालित करती है पॉलिटिक्स...
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कैंसर! भयावह, डरावनी, जानलेवा और लगभग लाइलाज एक खर्चीली बीमारी. जिस का नाम सुनते ही न जाने कितने विशेषण याद आ जाते हैं और रोंगटे खड़े हो जाते हैं. हम प्रार्थना में ईश्वर से भी यही कहते है कि हे भगवान 'हमारे दुश्मन को भी कैंसर जैसी बीमारी मत देना.' यह एक ऐसी बीमारी का नाम है, जो उम्र और जेंडर देख कर नहीं आती. जिसके डर के साये में पूरी दुनिया जी रही है लेकिन अब तक इसका कोई संपूर्ण उपचार नहीं मिल पाया है.
कैंसर के बारे में आए दिन कुछ ना कुछ नई जानकारी मिलती रहती है. जैसे कि शराब-सिगरेट के सेवन से कैंसर की सम्भावना ज्यादा रहती है. गुटखा, पान-मसाला खाने से मुंह का कैंसर अधिक होता है. अल्युमीनियम के बर्तन में खाना नहीं बनाना चाहिए, प्लास्टिक के बर्तन में गर्म खाना नहीं परोसना चाहिये. यहां तक कि TMH (टाटा मेमोरीयल हॉस्पिटल) में आज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध है लेकिन दुर्भाग्य देखिए, आज भी कीमोथेरेपी की दवा प्लास्टिक के बैग में ही आती है.
सीधे शब्दों में कहे तो कैंसर का कोई प्रकार नहीं होता है. शरीर के जिस हिस्से में यह होता है उस हिस्से को नाम को इसके साथ जोड़ दिया जाता है. ठीक वैसे ही जैसे एक आम दर्द को. अगर सिर में दर्द है तो हम सिरदर्द कहते है और यदि पेट में हो तो हम पेटदर्द कहते है.
कैंसर के इलाज के क्रम में सबसे पहले रेडियोथेरेपी आयी जिसे आम बोल चाल की भाषा में इलेक्ट्रिकल सेंक भी कहा जाता है. उसके बाद कीमोथेरेपी आयी, जो कैंसर से भी ज़्यादा ज़हरीली होती है. इसकी विषमता इतनी है कि कीमोथेरपी के बाद आँख की पिप्नियां (eyelashes ) तक झड़ जाती हैं. लेकिन बचने की गैरंटी फिर भी नहीं होती!
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कैसे पूरा होगा कैंसर मुक्त दुनिया का सपना... |
करीब छह-सात साल पहले फेमिना हिंदी के एक लेख में पढ़ा था कि यदि कभी मां को गर्भाशय कैंसर हुआ हो तो उसकी बेटी को प्रेग्नन्सी के दौरान स्तन कैंसर होने का खतरा बना रहता है. इज जानकारी ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी थी. जब तक कि लैब टेस्ट की रिपोर्ट नहीं आ गयी. हालांकि कैंसर के जेनेटिक होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है, फिर भी हर पीढ़ी में कोई ना कोई इसका ग्रास अवश्य बनता है. कैंसर में कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित रूप से बढ़ता है. अपने आस पास के उत्तकों पर हमला कर उन्हें खत्म कर अपना साम्राज्य स्थापित करता है.
मुख्यतः ये दो तरह के होते हैं. एक तो गांठ के रूप में होते है दूसरा संबहनीय. कैंसर के बारे में कई तरह की भ्रांतियां भी हैं. जैसे कैंसर ऑपरेशन के बाद दोगुने तेज़ी से फैलता है, कैंसर में सबसे खतरनाक हड्डी का कैंसर होता है. कोई पुराना चोट बाद में कैंसर बन जाता है आदि.
