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Updated: 05 दिसम्बर, 2022 09:06 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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गुजरात के अहमदाबाद की जामा मस्जिद के शाही इमाम शब्बीर अहमद सिद्दीकी का कहना है कि 'मुस्लिम महिलाओं को चुनाव में टिकट देना इस्लाम के खिलाफ है. ये मजहब को कमजोर करता है. इस्लाम में औरतों का इस तरह से लोगों के सामने आना जायज नहीं है. अगर ऐसा होता तो उनको मस्जिद में आने से नहीं रोका जाता. इस्लाम में औरतों का एक मकाम है. इसलिए महिलाओं को रोका गया है. कर्नाटक में हिजाब के मसले पर काफी हंगामा हुआ. जाहिर सी बात है, जब अपनी औरतों को विधायक, पार्षद बनाओगे. तो, हिजाब को कैसे महफूज रखोगे.' शाही इमाम साहब की इस टिप्पणी को जबरन महिला विरोधी साबित करने की कोशिश की जा रही है. जबकि, उन्होंने तो बस अपनी चाहत सबके सामने जाहिर की है.

Jama Masjid Cleric says election tickets to muslim women against Islam he told Sharia Law truthये मुई सरकार, आम मुस्लिमों को परेशान करने की नीयत से कभी तीन तलाक के खिलाफ कानून बना देती है. तो, कभी कोर्ट से हिजाब पर बैन लगवा देती है.

शाही इमाम सिद्दीकी साहब ने वही बातें कही हैं. जो सदियों से आम मुस्लिम महिलाओं के ऊपर लागू होती रही हैं. और, ये तमाम चीजें महिलाओं के लिए इस्लाम में जरूरी चीजों के तौर पर जगह रखती हैं. महिलाओं के लिए हिजाब से लेकर तीन तलाक तक सभी चीजें शरिया कानून से वेरिफाइड की गई हैं. लेकिन, ये मुई सरकार, जब देखो तब आम मुस्लिमों को परेशान करने की नीयत से कभी तीन तलाक के खिलाफ कानून बना देती है. तो, कभी कोर्ट से हिजाब पर बैन लगवा देती है. जबकि, यह सीधे-सीधे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बनाए गए नियम हैं. इस्लाम में मेकअप से लेकर कई चीजों को हराम कहा गया है. तो, हिजाब पहनने के बाद इन सब चीजों की वैसे भी कोई जरूरत नहीं रह जाती है.

मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम में ऊंचे मकाम के नाम पर ऐसे ही सब्जबाग दिखाए जाते हैं. जो बाद में अफगानिस्तान में महिलाओं को शरिया कानून न मानने की वजह से तालिबानी सरेआम कोड़ों से मार, बच्चियों को पढ़ने न देने, महिलाओं के अकेले घर से बाहर निकलने पर रोक जैसी चीजों में बदल जाता है. लेकिन, ऐसी तमाम चीजों का इस्लाम में औरतों के ऊंचे मकाम से कोई लेना-देना नहीं है. आसान शब्दों में कहें, तो शाही इमाम सिद्दीकी जैसे कठमुल्ले हमेशा से यही चाहते रहे हैं कि मुस्लिम महिलाएं हिजाब में और घर तक ही सीमित रहें. और, समय के साथ शरिया कानून लागू होने पर महिलाओं को धीरे-धीरे अन्य चीजों के लिए अभ्यस्त किया जाएगा. और, शरिया कानून की सजाओं को देख मुस्लिम महिलाएं अपने आप ही ये चीजें मानने लगेंगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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