पाकिस्तान दौरा रद्द करने की वजह जावेद अख्तर ने कैफी आजमी के शब्दों में यूं बताई है...
पुलवामा आतंकी हमले के विरोध में जावेद अख्तर ने पाकिस्तान जाने का अपना प्लान तो कैंसिल कर दिया है. साथ ही, उन्होंने कैफी आज़मी की वो कविता याद दिला दी है जो युद्ध की घड़ी में हर भारतीय सैनिक को हिम्मत देगी.
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पुलवामा आतंकी हमले को लेकर भले ही पाकिस्तान जो भी कहे, लेकिन सच तो यही है कि आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ले ली है और मोदी सरकार ने भी इस हमले पर तुरंत एक्शन शुरू कर दिया है. मोदी सरकार से इस बार कड़ी निंदा की नहीं बल्कि कड़ी कार्यवाई की उम्मीद है और ये उम्मीद व्यर्थ न जाए इसके लिए सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ कोई न कोई एक्शन लेना ही होगा. पूरे हिंदुस्तान में हर कोई अपने-अपने तरीके से जवाब दे रहा है और इसी कड़ी में लेखक और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर भी शामिल हो गए हैं.
भारत और पाकिस्तान का हमेशा से ही कला के क्षेत्र में दोस्ताना रहा है. पाकिस्तानी कलाकार हमारे यहां आकर काम करते हैं और हिंदुस्तानी कलाकार पाकिस्तान में कई प्रोग्रामों में हिस्सा लेते हैं. जावेद अख्तर और शबाना आजमी को भी कराची लिट्रेचर फेस्टिवल में जाना था और उसका हिस्सा बनना था. पर जावेद अख्तर ने इस प्रोग्राम का हिस्सा न बनने का फैसला लिया है.
जावेद अख्तर ने कल भी एक ट्वीट कर सीआरपीएफ पर हुए इस हमले पर दुख जताया था.
उन्होंने ट्वीट कर इस बारे में जानकारी दी-
Kranchi art council had invited. Shabana and me for a two day lit conference about Kaifi Azmi and his poetry . We have cancelled that . In 1965 during the indo Pak war Kaifi saheb had written a poem . “ AUR PHIR KRISHAN NE ARJUN SE KAHA “
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) February 15, 2019
इस ट्वीट के साथ उन्होंने कैफी आजमी की एक कविता की लाइन शेयर की. ये कविता है 'और फिर कृष्ण ने अर्जुन से कहा.'
कैफी आजमी ने ये कविता 1965 में भारत-पाकिस्तान जंग के समय लिखी थी. कविता का शीर्षक था फर्ज. इस कविता में लिखा गया था कि जंग अगर हो ही रही है तो उसे फिर डरना या उससे दूर खड़े रहना कोई विकल्प नहीं है. जन्नत या जहन्नुम का फैसला कोई और करेगा, हमें तो अपना फर्ज निभाना है.
फर्ज़-
और फिर कृष्ण ने अर्जुन से कहा,न कोई भाई न बेटा न भतीजा न गुरू,
एक ही शक्ल उभरती है हर आईने में,
आत्मा मरती नहीं जिस्म बदल लेती है,
धड़कन इस सीने की जा छुपती है उस सीने में,
जिस्म लेते हैं जनम जिस्म फ़ना होते हैं,
और जो इक रोज़ फ़ना होगा वह पैदा होगा,
इक कड़ी टूटती है दूसरी बन जाती है,
ख़त्म यह सिलसिल-ए-ज़ीस्त भला क्या होगा,
रिश्ते सौ, जज्बे भी सौ, चेहरे भी सौ होते हैं,
फ़र्ज़ सौ चेहरों में शक्ल अपनी ही पहचानता है,
वही महबूब वही दोस्त वही एक अज़ीज़,
दिल जिसे इश्क़ और इदराक अमल मानता है,
ज़िन्दगी सिर्फ़ अमल सिर्फ़ अमल सिर्फ़ अमल,
और यह बेदर्द अमल सुलह भी है जंग भी है,
अम्न की मोहनी तस्वीर में हैं जितने रंग,
उन्हीं रंगों में छुपा खून का इक रंग भी है,
जंग रहमत है कि लानत, यह सवाल अब न उठा,
जंग जब आ ही गयी सर पे तो रहमत होगी,
दूर से देख न भड़के हुए शोलों का जलाल,
इसी दोज़ख़ के किसी कोने में जन्नत होगी,
ज़ख़्म खा, ज़ख़्म लगा ज़ख़्म हैं किस गिनती में,
फ़र्ज़ ज़ख़्मों को भी चुन लेता है फूलों की तरह,
न कोई रंज न राहत न सिले की परवा,
पाक हर गर्द से रख दिल को रसूलों की तरह,
ख़ौफ़ के रूप कई होते हैं अन्दाज़ कई,
प्यार समझा है जिसे खौफ़ है वह प्यार नहीं,
उंगलियां और गड़ा और पकड़ और पकड़,
आज महबूब का बाजू है यह तलवार नहीं,
साथियों दोस्तों हम आज के अर्जुन ही तो हैं.
ये कविता पढ़ने के बाद शायद किसी को समझने में देर नहीं लगेगी कि कैफी आजमी ने असल में महाभारत में कृष्ण और अर्जुन संवाद पर कविता लिखी थी. गीता के उपदेश जिसमें ये कहा गया है कि आत्मा मरती नहीं, बस शरीर बदल लेती है और कोई संगी साथी नहीं रह जाता है.
जंग को दोजख यानी नर्क कहा है, लेकिन ये भी कहा है कि इसी दोजख के किसी कोने में जन्नत होगी, लेकिन वो तभी नसीब होगी जब अपने कर्म करे जाएंगे और इस जंग में जख्म लिए जाएंगे.
कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में ऐसे ही उपदेश दिए थे और ये कहा था कि अपना कर्म कर और फल की चिंता मत कर. कैफी आजमी ने भी अपनी कविता में यही लिखा है कि जंग जन्नत है या जहन्नुम इसकी चिंता अब छोड़ दो. दूर से साथियों की लाशें नहीं देख सकते बल्कि जंग का हिस्सा बन सकते हैं.
कैफी आजमी की ये कविता किसी भी वक्त के लिए सैनिकों का हौसला बढ़ाने का काम करती है. इस वक्त जब पुलवामा हमले ने भारत को वो जख्म दिया है जिसे कभी भूला नहीं जा सकता उस समय कैफी आजमी की ये कविता याद दिलाती है कि एक ऐसी ही जंग 1965 में भी लड़ी गई थी और उस जंग में भी हजारों भारतीय परिवार उजड़े थे. उस जंग में भी भारतीय सैनिकों को बहुत प्रोत्साहन की जरूरत थी.
कैफी आजमी की ये कविता न सिर्फ महाभारत के युद्ध की याद दिलाती है बल्कि पुराने समय और आने वाले समय में लड़ी जाने वाली अनेकों जंगों के सिपाहियों का हौसला बढ़ाने का काम भी करती है.
जावेद अख्तर का ये फैसला बिलकुल सही है कि उन्होंने पाकिस्तानी न्योते को ठुकरा दिया और सही मायने में कैफी आजमी की कविता शेयर करना भी अच्छा फैसला था. जावेद अख्तर ही नहीं किसी भी भारतीय को अब पाकिस्तान से रहम या उनके आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अगर कोई देश आतंकवाद का बढ़ावा देना बंद नहीं कर सकता तो उसके साथ कोई भी अच्छा संबंध न रखा जाए तो बेहतर है.
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