Karnataka Hijab Row: हिजाब में ही रहो न, इट्स धार्मिक एंड प्रियॉरिटी!
'हर कीमती चीज़ पर्दे में होती है' बकौल विद्यार्थी नेता फारुखी लुकमान वाह वाह वाह मल्ल्ब, क्या इज्जत! चीज़ ही तो बनना चाहती हैं आप. चीज़ जिसका इस्तेमाल हो. अलग अलग तरीके से. धर्म को बढाने के लिए 4-5-6 बच्चे पैदा करना इस चीज़ का सबसें मुफीद इस्तेमाल है. इसके अलावा किसी भी आंदोलन में बिठाने के काम मे भी यह चीज़ काफी इफेक्टिव है.
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चक्रव्यूह के भीतर आप निकलने का रास्ता ढूंढते ढूंढते थक जाते हैं और हार मान लेते है या मर ही जाते हैं. कभी कभी तिलस्मी चक्रव्यूह रचा जाता है, जहां सोचने समझने की तार्किक शक्ति खत्म हो जाती है. हिजाब के अंधेरे उसी तिलस्मी चक्रव्यूह का हिस्सा है. तो चक्रव्यूह ने सोचने समझने की ताकत को यूं लील लिया की जीती जगती लड़कियां महिलाएं, 'चीज़' बन कर खुश हैं.
बीच दौड़ में बदला पाला
बरसों से हिंदुस्तान की महिलाएं बराबरी के संघर्ष को लड़ती आई हैं. पितृसत्ता की हर उस बेड़ी, जिसने धर्म जाति समाज के नाम पर हमे जकड़ा उसे तोड़ने की कोशिश में लगी हैं. पढ़ने की आज़ादी तक नहीं थी और हमारी पूर्वज नारियों ने संघर्ष कर हमे वो हक दिलाया, जिसकी मदद से पिछले सौ सालों में हमने एक दौड़ लगाई जिसने समाज की मोटी मोटी सांकले हिला दीं.
हिजाब पर प्रदर्शन करती मुस्लिम महिलाएं चाहती ही नहीं कि उनका भला हो
पर बहनों तुमने इस दौड़ में अचानक अपना पाला बदल लिया और अपनी पसंद अपनी चॉइस अपनी मर्ज़ी साफ़ कर दी. पहले हिजाब फिर किताब. तो अब तुम हिजाब में ही रहो. मर्ज़ी बार बार बदली नहीं जाती. रंग बिरंगे तिल्ले सितारे के ऊपर काली, नीली, गुलाबी पोशाक डालो जिसमे आंखों के सामने जाली लगी हो और झीने पर्दे से से देखो दुनिया - जो बदलेगी, तुम बदलो चाहे न बदलो.
बात बुरी लगे तो... लगा करे !
हर धर्म की इज़्ज़त का पाठ हमने पढ़ा. इस मिट्टी की देन है ये, इससे तुम्हारे पुरखे भी इंकार नहीं कर सकते. तो ये तो तय है जिस धर्म का झंडा ले कर तुम पर्दे के पीछे से आज़ादी आज़ादी चिल्ला रही हो वो धर्म इस 32, 87,263 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले देश में हमेशा से नहीं था. इस्लाम धर्म बाहर से आया था. और इस मिट्टी ने बहुत कुछ की तरह उसे भी अपनाया. हमारे कुछ भाई बहनो ने भी धर्म अपनाया कुछ से जबरदस्ती मनवा डाला गया और बाकि प्रकृति के नियम के अनुसार- जनसंख्या बढ़ती गई.
अब क्यों आये, किस वजह से आये ये हिस्ट्री के 'गुड पार्ट', बादशाह अकबर की प्रेमकहानी को हटा कर पढ़ सकती हो. पर्दा क्यों शुरू हुआ, क्यों ज़रूरत पड़ गयी आदमी की निगाह से बचने की इस पर भी थोड़ा ज्ञान अर्जित करो. किसी भी नारी को पुरुषो द्वारा लिखे धर्मअनुसार नियमों में क्या जगह दी गई है ये तुम पढ़ सकती हो. तुम्हारे हमारे नहीं बहन, हम तो हर धर्म को खटकते हैं. पढ़ लो समझ लो. बशर्ते पढ़ने समझने और खुद के दिमाग इस्तेमाल करने की इजाज़त हो तुम्हें.
आज पैगंबर मोहम्मद के डाइरेक्ट खानदान की लड़कियां वेस्टर्न कपड़े डाल कर कॉलेजों की पढ़ाई पढ़ रही हैं और आप कनवर्टेड - जी जी जैसे हर अयोध्यावासी श्री राम के खानदान का नहीं, वैसे ही आप लोग भी डाइरेक्ट रिश्तेवाले नहीं है न. मान लो.
लेकिन अब विश्वास तो विश्वास ही है. अंधा विश्वास क्या क्या नहीं करवाता! तो आप भी सैकड़ों साल के उस विश्वास रूपी चक्रव्यूह में फंसी हैं और उससे निकलने के बारे में सोच भी नहीं रही. तो हम कब तक और क्यों सोचें. छोड़ न दे आपको आपके हाल पर! व्हिच इज़ फेयर. जैसे कुएं में खुद पर चट्टान बांध के छलांग लगाने वाले को कितना ही बचाया जाये उसी तरह आप पर कितनी एनर्जी ताकत बर्बाद हो.
