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Updated: 02 जनवरी, 2016 11:55 AM
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मुल्‍ला-मौलवियों के कई फतवे आपने सुने होंगे. अब एक और 'फतवा' सुनिए. मार्कंडेय काटजू का 'फतवा'. अपने फेसबुक पेज पर उन्‍होंने तीन बातों को इस्लाम विरोधी बताया है.

काटजू का फेसबुक पोस्ट

काटजू ने अपने पोस्ट में लिखा है, 'इस्लाम दुनिया में बराबरी का संदेश ले कर आया. लेकिन बुर्का (या हिजाब), शरिया और मौखिक तरीके से तलाक देने की रवायतें इसे अपना दास बना रही हैं. इसलिए जो लोग इन चीजों का समर्थन करते हैं वे इस्लाम के दुश्मन हैं. मुसलमानों सहित सभी लोगों को इसकी आलोचना करनी चाहिए.'

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काटजू का फतवा नंबर 1- हिजाब का समर्थन इस्लाम विरोधी!

इस्लाम में हिजाब को लेकर कई बातें कही गई हैं. कुरान के अनुसार हर महिला के लिए हिजाब पहनना जरूरी है. हिजाब पहनने का एक मतलब यह है कि उक्त महिला अल्लाह और अपने परिवार के प्रति समर्पित है. इस्लाम के नियमों के अनुसार उसे अपने पति, पिता या परिवार के करीबी सदस्यों के अलावा किसी गैर मर्द के सामने बिना हिजाब के नहीं आना चाहिए.

वैसे, हिजाब की आलोचना करने वाले आज के दौर में इसे रूढ़िवादी सोच के तौर पर देखते हैं. आलोचना करने वालों का मानना है कि यह समाज में महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने की बात के खिलाफ है. अपने पहनावे और ज्यादातर कामों के लिए पुरुषों पर निर्भरता के कारण महिलाएं अपनी बात खुल के नहीं रख पातीं. वैसे भी, बदलते दौर के साथ महिलाएं अब बुर्के के पीछे छिपी कोई वस्तु नहीं रहीं. उनकी अपनी भावनाएं हैं और उसका सम्मान होना चाहिए.

यह भी पढ़ें- हिजाब का आस्था से क्या लेना-देना

काटजू का फतवा नं. 2- शरिया का समर्थन इस्लाम विरोधी!

कई मुस्लिम जानकारों का मानना है कि शरिया कानून समाज की बेहतरी का सबसे अच्छा जरिया है. शारिया कानून में कुरान, हदीस और इस्लामिक जानकारों द्वारा बताए रास्तों का जिक्र है. लेकिन कई मौकों पर इसके बेहद क्रूर होने और बदलते वक्त के साथ तालमेल न बैठा पाने को लेकर आलोचना होती रही है. मसलन, चोरी के लिए हाथ तक काट देने, शादी से पहले सेक्स संबंध स्थापित करने वाली महिला के लिए कोड़े मारने की सजा आदि ने शरिया कानून पर कई सवाल खड़े किए हैं.

काटजू का फतवा नं. 3- जुबानी तलाक का समर्थन इस्‍लाम विरोधी!

तलाक के इस तरीके को लेकर इस्लामिक समाज में भी विरोधाभास है. कई महिला संगठन इसे खत्म करने की मांग करते रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही मुंबई की एक संस्था भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन द्वारा कराए सर्वे में यह बात सामने आई कि 92.1 फीसदी महिलाएं एकतरफा तलाक को गलत मानती हैं. तलाक के अलावा मुस्लिम समाज में बहुविवाह को लेकर भी कई वर्गों में विरोध है.

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