अगस्त आ गया! क्या 'मौत' से लड़ने को तैयार है गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज
अगस्त आ गया है और हमारे लिए ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि गोरखपुर में जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है.
-
Total Shares
अगस्त आ गया है, मगर उत्तर प्रदेश में बारिश और उमस जारी है. लोगों को न तो बारिश से ही राहत मिल रही है और न ही उमस से. बारिश के बावजूद प्रदेशवासी उमस से परेशान हैं. इसमें भी सबसे ज्यादा परेशान हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर और आस पास के लोग. इन लोगों के पास परेशान होने के माकूल कारण हैं. वजह इंसेफेलाइटिस के रूप में हमारे सामने है. हां वही इंसेफेलाइटिस जो हर साल अगस्त में बेकाबू हो जाता है और जिसने गुजरे साल 5 दिनों में 72 बच्चों को मौत की नींद सुला दिया था. वही इंसेफेलाइटिस जो पिछले 40 सालों से सरकार की नाक में दम किये हुए है.
चूंकि अगस्त इंसेफेलाइटिस के लिहाज से ज्यादा खतरनाक है अतः इस महीने में ज्यादा मौतें होती हैं
याद आपको भी होगा. घटना के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी हल्के में अफरा तफरी की स्थिति थी. बच्चों की मौत के फौरन बाद उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह मीडिया से मुखातिब हुए. प्रेस से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने एक विवादस्पद बयान दे दिया और चर्चा का कारण बने. उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि गोरखपुर में पिछले कई सालों से हर बार अगस्त के महीने में बच्चे दिमाग़ी बुखार की चपेट में आते हैं और इस अस्पताल में आकर मर जाते हैं. एक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के इस बयान के बाद राज्य सरकार की चौतरफ़ा आलोचना हुई थी.
उस अगस्त से इस अगस्त तक एक साल का वक़्त बीत गया है. ऐसे में हमारे लिए ये जानना जरूरी हो जाता है कि इस साल उत्तर प्रदेश सरकार की इस भयंकर बीमारी को लेकर क्या योजना है. इस बात को जानने के लिए हमने अपने स्तर से पड़ताल की तो बातें निकल कर आई वो हैरत में डालने वाली थी. इस सम्बन्ध में हमने एक स्थानीय पत्रकार को फोन किया. पत्रकार ने भी इस बात को स्वीकार किया कि हर साल जुलाई से नवम्बर का समय इस बीमारी के लिहाज से सबसे अहम माना जाता है. और इसमें भी अगस्त सबसे क्रूशियल होता है. चूंकि ये खुद मुख्यमंत्री का एरिया है इसलिए मामले को कहीं न कहीं ज्यादा तूल दिया जाता है.
गत वर्ष हुई बच्चों की मौतों से पूरा प्रशासनिक अमला दहल गया था
पत्रकार के अनुसार, 'पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल सरकार ने इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों के आंकड़ें देना बंद कर दिया. पत्रकार की मानें तो, 'पहले मीडिया वाले अस्पताल में आराम से कवरेज के लिए जाते थे और अस्पताल प्रशासन द्वारा उन्हें अंडर ट्रीटमेंट से लेकर अस्पताल में हुई मौतों का डाटा बिना किसी न नुकुर के आसानी से दे दिया जाता था. मगर गुजरे साल के बाद से अब स्थिति दूसरी है. क्योंकि गत वर्ष मामले ने भयंकर तूल पकड़ा था अब न तो अस्पताल में कवरेज की परमिशन है और न ही डाटा मिलता है. बच्चे पिछले साल भी मर रहे थे इस साल भी मर रहे हैं.
ये पूछने पर कि इस पूरे मामले में सरकार क्या कर रही है? पत्रकार ने बताया कि चूंकि इंसेफेलाइटिस मच्छर के काटने से होता है अतः इसे राज्य सरकार द्वारा टीकाकरण में शामिल किया गया. जिससे इसमें भारी कमी देखने को मिली. आज जो मौतें हो रही हैं उनका बड़ा कारण दिमागी बुखार है जिसकी वजह कॉक्सिकी बी नाम का वायरस है जो पानी में पाया जाता है. पहले ये बीमारी मच्छर के काटने से थी अब वजह गंदगी और पानी है.
पत्रकार के अनुसार बीआरडी मेडिकल कॉलेज को पूरा फंड मिल रहा है. इसपर जब हमनें ये सवाल किया कि मौत क्यों हो रही है तो जवाब ने सारी बात शीशे की तरह साफ कर दी. पत्रकार के अनुसार उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बीमारी से निपटने के लिए 500 बेडों के इंसेफेलाइटिस वार्ड का काम शुरू किया था. वार्ड बन कर तैयार है मगर भरपूर फण्ड होने के बावजूद इस वार्ड के लिए योगी सरकार द्वारा उपकरण नहीं ख़रीदे जा रहे हैं. उपकरण क्यों नहीं ख़रीदे गए वजह निश्चित तौर पर राजनीति होगी.
40 साल से ऊपर हो गया है हर साल इस भयंकर बीमारी की चपेट में आकर मरते हैं बच्चे
एक स्थानीय पत्रकार से बातचीत के अलावा इस अगस्त इस गंभीर बीमारी को लेकर सरकार की क्या प्लानिंग है जब हमनें इसके लिए इंटरनेट की मदद ली तो हमें इस मामले से जुड़े कुछ लिंक नजर आए. बीबीसी के एक लिंक के अनुसार इस बार सरकार का रवैया पिछली बार से कहीं ज़्यादा संवेदनशील है. अस्पताल प्रशासन के अनुसार, हमने शहर के बाहर भी पेडियाट्रिक आईसीयू बनवाए हैं. इसी तरह ज़िला अस्पताल में जो हमारा पेडियाट्रिक आईसीयू था, उसमें 5 बिस्तरों का इज़ाफ़ा हुआ है.
साथ ही ज़िले के 19 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 'इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर' बनवाए गए हैं. यह सेंटर पेडियाट्रिक आईसीयू की तरह तो काम नहीं करेंगे लेकिन यहां बुखार का प्राथमिक इलाज होगा. डॉक्टर मरीज़ के लक्षण देखेंगे और ज़रूरत पड़ने पर पास के पेडियाट्रिक आईसीयू पर रेफ़र कर देंगे.' 'यहां मरीज़ को रेस्टोर करने के लिए वेंटिलेटर, मॉनिटर और दवाइयों से लेकर सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं. यहां न ठीक हो पाने पर गंभीर मरीज़ों को पहले ज़िला अस्पताल और अंत में बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेजा जाएगा".
बीबीसी और स्थानीय पत्रकार से मिली जानकारी के बाद एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं राज्य सरकार भी इस बीमारी को लेकर गंभीर है. गोरखपुर खुद मुख्यमंत्री का इलाका है अतः सरकार के भी यही प्रयास है कि अब इस मामले को लेकर उसकी और किरकिरी न हो. काम चल रहा है. ये कितना तेज है या फिर ये कितना स्लो इस बात का अंदाजा हमें आने वाले वक़्त में लग जाएगा. मौत हुई तो हम यही कहेंगे राज्य सरकार निकम्मी है. नहीं हुई तो हम यही कहेंगे सरकार ने काम किया नतीजा हमारे सामने हैं.
ये भी पढ़ें -
बच्चों की मौत महीना देखकर नहीं आती मंत्री जी
क्यों नहीं योगी सरकार गोरखपुर के अस्पताल का नाम 'शिशु श्मशान गृह' रख देती?
देश में आज ही मर गए 3000 बच्चे ! कोई खबर मिली...
आपकी राय