वैसे भी मुद्दा अब आपकी ज़िद से आगे निकल गया है. आपके दिमाग पर पत्थर पड़ चुके हैं और खुद को निर्जीव मान कर चीज़ बन चुकी हैं. कीमती चीज़ जिसका पर्दे में रहना ज़रूरी है. 'हर कीमती चीज़ पर्दे में होती है' बकौल विद्यार्थी नेता फारुखी लुकमान वाह वाह वाह मल्ल्ब क्या इज्जत !
चीज़ ही तो बनना चाहती हैं आप!
चीज़ जिसका इस्तेमाल हो. अलग अलग तरीके से. धर्म को बढाने के लिए 4- 5- 6 बच्चे पैदा करना इस चीज़ का सबसें मुफीद इस्तेमाल है. इसके अलावा किसी भी आंदोलन में बिठाने के काम मे भी यह चीज़ काफी इफेक्टिव है. अब अगर ये चीज़ पढ़ लिख गई तो मेरी तौबा ये चीज़ इंसान न बन जाएगी ? सोचेगी और खरा बोलेगी उफ़ गुनाह-ए-अज़ीम है. तो चीज़ को पर्दे में रखो! अब बहन तुम सोच ही ली हो तो 'पहले हिजाब फिर किताब' - के लिए रास्ता निकलना तो पड़ेगा ही.
पहला रास्ता
जस्ट फ़ॉर इंफेरमेशन मदरसे में आप पढ़ सकती ही होंगी ना??तो यूज़ दैट! अगर नहीं तो आल गर्ल्स मदरसे कि मांग कीजिये. जिस विश्वास से खुद को चीज़ कह कर पर्दे में रख रही है वो केवल धार्मिक किताब पढ़ कर पवित्र चीज़ बनी रहे तो ही अच्छा. स्कूलों में तो पीरियड्स, बॉडी ऑर्गन इन्क्लूडिंग सेक्सुअल ऑर्गन मैया मोरी सरमा जइहो तुम तो! ऐसे स्कूलन में क्या ही पढ़ना! तुम बनो धार्मिक 'चीज़', ऊपर वाली हूरों की तरह!! दिस इज़ जस्ट ए सजेशन, बाकी तो आपकी मर्ज़ी!
दूसरा रास्ता
गो फार ऑनलाइन क्लास. आप पांडेमिक से सीख ले कर फुल टाइम ऑनलाइन क्लास वाले स्कूल की मांग कीजिये. यू सी वर्क फ्रॉम होम टीचरों को ज़्यादा तनख्वाह नहीं देनी पड़ती! इससे न घर से बाहर निकलेंगी न हिजाब की ज़रूरत होगी. मर्दों से खतरा हर जगह हो सकता है. सबसे ज़्यादा मॉलेस्टेशन के केस घरों और जान पहचान के लोगो द्वारा हो होते हैं. बाकी मर्दों की निगाह से बचा नहीं जा सकता. हां लड़ा ज़रूर जा सकता है. पर आप तो चीज़ हैं. आप मत लड़िये हम है अपनी लड़ाई के लिए.
आखिरी रास्ता
ज़रा मुश्किल लेकिन सबसे आसान. पढ़ना छोड़ दीजिए. देखिए आप अल्पसंख्यक हैं ये तो मानते ही हैं सब! मल्लब आप भी, भाजपा भी, कांग्रेस भी, लाल टोपी सफेद टोपी सब - अपनी अपनी वजह से आपको अल्पसंख्यक मानते हैं. उसमें भी अल्पसंख्यक महिलाओं की संख्या और भी कम होगी. तो अगर आप अनपढ रह गई तो ओवरआल लिटरेसी रेट पर फर्क खास नहीं पड़ेगा. यू कैन डू दिस एज वेल!
2001 के सेंसस में पूरी मुस्लिम आबादी से मात्र 4% ही ग्रेजुएट थे. 2008 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी कहा गया कि मुस्लिम आबादी की साक्षरता दर बाकि भारत से 5 % कम है. तो पढ़ना छोड़ कर आप केवल एक ट्रेंड ही फॉलो करेंगी. फायदा ये भी कि इससे आप पूरी तरह चीज़ बन जाएंगी. जिसका उपयोग करने पुरुष उसकी उपयोगिता का खुद निर्णय लेंगे.
सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे! ऐसे तीन तीन रस्ते बता दिए. तीन से याद आया ये तीन तलाक भी तो धर्म की देन है. तौबा तौबा कैसा गुनाह करवा रही है आपसे सरकारें ! आप सब छोड़िये पहले इस कानून को उल्टा करवाइये. हद्द हो गयी ! धर्म से खिलवाड़ इस नो चाइल्ड्स प्ले. चीज़ बने या गुलाम-धर्म की राह सबसे नेक. हां नहीं तो ! बाकि राजनीतिक रास्ता जो भी निकले अंधेरे में सांस लेना आपकी फितरत बन चुकी है तो आप - आप बस जाली के भीतर से सांस लीजिएगा.
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