Rape का दर्द पुरुष महसूस ही नहीं कर सकते या ये IPS अपवाद है ?
'निर्भया की मां की फिजीक देखकर मैं अंदाजा लगा सकता हूं कि बेटी कितनी सुंदर रही होगी'. कर्नाटक के पूर्व डीजीपी का ये बयान दर्शाता है कि रेप को लेकर सभी पुरुषों में समान संवेदना नहीं हो सकती.
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पहला आदमी- 'बताओ यार, एक लड़की का रेप हो गया. क्या जमाना आ गया है'
दूसरा आदमी- 'चलो शुक्र मनाओ सस्ते में निपट गई, निर्भया जैसा हाल नहीं हुआ'
रेप पर चर्चाएं तो हर गली के नुक्कड़ पर होने लगी हैं, लेकिन रेप को लेकर लोगों की संवेदनशीलता खत्म हो गई है. बहुत दुख होता है ये कहते हुए कि अगर विक्टिम करीबी या परिचित न हो तब तक रेप रेप नहीं बल्कि सिर्फ अखबार में छपी हुई खबर ही लगता है, जो आज ताजा है और कल बासी.
निर्भया को गए करीब 5 साल बीत गए लेकिन मजाल है कि अपराधियों में खौफ ने घर किया हो. न तो वो सुधरे और न ही हमारे समाज के कुछ सभ्य लोग, जो रेप को चटाखेदार खबर की तरह पढ़ते हैं और सांत्वना के शब्द बोलने के बजाए मुंह से केवल छलनी करने वाले शब्द निकालते हैं. ताजा ताजा बयान दिया है कर्नाटक के पूर्व डीजीपी एचटी सांगलियान ने...
डीजीपी एचटी सांगलियान का बयान शर्म करने लायक है
बैंगलोर मिरर में छपी खबर के मुताबिक, बेंगलुरु में महिलाओं को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने दिल्ली गैंगरेप की शिकार निर्भया की मां को लेकर कहा कि- 'निर्भया की मां की फिजीक (काया) देखकर मैं अंदाजा लगा सकता हूं कि बेटी कितनी सुंदर रही होगी'. वो यहीं नहीं रुके, उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के टिप्स भी दिए. उन्होंने कहा, 'अगर आपको किसी ने काबू में कर लिया है, तो आपको सरेंडर कर देना चाहिए, बाद में आप केस फॉलो करें, इस तरह से हम सुरक्षित रह सकते हैं, जिंदगी बचाइए और मरने से बचिए'.
कमाल है, कार्यक्रम में आकर इन्होंने निर्भया की मां को कहां-कहां से नहीं देखा होगा. तभी इस नतीजे पर पहुंचे होंगे कि निर्भया कितनी खूबसूरत रही होगी. लेकिन मन में इनके भी यही बात थी कि निर्भया ने अपने बलात्कारियों का विरोध क्यों किया, सरेंडर ही कर दिया होता.
अच्छा हुआ कि महोदय अब रिटायर हो चुके हैं. इनकी बातें सुनकर हम समझ सकते हैं कि नौकरी के वक्त इन्होंने ऐसे गंभीर मामलों को कितनी गंभीरता और संवेदनशीलता से लिया होगा. जब पुलिस विभाग के इतने बड़े अधिकारी को इस तरह बोलना सही लगता है, किसी महिला की फिजीक पर कमेंट करना सही लगता है, तो मुझे भी लगता है कि महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों में तो ऐसे अधिकारियों को मंच पर बुलाना क्या, कुर्सी देना भी गलत होगा.
Met Nirbhaya's mother today. She spoke how the society stigmatises rape victims rather than stigmatising the culprits. It's for citizens to play active role in checking crimes against women. Ex MP, retd IPS Sangliana was present I received "Nirbhaya Award" on the occasion. pic.twitter.com/ifjeaBpnf1
— D Roopa IPS (@D_Roopa_IPS) March 9, 2018
इस कार्यक्रम में निर्भया की मां मुख्य अतिथी थीं और बेंगलुरु की जानी-मानी आईपीएस डी रूपा को 'निर्भया अवार्ड' से सम्मानित किया गया था. लेकिन अफसोस है कि निर्भया की मां को वहां आकर अपमान का घूंट ही पीना पड़ा होगा. जरा सोचिए उस मां के बारे में जिसका कलेजा निर्भया कांड से अब तक कितनी ही बार फटा होगा. कितनी ही बार समाज के आगे एक मां हारी होगी.
अगर आप महिला हैं तो हो सकता है कि ये सब सुनकर आपको गुस्सा आए, लेकिन ज्यादातर पुरुष सिर्फ 'ओह शिट' वाला रिएक्शन ही दे पाएंगे. कभी कभी समझ नहीं आता कि रेप का दर्द क्या पुरुष महसूस ही नहीं कर सकते या फिर कुछ ही लोग अपवाद हैं?
शर्म आती है कि हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं जो लड़की का रेप होने पर सिर्फ मोमबत्तियां जलाता है. वो भी तब जब उसका हाल निर्भया जैसा हृदयविदारक हो, वरना रेप तो अब सांस लेने की तरह रोज की ही बात होकर रह गया है, दर्द शायद पिघलते मोम के जमने तक ही महसूस होता है उसके बाद सबके दिल फिर पत्थर.
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