दो साल पहले कैंसर की दवाई की कीमत भी कैंसर की तरह ही अचानक दस गुनी बढ़ गई जो आम इंसान के खरीदने के बस की बात नहीं. एक दिन इसी मुद्दे पर पापा से बात करते हुए एक बात सामने आई जिसने मुझे चौंका दिया. पापा के गांव में एक बुज़ुर्ग को कैंसर हुआ लेकिन उन्होंने कीमोथेरपी के लिए ये कहकर साफ मना कर दिया कि मैं अपने बेटों को ग़रीब बना कर नहीं जी सकता. मैंने अपनी जिंदगी जी ली और वो हॉस्पिटल से वापस लौटआये. घर आकर रोज गेहूं के अंकुरित दाने खाने लगे. ये खाते हुए उन्हें 5 साल हो गए और वो पहले की तरह ही स्वस्थ हैं.
ये खबर वाक़ई मेरे लिए चौकाने वाली थी क्यूंकि मैं अपने घर में कैंसर से हुई दो-दो मौतों की गवाह हूं.
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25 साल पहले जब कीमोथेरपी इतनी आम नहीं हुई थी, तब कैन्सर के बारे में पता चलने के बाद रेडियोथेरेपी और ऑपरेशन के बावजूद 6 महीने के अंदर मां चल बसी थी. और इसके ठीक दस साल बाद कीमोथेरेपी के बावजूद मेरे बड़े पापा भी नहीं बचे. कैंसर से जुड़ी प्रचलित भ्रांतियों की वजह से मैं तो हमेशा ही डर के साये में जीती हूं कि कहीं मुझे भी न हो जाए. यही कारण है कि कैंसर से जुड़ी कोई भी research post या article पढ़ने पर मैं मजबूर हो जाती हूं!
दो दिन पहले एक लेख पर नज़र गई जिसका कैप्शन था, 'कैन्सर कोई बीमारी नहीं बल्कि व्यवसाय है'. मैं चौंक गई.
मिस्टर ग्रिफ़िन मार्शल्ज़ (अमेरिकन लेक्चरर राइटर और फ़िल्म मेकर) की किताब 'World Without Cancer (1974 ) में कैसर के रहस्य से पर्दा उठाया गया है कि ये कोई बीमारी नहीं बल्कि शरीर में Vitamin B17 की कमी है. जिसे लाएट्रिले (laetrile) भी कहते हैं. ठीक वैसे ही जैसे scurvy नामक बीमारी ने लाखों की जान ली और कुछ की तिजोरी भरी! Scurvy असल में Vitamin C की कमी थी.
लेकिन मजबूत राजनीतिक एजेंडा के तहत इस किताब को अन्य भाषा में छापने पर रोक लगा दी गई गई. असल में कैंसर की दवा बनाने वाली कम्पनी डर का धंधा कर रही है और इसे संचालित करती है पॉलिटिक्स.
कैंसर के नाम पर डर का व्यापार! |
बीमारी के नाम पर पहले डराओ फिर दवाई बेचो और जेबें भरो. आपको krrish 3 मूवी तो ज़रूर याद होगी और इबोला भी याद होगा जो तूफ़ान की तरह आया था और डर का दहशत फैला कर चला गया! वर्ल्ड वार-2 के बाद कैन्सर इंडस्ट्री ने पूरी तरह से विश्व में अपने पैर फैला लिये और फिर डर का धंधा फलने-फूलने लगा. अरबों-खरबों की कमाई से तिजोरी भरने लगी.
खैर, जैसा कि हम जान चुके हैं कि कैंसर शरीर में Vitamin B17 की कमी से होता है जिसे लाएट्रिले भी कहते है. इसका सबसे बड़ा सोर्स गेहूं के अंकुरित दाने हैं. या रोज 10-15 एप्रिकॉट के बीज काफ़ी हैं. सेब के बीज़ में भी लाएट्रिले पाया जाता है.
डॉक्टर हैरल्ड डब्ल्यू मैनर ने अपनी किताब "Death Of Cancer" में कहा है लाएट्रिले से कैंसर के इलाज की सम्भावना 90% से ज़्यादा है. चूंकि यह एक रोग होने के कारण हर व्यक्ति अपने शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार इलाज़ करता ही है, इलाज तो अंतिम विकल्प है ही ,साथ ही साथ यदि व्यक्ति अपनी दिनचर्या में परहेज़ रखा करे तो इससे काफी हद तक बचा भी जा सकता है.
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